शिक्षक दिवस (5 सितंबर) पर विशेष…

वर्तमान शिक्षा में परिवर्तन की आवश्यकता

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के नजरिए को अपनाने की जरूरत

शिक्षक समाज के ऐसे शिल्पकार होते हैं जो बिना किसी मोह के इस समाज को तराशते हैं । शिक्षक का काम सिर्फ किताबी ज्ञान देना ही नहीं बल्कि सामाजिक परिस्थितियों से छात्रों को परिचित कराना भी होता है । शिक्षकों की इसी महत्ता को सही स्थान दिलाने के लिए ही सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने खूब कोशिशें की, जो खुद एक बेहतरीन शिक्षक थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी, विद्वान, शिक्षक, वक्ता, प्रशासक, राजनायिक, देशभक्त और शिक्षाशास्त्री जैसे उच्च पदों पर रहे । अपने इस महत्त्वपूर्ण योगदान के कारण ही, भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन 5 सितंबर को भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है ।

क्या आप जानते हैं कि सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपने जीवन के 40 साल अध्यापन के लिए समर्पित किए थे !

दरिद्रता और मजबूरियों का रोना न रोयें

डॉ. राधाकृष्णन अपने पिता की दूसरी संतान थे । उनके चार भाई और एक छोटी बहन थी । छह बहन-भाईयों और दो माता-पिता को मिलाकर आठ सदस्यों के इस परिवार की आय बेहद सीमित थी । इस सीमित आय में भी डॉ. राधाकृष्णन ने सिद्ध कर दिया कि प्रतिभा हो तो कोई बाधा आपका रास्ता नहीं रोक सकती । उन्होंने न केवल महान शिक्षाविद के रूप में ख्याति प्राप्त की बल्कि देश के सर्वोच्च राष्ट्रपति पद को भी सुशोभित किया । उन्हें बचपन में कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा । मगर उन्होंने कभी इसे बाधा नहीं बनने दिया । इसलिए गरीबी या अभावों का रोना रोने की बजाए अपने लक्ष्य पर नजर रखें और ईमानदारी से मेहनत करें ।  

जरूरी है शिक्षा को धर्म और जाति से ऊपर रखना

हालाँकि इनके पिता धर्मिक विचारोंवाले इंसान थे, लेकिन फिर भी उन्होंने राधाकृष्णन को पढ़ने के लिए क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल, तिरुपति में दाखिल करवाया । इसके बाद उन्होंने वेल्लूर और मद्रास कॉलेजों में शिक्षा प्राप्त की । वे स्वयं भारतीय सामाजिक संस्कृति से ओत-प्रोत आस्थावान हिंदू थे । इसके साथ ही अन्य समस्त धर्मावलम्बियों के प्रति भी गहरा आदर भाव रखते थे । जो लोग उनसे वैचारिक मतभेद रखते थे, उनकी बात भी वे बड़े सम्मान एवं धैर्य के साथ सुनते थे । विश्व में उन्हें हिंदुत्व के परम विद्वान के रूप में जाना जाता था ।

धन व भौतिक सुखों का मोह जीवन को बनाता है कमजोर

१९६७ के गणतंत्र दिवस पर डॉ. राधाकृष्णन ने देश को संबोधित करते हुए यह स्पष्ट किया था कि वे अब किसी भी सत्र के लिए राष्ट्रपति नहीं बनना चाहेंगे । हालाँकि राजनेताओं ने उनसे काफी आग्रह किया कि वे अगले सत्र के लिए भी राष्ट्रपति का दायित्व ग्रहण करें, लेकिन राधाकृष्णन ने अपनी घोषणा पर पूरी तरह से अमल किया ।

राष्ट्रपति के रूप में अपना कार्यकाल पूर्ण करने के बाद वे गृहराज्य के शहर मद्रास चले गए । वहाँ उन्होंने पूर्ण अवकाशकालीन जीवन व्यतीत किया । 1968 में उन्हें भारतीय विद्या भवन के द्वारा सर्वश्रेष्ठ सम्मान देते हुए साहित्य अकादमी की सदस्यता प्रदान की गई । डॉ. राधाकृष्णन ने एक साधारण इंसान की तरह अपना जीवन गुजारा था । वे परंपरागत वेशभूषा में रहते थे । सफेद वस्त्र धारण करते थे । वे सिर पर दक्षिण भारतीय पगड़ी पहनते थे, जो कि भारतीय संस्कृति का प्रतीक बनकर सारे विश्व में जानी गई । राधाकृष्णन शाकाहारी भोजन करते थे । उन्होंने एक लेखक के रूप में 150 से अधिक रचनायें लिखीं ।

विद्यार्थियों को डांटकर नहीं, प्यार व दोस्ती से पढ़ायें

डॉ. राधाकृष्णन अपनी आनंददायक अभिव्यक्ति और हल्की गुदगुदानेवाली कहानियों से छात्रों को मंत्रमुग्ध कर देते थे । उच्च नैतिक मूल्यों को अपने आचरण में उतारने की प्रेरणा वे अपने छात्रों को देते थे । वे जिस भी विषय को पढ़ाते थे, पहले स्वयं उसका गहन अध्ययन करते थे । दर्शन जैसे गंभीर विषय को भी वे अपनी शैली से सरस, रोचक और प्रिय बना देते थे ।

जब वे अपने आवास पर शैक्षिक गतिविधियों का संचालन करते थे, तो घर पर आनेवाले विद्यार्थियों का स्वागत हाथ मिलाकर करते थे । वे उन्हें पढ़ाई के दौरान स्वयं ही चाय देते थे और मित्र की भाँती उन्हें घर के द्वार तक छोड़ने भी जाते थे । उनमें प्रोफेसर होने का रंचमात्र भी अहंकार नहीं था । उनका मानना था कि जब गुरु और शिष्य के मध्य संकोच की दूरी न हो, तो अध्यापन का कार्य अधिक श्रेष्ठ हो जाता है ।

उनका कहना था कि

यदि शिक्षा सही प्रकार से दी जाये तो समाज से अनेक बुराइयों को मिटाया जा सकता है । शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूँसे, बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आनेवाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करे ।

शिक्षा के द्वारा मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है । अंततः विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबंधन करना चाहिए । शिक्षा का परिणाम एक मुक्त रचनात्मक व्यक्ति होना चाहिए, जो ऐतिहासिक परिस्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध लड़ सके ।

पुस्तकें वह साधन हैं जिनके माध्यम से हम विविध संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण कर सकते हैं । इनसे हमें एकांत में विचार करने की आदत और सच्ची खुशी मिलती है । उन्होंने यह भी कहा था कि कष्ट सहने से ही हमें बहुत कुछ मिलता है । इससे भागना नहीं चाहिये ।

बरगद के पेड़ से मशहूर था डॉ. राधाकृष्ण का स्कूल,

अब प्रार्थना से पहले रोज सुनाते हैं उनका किस्सा…

कार्तिकेयन, जयकुमार और जयचंद्रन तिरुतणी के सरकारी हायर सेकंडरी स्कूल के टीचर हैं । ये तीनों इसी स्कूल में पढ़े भी हैं । ये वह स्कूल है जहाँ देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने पहली पढ़ाई की थी । जयचंद्रन कहते हैं कि टीचर बनने के लिए हुए इंटरव्यू में उनसे पहला सवाल डॉ. राधाकृष्णन के बारे में ही पूछा गया था । इसी स्कूल में पोस्टिंग हो इसके लिए उन्होंने कई साल इंतजार किया । कहते हैं यूँ तो तिरुतणी में दस प्राइवेट और दो सरकारी स्कूल हैं, लेकिन इस स्कूल में पढ़ने और पढ़ानेवाले खुद को खुशनसीब मानते हैं ।

आंगन में बरगद के एक पुराने पेड़ के चलते यह स्कूल आलमरम हायर सेकंडरी स्कूल के नाम से मशहूर था । तमिल में बरगद को आलमरम कहा जाता है। आज आंगन में बरगद नहीं, लेकिन उसका चबूतरा मौजूद है । चेन्नई से 50 कि.मी. दूर बसे तिरुतणी गाँव के इस स्कूल में राधाकृष्णन पाँचवी तक पढ़े थे । गाँव में ही उनका एक घर है जो अब लाइब्रेरी है । उनके परिवारवाले और रिश्तेदारों में से अब कोई भी यहाँ नहीं रहता । हाँ, उनकी पड़पोतियाँ हर साल उनके जन्मदिवस यानी शिक्षक दिवस 5 सितंबर को चेन्नई से यहाँ आती हैं । उनके परिवार की ओर से स्कूल के बच्चों को स्कॉलरशिप भी दी जाती है । ये परंपरा कई सालों से चली आ रही है । स्कूल की एक खास परंपरा ये भी है कि यहाँ हर दिन सुबह की प्रार्थना के पहले बच्चों को डॉ. राधाकृष्णन से जुड़ा कोई किस्सा या कहानी सुनाई जाती है । ये परंपरा 15 सालों से एक भी दिन टूटी नहीं है । जब किसी शिक्षक का तबादला हो जाता है, तो कोई और इसकी जिम्मेदारी उठा लेता है । गांधीवादी विचारधारा के समर्थक रहे डॉ. राधाकृष्णन के इस स्कूल में हर रोज बच्चों को गांधीजी के बारे में भी बताया और सुनाया जाता है । इसी स्कूल से पढ़े पयनी शेखर अब जिला शिक्षा अधिकारी बन चुके हैं, जिनका दफ्तर स्कूल के कैम्पस में ही है । वे कहते हैं कि पूर्व राष्ट्रपति की तरह ही इस स्कूल के बच्चों की टेक्नोलॉजी में खास रुचि है । उनकी हमेशा कोशिश रहती है कि बच्चों की इस रुचि में स्कूल उनका पूरा सहयोग करे ।

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