महिला दिवस की बधाई हो !!
ये कुछ ऐसी आजकल की महिलाएँ हैं जिनको देखकर अन्य महिलाएँ प्रेरणा लेती हैं । सिर्फ़ अपने शरीर से जन्मे बच्चों को ही अपना नहीं लेकिन ग़रीब- अनाथ बच्चों को भी अपनाने वाली सिंधु ताई एक वो माँ है जो एक मिसाल हैं की माँ बनने के लिए केवल गर्भ धारण करना ज़रूरी नहीं है उसके लिए माँ जैसा वात्सल्यपूर्ण हृदय चाहिए और ऐसा हृदय बनाकर उन्होंने १४०० से अधिक अनाथ बच्चे-बच्चियों को अपनाया है ।
(1) वो सड़कों पर भीख मांगती ताकि अनाथ बच्चों का पेट भर सकें
सिंधुताई सपकाल की जिन्दगी एक ऐसे बच्चे के तौर पर शुरू हुई थी, जिसकी किसी को जरूरत नहीं थी. उसके बाद शादी हुई, पति मिला वो गालियां देने और मारने वाला. जब वो नौ महीने की गर्भवती थीं तो उसने उन्हें छोड़ दिया. जिस परिस्थिति में वो थीं कोई भी हिम्मत हार जाता लेकिन सिंधुताई हर मुसीबत के साथ और मजबूत होती गईं. आज वो 1400 बच्चों की मां हैं !!
वो बच्चे जिनके खाने-पीने की चिंता करने वाला कोई नहीं था. सिंधुताई ने इन बच्चों को उस वक्त अपनाया जब वो खुद अपने लिए आसरा जुटाने के लिए प्रयास कर रही थीं.
सिंधुताई एक नाम से कहीं ज्यादा हैं. 68 साल की इस औरत के भीतर सैकड़ों कहानियां छिपी हुई हैं. सिंधुताई की फुर्ती को देखकर शायद ही आप अंदाजा लगा पाएं कि वो बुजुर्ग हो चुकी हैं. लोग उन्हें प्यार से ‘अनाथों की मां’ कहते हैं.
एक हंसता-खिलखिलाता चेहरा पुरानी बातों को याद करने के साथ ही बुझ जाता है. पर उनकी बातें किसी के लिए भी प्रेरणा बन सकती हैं. वो कहती हैं कि मैं उन सबके लिए हूं जिनका कोई नहीं है. वो अपने अब तक के सफर के बारे में बताते हुए सबसे पहले यही कहती हैं कि वो एक ऐसी संतान थीं जिसकी किसी को जरूरत नहीं थी. उनका नाम भी चिंधी था, जिसका मतलब होता है किसी कपड़े का फटा हुआ टुकड़ा.
हालांकि उनके पिता ने उनका पूरा साथ दिया और वो उन्हें पढ़ाने के लिए भी आतुर थे पर चौथी कक्षा के बाद वो अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सकीं. उन पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई और बाद में कच्ची उम्र में ही शादी कर दी गई.
इन सब बातों ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया. उन्होंने आत्महत्या करने की भी बात सोची लेकिन बाद में अपनी बेटी के साथ रेलवे-प्लेटफॉर्म पर भीख मांगकर गुजर-बसर करने लगीं. भीख मांगने के दौरान वो ऐसे कई बच्चों के संपर्क में आईं जिनका कोई नहीं था. उन बच्चों में उन्हें अपना दुख नजर आया और उन्होंने उन सभी को गोद ले लिया. उन्होंने अपने साथ-साथ इन बच्चों के लिए भी भीख मांगना शुरू कर दिया. इसके बाद तो सिलसिला चल निकला. जो भी बच्चा उन्हें अनाथ मिलता वो उसे अपना लेतीं.
अब तक वो 1400 से अधिक बच्चों को अपना चुकी हैं. वो उन्हें पढ़ाती है, उनकी शादी कराती हैं और जिन्दगी को नए सिरे से शुरू करने में मदद करती हैं. ये सभी बच्चे उन्हें माई कहकर बुलाते हैं. बच्चों में भेदभाव न हो जाए इसलिए उन्होंने अपनी बेटी किसी और को दे दी. आज उनकी बेटी बड़ी हो चुकी है और वो भी एक अनाथालय चलाती है.कुछ वक्त बाद उनका पति उनके पास लौट आया और उन्होंने उसे माफ करते हुए अपने सबसे बड़े बेटे के तौर पर स्वीकार भी कर लिया.
सिंधुताई का परिवार बहुत बड़ा है. उनके 207 जमाई है, 36 बहुएं हैं और 1000 से अधिक पोते-पोतियां हैं. आज भी वो अपने काम को बिना रुके करती जा रही हैं. वो किसी से मदद नहीं लेती हैं बल्कि खुद स्पीच देकर पैसे जमा करने की कोशिश करती हैं.
उनके इस काम के लिए उन्हें 500 से अधिक सम्मानों से नवाजा जा चुका है. उनके नाम पर 6 संस्थाएं चलती हैं जो अनाथ बच्चों की मदद करती हैं.
source : https://aajtak.intoday.in/story/sindhutai-sapkal-mother-of-1400-orphans-1-825554.html
(2) विश्व महिला दिवस पर अपराजित महिला…
अंतरराष्ट्रीय डिजायनर डॉ. रूमा दे रही हैं तीस हजार महिलाओं को रोजगार
यह ऐसी शख्सियत है जिसने बिना किसी अनुभव के जीवन यापन के लिए हैंड एंब्रायडरी कार्य शुरू किया और आज हस्तशिल्प के क्षेत्र में दर्जनों प्रतिष्ठित राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर 30 हजार महिलाओं को रोजगार दे रही है। अंतरराष्ट्रीय फैशन डिजायनर डॉ. रूमा देवी का नाम अब विश्व स्तर पर है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के एक दिन पहले महात्मा ज्योति राव फूले विश्वविद्यालय ने इन्हें डॉक्ट्रेट की मानद उपाधि प्रदान की। बाड़मेर के हैंडीक्राफ्ट को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग अंदाज में प्रदर्शित करने वाली बाड़मेर की यह पहली महिला है। 12 साल से हैंडीक्राफ्ट को समर्पित डॉ. रूमा देवी ने विश्व महिला दिवस के मौके भास्कर कार्यालय में अपने जीवन में संघर्ष और सफलता की कहानी बयां की। जो वर्तमान पीढ़ी के लिए मेहनत और काबिलियत को सही दिशा देने के लिए प्रेरित करती है।
महिलाएं अपने हुनर को पहचाने और उसे गति दें, परिवार को भी साथ देने की जरूरत: डॉ.रूमादेवी
परिवार भी उनका साथ दें। काबिलियत हमारे जज्बे पर निर्भर करती है। यदि आप कुछ करना चाहे तो कोई भी ताकत आपको रोक नहीं सकती। कोई भी महिला कमजोर नहीं है। बाल विवाह जैसी कुरीति काे सामाजिक स्तर पर समाप्त करना चाहिए ताकि बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं हो और बेटों की तरह बेटियों को भी अच्छी शिक्षा और सपोर्ट करें ताकि बेटियां किसी पर निर्भर नहीं रहें।
मेरा जन्म रावतसर गांव में हुआ। बचपन से ही जीवन में संघर्ष शुरू हो गया। चार साल की उम्र में मां का निधन हो गया। आठवीं तक बड़ी मुश्किल से पढ़ी। छोटी उम्र में ही शादी कर दी गई। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, लेकिन जीवन में हार नहीं मानी और अलग व नया काम करने का सोचा। योग्यता या अनुभव कुछ भी नहीं था। बचपन में दादी से हैंड एंब्रायडरी का कार्य सीखा था। हालांकि इस काम में कुछ आय ज्यादा नहीं थी। आसपास की महिलाओं के साथ मिलकर दीप देवल नाम से स्वयं सहायता समूह का गठन कर हाथ से कशीदाकारी का काम शुरू किया। इससे बचत कर एक पुरानी सिलाई मशीन खरीदी और स्थानीय व्यापारियों के लिए हस्तशिल्प के बैग कुशन कवर आदि बनाने शुरू किए। मेहनत की तुलना में कमाई बहुत ही कम थी। व्यापारियों से दाम बढ़ाने के लिए संघर्ष किया लेकिन मेहनत की तुलना में कमाई नहीं हो रही थी।
कशीदाकारी के सामान को सीधा बाजार में बेचंे, यह काम मुश्किल था। इसको बाजार में उतारना कोई सामान्य बात नहीं थी, पहले से ही कई लोग इस कार्य को कर रहे थे और एक ग्रामीण महिला के लिए बाजार ढूंढ़ना मुश्किल था। बाड़मेर में ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान से संपर्क किया जो महिला दस्तकारों के लिए कार्य कर रही थी। संस्थान से जुड़ने के बाद मैने दूर दराज गांवों व ढाणियों में महिलाओं से संपर्क किया जो यह कार्य कम दाम में कर रही थी। उनको कच्चा माल देकर तैयार माल को सीधे देश के बड़े शहरों में प्रदर्शनियों में भेजना शुरू किया। वर्ष 2010 में संस्थान में अध्यक्ष के रूप में कार्य करना शुरू किया और गांव-ढाणी तक पहुंचकर महिलाओं के लिए सेंटर स्थापित कर डिजाइन सहित अन्य प्रशिक्षण देना शुरू किया। हमारे द्वारा तैयार माल की मांग से आय में बढ़ोतरी होनी शुरू हुई। हस्तशिल्प को फैशन रैम्प पर उतारा। बाड़मेर के परिधानों को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली और कई फैशन डिजायनर जुड़ने लगे। जर्मनी, सिंगापुर, बैंकॉक, श्रीलंका में हैंडीक्राफ्ट की प्रदर्शनियां लगाई। हाल ही में अमेरिका की हॉवर्ड विश्वविद्यालय ने भी आमंत्रित किया। जल्दी ही न्यूयॉर्क में फैशन शो किया जाएगा।(जैसा कि डॉ. रूमा देवी ने बताया)
(3) 9 साल की उम्र में गाना और लिखना शुरू किया, टीनएज में ही बड़ी स्टार बन गईं थीं टेलर स्विफ्ट
इनके जीवन से मिली ये सीख
आसान नहीं, हमेशा मुश्किल रास्ते ही चुनिए।
जो आपको नहीं जानते उनकी आपकी बारे में जो भी राय है उसे नजरअंदाज कीजिए।
जीवन में अच्छे पलों की हमेशा कद्र करनी चाहिए।
दिल के टूटने से आप ज्यादा मजबूत बन जाते हैं।
मशहूर पॉप सिंगर टेलर स्विफ्ट ने अपने सातवें स्टूडियो एल्बम ‘लवर’ के नए ट्रैक ‘द मैन’ का म्यूजि़क वीडियो जारी किया है। वे इन दिनों इसका खूब प्रचार कर रही हैं। इस गाने में टेलर को पहचानना काफी मुश्किल है कि उन्होंने पूरे गाने में पुरुष का रूप धारण किया हुआ है। लोगों को उनका लुक लिओनार्डो डि कैप्रियो से मिलता-जुलता भी लग रहा है। म्यूजि़क इंडस्ट्री में महिलाओं के संघर्ष को बयां करता है उनका यह गाना और टेलर ने इसमें ‘जेंडर इनिक्वालिटी’ को ही मुद्दा बनाया है।
टेलर स्विफ्ट ना केवल अमेरिका में मशहूर हैं बल्कि उनके फैन्स दुनिया के हर कोने में हैं। अमेरिका के एक छोटे से शहर में जन्मी टेलर अपने पहले एल्बम के लॉन्च होने के बाद से ही म्यूजिक सेंसेशन बनी हुईं हैं। उनके गाने रिलीज़ होने के तुरंत बाद ही सभी चार्ट्स के टॉप पर पहंुच जाते हैं। वे लगभग 500 नामांकन में से 340 अवॉर्ड्स अपने नाम कर चुकी हैं। इनमें संगीत की दुनिया के सबसे बड़े अवॉर्ड्स भी शामिल हैं। वे जितना अच्छा गाती हैं उतना ही अच्छा लिखती भी हैं।
टेलर एलिसन स्विफ्ट का जन्म 13 दिसंबर 1989 को पेंसिलवेनिया के रीडिंग में हुआ था। उनके पिता का नाम स्कॉट किंग्सले स्विफ्ट है जो कि एक फाइनेंशियल एडवाइसर थे। उनकी मां का नाम एंड्रिया स्विफ्ट है जो होम मेकर थीं। टेलर के छोटे भाई भी हैं जिनका नाम ऑस्टिन है। टेलर ने अपनी शुरुआती पढ़ाई एल वर्निया मॉन्टेसरी स्कूल से की थी। इसके बाद उनका परिवार पेंसिलवेनिया के शहर व्योमिसिंग जाकर बस गया था। शहर बदलने के बाद टेलर ने व्योमिसिंग एरिया हाइ स्कूल से अपनी पढ़ाई आगे बढ़ाई। बचपन से ही संगीत में रुचि रखने के साथ ही टेलर को लिखने का भी शौक था। उन्होंने केवल 9 साल की उम्र में ही एक नेशनल पोएट्री कॉन्टेस्ट भी जीता था। उन्हें थिएटर करने में भी बहुत मजा आता था। इसीलिए उन्होंने एक यूथ थिएटर एकेडमी में परफॉर्म भी किया था। समय-समय पर एक्टिंग और सिंगिंग सीखने के लिए वे न्यूयॉर्क सिटी भी जाती रहती थीं। वीकेंड्स पर लोकल फेस्टिवल और इवेंट्स में भी परफॉर्म किया करती थीं। जल्दी ही उनकी संगीत में अच्छी पकड़ बन गई थी। केवल 11 साल की उम्र में ही वे अपनी मां के साथ एक म्यूजिक रिकॉर्डिंग कंपनी नेशविले रिकॉर्ड लेबल पहुंची। यहां उन्होंने अपने गानों का रिकॉर्डिंग टेप उन्हें सुनाया। लेकिन नेशविले ने उनके गानों को रिजेक्ट कर दिया और अपनी पहली ही कोशिश में उन्हें निराशा हाथ लगी। जल्द ही उन्होंने एक लोकल गिटारिस्ट से गिटार बजाना सीख लिया। इस समय वे केवल 12 साल की थीं। उन्होंने अपना पहला गाना ‘लकी यू’ लिखा और फिर नियमित रूप से गीत लिखने शुरू कर दिए जिन्हें उन्होंने स्कूल न जा सकने के दर्द को उभारने के रूप में प्रयोग किया। 2003 में स्विफ्ट ने न्यूयॉर्क के म्यूजिक मैनेजर डैन डिमेट्रो के साथ काम शुरू किया। आगे चलकर उन्होंने आरसीए रिकॉर्ड्स के लिए भी कई ओरिजिनल गाने गाए। यहींं से उनके संगीत करियर की शुरुआत हुई। इस वक्त वे केवल 13 साल की थीं। जल्द ही उन्हें रिजेक्ट करने वाली म्यूजिक रिकॉर्डिंग कंपनी नेशविले ने भी उन्हें बुलाकर साथ काम करने का कॉन्ट्रैक्ट साइन किया। फिर टेलर अपने पिता के साथ मेरिल लिंच नामक जगह पर नेशविले के ऑफिस शिफ्ट हो गईं। उन्होंने अपना ग्रैजुएशन पूरा किया। नेशविले में काम करते हुए स्विफ्ट ने कई मशहूर गायक अौर लेखकों के साथ काम किया। उन्होंने अमेरिका की मशहूर लेखिका लिज़ रोज़ से लेखन की बारीकियां भी सीखीं। 2005 में टेलर ने बिग मशीन रिकॉर्ड्स के साथ कॉन्ट्रैक्ट साइन किया। यहां उन्होंने अपने पहले स्टूडियो एल्बम पर भी काम शुरू किया। 24 अक्टूबर 2006 को 16 साल की उम्र में उन्होंने अपना पहला एल्बम ‘टेलर स्विफ्ट’ रिलीज किया। यह एल्बम बिलबोर्ड में पांचवे स्थान पर रहा। 157 हफ्तों तक यह बिलबोर्ड चार्ट में बनी रही। उन्हें इसके लिए कई अवॉर्ड्स भी मिले। नवंबर 2008 को उनका दूसरा एल्बम ‘फियरलेस’ रिलीज हुआ। इसके लगभग सभी गाने हिट हुए। ये 2009 की सबसे ज्यादा बिकने वाली एल्बम भी थी। 2010 ग्रैमी अवॉर्ड्स में टेलर ने कई अवॉर्ड्स जीते। 2009 में ‘वैलेंटाइन्स डे’ से उन्होंने फिल्मों में डेब्यू किया।
गांव में किसी को सरकारी कार्यालय में चक्कर नहीं लगाने दूंगी, 100 महिलाओं को दिला चुकी पेंशन
पिता की मौत होने के बाद 4 बेटियों में से एक रमीलाबेन मां को विधवा पेंशन दिलाने के लिए कई महीने तक सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाती रही। वर्ष 2013 में पिता की मौत होने के 6 महीने बाद रमीलाबेन ने मां को विधवा पेंशन दिलाने के लिए फार्म भरा। कई महीने तक सरकारी कार्यालयों का चक्कर लगाने के बाद रमीलाबेन ने मां को पेंशन दिलाई। सरकारी कार्यालय का चक्कर लगाते समय ही रमीलाबेन ने संकल्प लिया कि गांव की विधवा महिलाओं और वृद्ध पुरुषों को पेंशन के लिए परेशान नहीं होने दूंगी। रमीलाबेन विधवा महिलाओं और वृद्ध पुरुषों का खुद फार्म भरकर सभी डॉक्यूमेंट के साथ सरकारी कार्यालयों में जमा कराने लगी। इतना ही नहीं जहां जरूरत पड़ती है वे अपनी मोपेड पर महिलाओं और वृद्धों को बिठाकर ले जाती हैं। इसके लिए किसी से एक रुपया नहीं लेती हैं। आज भाटपोर के अलावा भाठा समेत आसपास के गांवों में विधवा महिलाओं और वृद्ध पुरुषों को सरकारी पेंशन दिलाने में मदद कर रही हैं। रमीलाबेन अब तक 100 से अधिक विधवा महिलाओं, वृद्ध पुरुषों और विकलांगों को सरकारी पेंशन दिला चुकी हैं।
मुझे आशीर्वाद दीजिए ताकि ऐसे ही मदद कर सकूं
मेरी मां ने विधवा पेंशन के लिए सरकारी कार्यालयों में चक्कर लगाई। गांव की अन्य महिलाओं को पेंशन या दूसरे कामों के लिए सरकारी कार्यालय के चक्कर न लगाने पड़े इसलिए मैं नि:स्वार्थ सेवा करती हूं। अब तक 100 से अधिक महिलाओं, वृद्धों की मदद कर चुकी हूं। किसी से एक रुपया नहीं लेती हूं। केवल इतना ही कहती हूं कि आप मुझे आशीर्वाद दीजिए ताकि दूसरे लोगों की भी इसी तरह से सेवा कर सकूं। -रमीलाबेन पटेल, विधवा महिलाओं की सेवा करने वाली।
(5) मां का प्यार एक व्यवस्थित बिजनेस खड़ा कर सकता है
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु raghu@dbcorp.in
ह मने अक्सर मां की यह आलोचना सुनी है कि ‘मां का अंधा प्यार बच्चे को बिगाड़ देता है।’ लेकिन हमें शायद ही कभी ऐसा उदाहरण सुनने को मिले, जहां प्यार की वजह से माता-पिता ने न सिर्फ बैंक की स्थायी नौकरी छोड़ी, बल्कि खुद का बिजनेस भी शुरू किया।
सौमी डे की छोटी बच्ची को जैम खाना पसंद था। लेकिन बतौर मां उन्होंने देखा कि उनकी बच्ची जब भी जैम खाती, बीमार पड़ जाती। बाद में उन्हें अहसास हुआ कि उनकी बेटी को प्रिजरवेटिव्स और आर्टिफिशियल रंगों से एलर्जी थी, क्योंकि वह कई तरह के पैकेज्ड फूड आइटम्स पर बुरी प्रतिक्रिया दे रही थी। अगर जैम नहीं होता था तो बच्ची को उसकी चाह लगी रहती थी। कुछ समय के लिए सौमी ने दुकानों से महंगे और विदेशी जैम खरीदे। लेकिन उन्हें महसूस हुआ कि उनकी बेटी जो भी खाती है, उसमें प्रिजरवेटिव न हो, यह सुनिश्चित करने का एक ही तरीका है कि वे घर पर ही जैम बनाएं। तब इस उत्साही मां ने इंटरनेट पर जैम बनाने के तरीके तलाशना शुरू किया और कुछ रेसीपीज चुनकर उन्हें अपने किचन में बनाने की कोशिश की।
पहला जैम स्ट्रॉबेरीज से बनाया गया था और इतना अच्छा बना कि बेटी को बहुत पसंद आया। फिर अलग-अलग फलों के साथ प्रयोग शुरू हुए। सौमी ने घर के बने जैम की बोतलों को परिवार और दोस्तों के साथ साझा करना शुरू किया। वे सभी उनकी रेसीपीज से इतने प्रभावित हुए कि सौमी को इन्हें बेचने की सलाह दी। यह 6 साल पुरानी बात है।
अब आते हैं साल 2015 में। कुरुक्षेत्र के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से सिविल इंजीनियर, इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट, आणंद, गुजरात से एमबीए, फिर एचडीएफसी, आईसीआईसीआई और मिझुओ जैसे बैंक्स में अलग-अलग भूमिकाएं निभाने वाली सौमी ने नौकरी छोड़ने और नवी मुंबई में अपना जैम बिजनेस शुरू करने का फैसला लिया क्योंकि मांग इतनी बढ़ गई थी कि संभालना मुश्किल हो रहा था।
सौमी ने अपने जैम ब्रैंड का नाम ‘यम्मीयम’ रखा, कुछ वैसा ही जैसा सभी बच्चे अपनी मां के हाथ का खाना खाने के बाद कहते हैं। यम्मीयम में सबसे अच्छे मौसमी फल ही इस्तेमाल होते हैं। जब भी सौमी और उनके दो कर्मचारी नई खेप बनाते हैं, सौमी खुद नवी मुंबई के थोक बाजार से ताजे फल लेकर आती हैं। उन सभी की खराब होने की तय समय सीमा होती है और पकाने की प्रक्रिया ऐसी है कि उनमें प्रिजरवेटिव्स की जरूरत कभी नहीं पड़ती है। अभी उनके पास जैम के आठ फ्लेवर हैं। उनकी फ्लेवर्स की रेंज में कीवी, अनार, संतरा, अंजीर, मलबेरी (शहतूत), आलूबुखारे और हरे सेब शामिल हैं। हाल ही में यम्मीयम ने 6 तरह के अचार भी बाजार में उतारे हैं।
सौमी के इस पूरे सफर में उनके पति गोपाल माल्या ने उनकी मदद की। गोपाल ने भी 2017 में बैंकिंग सेक्टर की अपनी नौकरी छोड़ दी और बतौर पार्टनर यम्मीयम से जुड़ गए। अब वे स्टार्टअप के लिए मार्केटिंग ऑपरेशंस का काम संभालते हैं। हालांकि अब तक यह दंपती इस नए ब्रांड के तहत 10 हजार बोतलें बेच चुका है। इस ब्रांड की सफलता के पीछे राज यह है कि दंपती यह सुनिश्चित करते हैं कि उनका उत्पाद उन सभी गुणवत्ता मापदंडों पर खरा उतरे, जो उन्होंने खुद के लिए और अपनी बेटी के लिए तय किए हैं। अगर क्वालिटी उनकी बेटी के लिए ठीक है तो स्वाभाविक है कि उसकी उम्र के देश के हर बच्चे के लिए ठीक होगी। अब उन्हें मुंबई के अलावा दूर-दूर से ऑर्डर मिल रहे हैं, जैसे नगालैंड, लद्दाख और यहां तक कि लक्षद्वीप से भी। जब 2015 में वास्तविक उत्पादन शुरू हुआ था, जब उनकी बिक्री की कोई तय संरचना नहीं थी और उन्होंने शुरुआती बिक्री फेसबुक पेज के जरिए की थी। फिर उन्होंने 2015 में ही अपनी वेबसाइट बनाई, जिससे उन्हें बिक्री का बेहतर प्रबंधन करने में मदद मिली।
फंडा यह है कि यह मत समझिए की मां का काम सिर्फ बच्चों को प्यार कर उन्हें बड़ा करना है। याद रखें, उनका प्यार एक पूरा बिजनेस खड़ा कर सकता है, न सिर्फ खुद के लिए, बल्कि पिताओं के लिए भी।
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(7) स्वयं सिद्धा तेजस्विनियाँ जो विश्व इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ गयीं ! त्याग हों या वैराग्य , अध्यात्म हो या धर्म लेकिन इनका भी योगदान कम नहीं !
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इस शख्स को मिलेगा ‘Best Mom’ का अवॉर्ड, वजह है दिलचस्प
कहते हैं एक महिला जब मां बनती है तो वह किसी भी बच्चे के लिए वह सबसे बढ़कर होती है. वहीं एक मां का स्थान दुनिया में कोई नहीं ले सकता है. लेकिन आज हम आपको पुणे के रहने वाले आदित्य तिवारी के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें ‘बेस्ट मॉम‘ के अवॉर्ड से नवाजा जाएगा. अब आप ये सोच रहे होंगे कि एक पुरुष को कैसे ‘बेस्ट मॉम‘ का अवॉर्ड कैसे मिल सकता है. आइए जानते हैं इसके पीछे की वजह. आदित्य तिवारी पुणे के रहने वाले हैं. 8 मार्च को दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है, वहीं इसी मौके पर बेंगलुरु में एक Wempower नाम से एक कार्यक्रम आयोजन किया जा रहा है, जिसमें वह भी हिस्सा ले रहे हैं. इसी कार्यक्रम में उन्हें ‘बेस्ट मॉम‘ का अवॉर्ड दिया जाएगा ।
ज्यादातर लोग ये सोच कर हैरान है कि एक पुरुष को बेस्ट मॉम का अवॉर्ड क्यों दिया जा रहा है? दरअसल साल 2016 में आदित्य ने डाउन सिंड्रोम से पीड़ित एक बच्चे को गोद लिया था. जिसके बाद वह अकेले ही बच्चे की परवरिश कर रहे हैं ।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा,
“मुझे दुनिया के बेस्ट मॉम में से एक के रूप में सम्मानित होने पर खुशी हो रही है. मैं अपने अनुभव शेयर करने के लिए काफी उत्सुक हूं. मैं बताना चाहता हूं कि एक स्पेशल चाइल्ड की परवरिश में क्या– क्या अनुभव होते हैं और सिंगल पैरेंट होने का वाकई में क्या मतलब होता है“.
आदित्य एक बेटे की परवरिश बखूबी कर रहे हैं. 1 जनवरी 2016 को उन्होंने 22 महीने के बच्चे को गोद लिया था, जो डाउन सिंड्रोम से पीड़ित है. बच्चे को गोद लेने के बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल गई ।
सोर्स : https://aajtak.intoday.in/gallery/women-s-day-pune-s-aditya-tiwari-to-be-world-s-best-mommy-adopted-child-with-special-needs-tedu-1-47011.html
अन्य भी कई महिलाओं ने , नारियों ने अपने हौसले को बुलंद रखकर विपरीत और कठिन परिस्थितियों में अपनी उन्नति की और कठिन सफ़र को तय किया !!
– नारायण साँईं