पूज्य श्री नारायण साँईं जी का माघी पूर्णिमा विशेष साँईं संदेश…
करोड़ों काम बिगड़ जाएँ तो चलेगा, पर मोक्ष तो होना ही चाहिए । ऐसा अनुभव पाओ कि दुर्गति न हो । कल्याण ही हो । जेल-बेल ये तो इंसानी व्यवस्थाएँ हैं, पर मन तो ईश्वर में ही टिका रहना चाहिए ! ईश्वर के अलावा कहीं भी, कुछ भी सार न था, न है, न होगा ! संसार तो दुःखालय है ही । परमात्मा का भजन करते रहो । जहाँ भी रहोगे आनंदालय होगा ! मतलब आनंद में निवास । कई करोड़ों काम सुधारे, पर मोक्ष का कार्य नहीं सुधरा, तो मानव जीवन मिलने का क्या फायदा ? अतः अपना काम बना लो । जीते-जी मुक्ति पाओ । अभी, यहीं । आज, अब से । इस कार्य को करने में डट जाओ, बाकी के काम दो नम्बर पर, एक नम्बर पर प्रायोरिटी दे दो इस काम को कि बस, कुछ भी हो – अपने आपको जानना है । अपने आपको सही अर्थों में जानोगे, तभी वास्तविक अनुभव पाओगे कि मरणधर्मा शरीर न तुम थे, न हो । तुम तो हो अबदल आत्मा ! नित्यमुक्त ! सर्व चिंताओं से मुक्त! अजर, अमर, अविनाशी ! न तुम्हें कोई बंधन में डाल सकता है, न मार सकता है ! तुम सदैव मुक्त हो ! ऐसे शरीर कितने लिए – छोड़ दिए ! तुम्हारा बनता – बिगड़ता कुछ नहीं । समुद्र में लहरों के बनने, बिगड़ने की नाईं ये तन बनता (जन्म लेना), बिगड़ता (मृत्यु) है ।
अपने स्वयं को जानो !
“स्वनामधन्यं राम हृदयं”
ॐ नारायणम् !