हनुमान जयंती, चैत्र पूर्णिमा का पावन मंगलमय संदेश
जिएंगे इस तरह
हमने ऐसा ही चाहा था कि हम जिएंगे अपनी तरह से और कभी नहीं कहेंगे —
मजबूरी थी, हम रहेंगे गौरैयों की तरह अलमस्त
अपने छोटे-से घर को कभी ईंट-पत्थरों का नहीं मानेंगे उसमें हमारे पन्नों का
कोलारूल होगा, दुःख-सुख इस तरह
आया-जाया करेंगे जैसे पतझर आता है, बारिश आती है। कड़ी धूप में दहकेंगे हम
पलाश की तरह तो कभी प्रेम में पगे बह चलेंगे सुदूर
नक्षत्रों के उजास में।
हम रहेंगे बीज की तरह अपने भीतर रचने का उत्सव लिए निदाघ में तपेंगे…ठिठुरेंगे पूस में अंधड़ हमें उड़ा ले जाएंगे सुदूर
अनजानी जगहों पर जहां भी गिरेंगे वहीं उसी मिट्टी की
मधुरिमा में खोलेंगे आंखें।, हारें या जीतें — ममुकाबला करेंगे
समय के थपेड़ों का उम्र की तपिश में झुलस जाएगा रंग-रूप लेकिन नहीं बदलेगा हमारे
आंसुओं का स्वाद नेह का रंग… वैसी ही उमंग हथेलियों की गर्माहट में वों में चंचल धूप की
मुस्कराट… कि मानो कहीं कोई अवसाद नहीं हाहाकार नहीं रुझ्न नहीं अधूरी
कामनाओं का !
तुम्हें याद होगा हेमंत की एक रात प्रतिपदा
की चंद्रिमा में हमने निश्चय किया था — अपनी अंतिम सांस तक
इस तरह जिएंगे हम कि मानो हमारे जीवन में
मृत्यु है ही नहीं है।
मृत्यु थी ही नहीं और मृत्यु हो सकती ही नहीं !!
तुम मानो हमारी मृत्यु हो सकती नहीं… साधो ! अब हम अमर भय ना मरेंगे… मृत्यु शरीर के साथ लगेगी । जिसने अपने आप को जान लिया, आत्मबोध जिसे हो गया, फिर वह स्वयं को अजर- अमर-अविनाशी-अजन्मा आत्मा ही मानता है ,जानता है, अनुभव करता है । जहां ना जन्म है ना मृत्यु है !
- जैन साध्वी बनने वाली पहली अमेरिकी महिला की कहानी
टैमी हर्बेस्टर जैन साध्वी बनने वाली पहली अमेरिकी महिला हैं। कैथोलिक परिवार में उनका जन्म हुआ था। 2008 में आचार्य श्री योगीश सेे दीक्षा लेने के बाद वे साध्वी सिद्धाली श्री बन गईं। मानव तस्करी रोकना उनके जीवन के सबसे बड़े लक्ष्यों में से एक है। तस्करों से छुड़ाए लोगों को फिर समाज में लाने के लिए वे काम कर रही हैं। इसके लिए वे अमेरिकी पुलिस को भी ट्रेनिंग दे रही हैं। पढ़िए, जैन साध्वी बनने की उनकी कहानी टैमी हर्बेस्टर की ही जुबानी…
बात 2005 की है। मैं अमेरिकी सेना में बतौर नर्स इराक में काम कर रही थी। मेरा काम घायल अमेरिकी सैनिकों का इलाज करना था। मैंने कई सैनिकों को अपने अंग खोते और मरते हुए देखा। एक दिन मेरी बटालियन काफिले के साथ शिविर में लौट रही थी। अचानक सड़क किनारे धमाका हुआ। सब लहूलुहान हो गए। एक सैनिक की जान चली गई। मैं काफिले में नहीं थी। अगर होती तो उसे बचाने की पूरी कोशिश करती। उस सैनिक के अंतिम संस्कार में अपने साथी सैनिकों के साथ खड़े हुए मैं पीड़ा के चरम पर थी। उस दिन एक नए सच से मेरा सामना हुआ था। अहिंसा का महत्व समझ में आया था। मैंने महसूस किया था कि हिंसा बहुत वीभत्स और कठोर है। यह मेरे मन को भी निष्ठुर बना रही है। मुझे लगा कि हिंसा और मौत का इतना आम हो जाना मानवता की सबसे बड़ी बीमारी है। इराक में मैंने बेकसूर बच्चों, महिलाओं, युवकों और वृद्धों की लाशों के बीच जिंदा लाशों को भोजन ढूंढ़ते हुए देखा। इन हालात ने बचपन से मन में उठ रहे कुछ सवालों की बेचैनी को और बढ़ा दिया था। मसलन, मैं कौन हूं? भगवान कौन है? सत्य क्या है? मेरी मां की मौत इतनी जल्दी क्यों हो गई? मेरे पिता से मेरी बनती क्यों नहीं? इन सवालों के उत्तर पाने के लिए मैं बचपन में चर्च में सेविका बनी थी। लेकिन सीनियर स्कूल में आते-आते मुझे महसूस होने लगा था कि इस तरह तो जवाब नहीं मिलेंगे। फिर कई आध्यात्मिक लोगों से मिली। एक मित्र ने आचार्य श्री योगीश से मिलवाया। उनसे मिले चार महीने ही हुए थे कि मुझे इराक युद्ध में नर्स के तौर पर जाना पड़ा। इराक में अपनी 16 महीने की ड्यूटी पूरी कर जब मैं अमेरिका लौटी तो कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में बैचलर इन कम्युनिकेशन काेर्स में दाखिला ले लिया। साथ ही विचार, आचरण और वाणी में मैंने अहिंसा का अभ्यास शुरू किया। शाकाहार अपना लिया। 24 की उम्र में मैंने दीक्षा ले ली। आचार्य श्री योगीश से मुझे साध्वी सिद्धाली श्री नाम मिला। अभी हम लोग अहिंसा और मानव तस्करी जैसे विषयों पर डॉक्यूमेंट्री भी बना रहे हैं। आज हम शायद पहले ऐसे जैन भिक्षु हैं, जो मानव तस्करी रोकने की दिशा में काम कर रहे हैं।
इराक युद्ध में हिंसा देख सैन्य नर्स से जैन साध्वी बनीं अमेरिका की टैमी, अब मानव तस्करी रोकने के लिए काम कर रही हैं
वर्ष 2005 में इराक में ड्यूटी के दौरान टैमी के कंधे पर गन रहती थी। युद्ध प्रभावित एक परिवार के बच्चे से मिलीं तो टॉफी देकर उसे हंसाया था। अब वे साध्वी सिद्धाली श्री बन गई हैं और दिनचर्या में ध्यान अहम हिस्सा बन गया है।
टैमी हर्बेस्टर तब…
…अब
इतनी दुखी हुईं कि इराक से फोन कर आचार्य से पूछा- दीक्षा कैसे लेते हैं…
- सावन ही आग लगाए तो कौन बुझाए
सोमवार की रात पेरिस के 850 सौ साल पुराने कैथेड्रल में आग लग गई। अब उस राख के ढेर के नीचे यादों की चिंगारियां सुलग रही हैं। ढेरों देशी-विदेशी फिल्मों की शूटिंग वहां हुई थी। वर्ष 1939, 1956 और 1996 में विक्टर ह्यूगो के उपन्यास ‘हंचबैक आफ नोट्रेडम’ से प्रेरित फिल्में बनी हैं। भारतीय फिल्में ‘लंदन ड्रीम्स’ और ‘बेफिक्रे’ में सितारों ने यहां ठुमके लगाए हैं। अयान मुखर्जी की रणवीर कपूर और दीपिका पादुकोण अभिनीत फिल्म ‘ये जवानी है दीवानी’ में भी इसके इर्द-गिर्द शूटिंग की गई थी। कैथेड्रल को बनाने में 100 वर्ष का समय लगा था। फ्रांस की सरकार ने संकल्प किया है कि वे उसे नए सिरे से बनाएगी। भवन निर्माण की आधुनिक टेक्नोलॉजी से कुछ ही वर्षों में इमारत बनाई जा सकती है। कैथेड्रल को इस तरह बनाया जाएगा कि वह इमारत का पुनर्जन्म लगे और शक्ल-सूरत विगत जन्म जैसी ही रहे गोयाकि जलकर नहीं जला, नष्ट होकर नष्ट नहीं हुआ। मनुष्य की इच्छा शक्ति और प्रतिभा हमेशा सृजन करती रही है। मानो कहती हो कि देखना है, जोर कितना बाजु-ए-वक्त में है।
इमारतों में आग लगने की दुर्घटनाओं पर फिल्में बनती रही हैं। हॉलीवुड की फिल्म ‘बर्निंग इन्फर्नो’ से प्रेरित होकर बलदेवराज चोपड़ा ने फिल्म बनाई थी परंतु उन्होंने एक चलती हुई ट्रेन में आग लगने की पृष्ठभूमि रखी थी। यह बहुसितारा फिल्म असफल रही थी। मेहबूब खान की ‘मदर इंडिया’ में खलनायक गरीब की फसल में आग लगा देता है। इसी दृश्य की शूटिंग के समय नरगिस को लपटों से सुनील दत्त ने बचाया था और उनकी प्रेम-कहानी अंकुरित हुई थी।
फराह खान की फिल्म ‘ओम शांति ओम’ में एक फिल्म सेट पर लगी आग में नायिका जल जाती है, क्योंकि खलनायक ने बाहर निकलने का द्वार बंद कर दिया था। विमल रॉय की जन्म-जन्मांतर की प्रेम कहानी को प्रस्तुत करने वाली महान फिल्म ‘मधुमति’ का ही चरबा थी ‘ओम शांति ओम’। ज्ञातव्य है कि बिमल रॉय की कंपनी आर्थिक मुसीबत झेल रही थी और वे बंगाल लौटने का विचार कर रहे थे। उनके मित्र ऋत्विक घटक से उन्होंने अपनी बात कही। जीनियस घटक ने उनके दफ्तर में ही बैठकर ‘मधुमति’ की पटकथा लिख दी। इस फिल्म की सफलता ने बिमल रॉय को राहत प्रदान की। सलिल चौधरी और शैलेन्द्र ने सार्थक माधुर्य रचा, जिसके कारण दर्शकों ने बार-बार यह फिल्म देखी। शैलेन्द्र ने इस फिल्म में मिलन-गीत, जुदाई-गीत, लोकगीत और एक मुजरा भी लिखा है। कबीर का प्रभाव देखिए, ‘मैं नदिया फिर भी मैं प्यासी/ भेद ये गहरा बात जरा सी..’।
कबीर, अमीर खुसरो और रवींद्रनाथ टैगोर का प्रभाव अनगिनत लोगों पर रहा है। नजरूल इस्लाम भी सृजन सागर में लाइट हाउस की तरह रहे हैं। सचिनदेव बर्मन ने ‘मेरी सूरत तेरी आंखें’ के लिए नजरूल इस्लाम प्रेरित धुन बनाई थी, ‘पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई/ इक पल जैसे इक युग बीता/ युग बीते मोहे नींद न आई..’। संस्कृति संसार में कोई सरहद नहीं है। ब्रह्मांड भी उसकी सीमा नहीं है।
फ्रांस में ऐतिहासिक महत्व की दिशा-निर्देश करने वाली क्रांति हुई। वहां महान चित्रकारी की गई, उपन्यास लिखे गए हैं। इतना ही नहीं फिल्म समालोचना का प्रारंभ भी फ्रांस में ही हुआ है। ब्रिटेन के अधीन होने के कारण हमारे यहां से अनेक लोग आॅक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज गए परंतु फ्रांस की संस्कृति की ओर हम आकर्षित नहीं हुए, जबकि संस्कृति के मामले में भारत और फ्रांस एक-दूसरे के पूरक हो सकते थे। ओसबोर्न विश्वविद्यालय और गुरु रवींद्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन में कुछ साम्य है। ज्ञातव्य है कि सीन नदी के तट पर ‘महाभारत’ प्रस्तुत किया था। यह नाटक महान रंगकर्मी पीटर बक्स ने प्रस्तुत किया था और नौ घंटे की अवधि का था।
बहरहाल, कैथेड्रल में रखी महान पेंटिंग्स का जल जाना संस्कृति संसार की बड़ी दुर्घटना है। इमारत तो फिर बन जाएगी परंतु उन पेंटिंग्स की भरपाई असंभव है। ज्ञातव्य है कि विक्टर ह्यूगो के उपन्यास का नायक कुबड़ा था और उसे अत्यंत सुंदर स्त्री से प्रेम हो जाता है। जीना लोलाब्रिगिडा ने सुंदरी की भूमिका निभाई थी। इसी फिल्म का भारतीय संस्करण अमिया चक्रवर्ती की फिल्म ‘बादशाह’ थी, जिसमें शंकर-जयकिशन ने संगीत रचा था। गौरतलब है कि कहीं भी आग लगने पर पानी उसे बुझा देता है। अमेरिका में जंगल में लगी आग बुझाने का एक अलग विभाग है। इस विषय पर भी हॉलीवुड में फिल्म बन चुकी है। मनुष्य के उदर में भूख की ज्वाला भड़क जाती है तो पाचक द्रव्य भी उत्पन्न होता है। इस तरह मनुष्य के शरीर में आग और पानी एक ही समय में सहअस्तित्व बनाए रखते हैं। दुःख की बात है कि समुदायों में वैमनस्य फैलाया गया है। चुनाव जीतना इस कदर जरूरी बना दिया गया है मानो सत्ता ही प्राणवायु है।
जयप्रकाश चौकसे jpchoukse@dbcorp.in
Comments (2)
Palak
April 20, 2019 9:16 amJeewan jeene ka sahi dhang sikhne Mila h🙏🙏
Palak
April 20, 2019 9:17 amJeewan jeene ka sahi dhang sikhne Mila h🙏🙏 yah sandesh sabhi ko avashya padhna chahiye