नारायण साँई के दिल की बात…
आज 5 दिसम्बर, 2018, बुधवार है और बुधवार को अक्सर इस सूरत के सचिन-नवसारी रोड़ पर स्थित लाजपोर गाँव के निकट बनी लाजपोर सेन्ट्रल जेल पर मेरी मुलाकात लेने के लिए शाम को कई लोग पहुँच गये । उनमें से मुख्य रूप से थे ओमभाई अजमेर वाले और उनके कुछ साथीगण जो वर्षों से दैवी कार्यों में रत रहते हैं | श्री ओमभाई का परिवार वर्षों-वर्षों से आश्रम से जुड़ा है और उनके पिताजी को भी मैं बचपन से ही मेरे पिताश्री के साथ मधुर, आध्यात्मिक स्नेह संबंधो से जुड़े हुए देखता रहा हूँ | अभी पाँच-सात दिन पहले ही मैं ओमभाई को याद कर रहा था और आज उनको मैंने अपने समक्ष देखा – ये टेलीपैथी नहीं तो क्या है ? जिसे आप याद करो, सहसा जो यादों में आए उसे आप बिना मैसेज दिये, बिना टेक्नोलॉजी का उपयोग किए अपने सामने पाओ तो इसे क्या कहा जायेगा ? कि संदेश पहुँचाने-प्राप्त करने की क्षमताएं आज भी हैं जिनका चाहे हम इस्तेमाल नहीं करते, ये अलग बात है परंतु इसका मतलब ये नहीं कि ये केवल कपोल कल्पना मात्र हैं या अनुमान है या सिर्फ केवल ये अनुमान है – ऐसा बिल्कुल भी कहा नहीं जा सकता ! खैर…
खुशखबरी और भी है कि जेल के हार्डकोर-हाई सिक्युरिटी से मुझे आज शाम 5 बजे के करीब बाहर निकाल दिया है । अब जेल के कैदी जिन्हें पता चला है और कई जेल के कैदी जो बार-बार मुझसे High Security Zone से बाहर आने के लिए प्रार्थना करते थे, आग्रह करते थे – उनकी मनोकामना भी पूरी हुई है | जो जेल से बाहर हैं वो चाहते हैं कि मैं जेल से बाहर आऊँ । जो कैदी जेल में है वो भी चाहते हैं कि मैं जेल के अंदर बनी जेल (HS) से बाहर आऊँ क्योंकि HS में न वो भीतर आ सकते है और ना ही मैं बाहर आकर उनसे मिल सकता हूँ | HS की 23 नंबर की वह छोटी-सी कोठरी में दो महिने में 2 दिन कम थे और मैं बाहर आया हूँ । अब कल से जिनको पता चलेगा – मेरे यार्ड के बाहर उनका मुझसे मिलने के लिए तांता लग जायेगा ! मैं C-6-2 में हूँ और पूरी बैरेक में एक निरंजन ! अकेला । क्योंकि नियम यह है कि एकांतवास चाहे बिना, मांगे बिना, ध्यान-प्रार्थना के उद्धेश्य के अलावा किसी को स्वेच्छा से रखा नहीं जा सकता है | किसी ने अगर गंभीर तरह का अपराध किया है तो सजा के रूप में रखा जा सकता हैं | मुझे तो हर कडक सजा में भी ईश्वर की कृपा का व उसके स्मरण का अहसास हो रहा है | लेकिन, हार्डकोर से बाहर आने के लिए न्यायालय में अरजी दी गई और यह माननीय कोर्ट के फैसले के अनुसार हार्डकोर से बाहर निकाला गया है | मुलाकात में आए हुए लोगों को जब ये पता चला कि HS से बाहर आ गया हूँ तो वे भी बड़े प्रसन्न हुए |
मेरी मुलाकात में आए एक साधु-महात्मा ने बड़ी ही श्रद्धा, भक्ति से मुझे प्रणाम करते हुए कहा कि भगवान राम भी जेल में हैं, आशारामबापू भी जेल में हैं और आप नारायण साँई भी जेल में हैं | अयोध्या में राम मंदिर बनना जब तक शुरू न होगा, आशारामबापू जेल से बाहर न आयेंगे और आप नारायण साँई जब तक जेल से रिहा न होंगे हमें चैन नहीं आयेगा | आप ही बताओ हम क्या करें ? हम जेल भरो आंदोलन करें या फिर आमरणन अनशन करें या सत्याग्रह करें ? समझ नहीं आता । जब तक भगवान और भगवान के प्यारे साधु-संत जेल में है तब तक हम अब चैन की नींद कैसे सो सकते हैं ? अब आप भी लाख रोकने की कोशिशें करोगे, हमें धीरज रखने को कहोगे – हम बिल्कुल भी माननेवाले, सुननेवाले नहीं है | अब बहुत हो गया आपका एकांतवास और कारावास में निवास… यह देश आपको देखना चाहता है, दुनिया को आपकी जरूरत है | भारत आपकी बेसब्री से प्रतिक्षा कर रहा है – ये दुनिया आपको देखना चाहती है, सुनना चाहती है… आप जेल से बाहर आईये वरना हमें जेल भरो आंदोलन करना होगा और हम भारत की सभी जेलों को भर देंगे कि नारायण साँई को बेल दो, मुक्त करो या फिर हमको जेल दो !
मैं उन महात्मा की बातें सुनता रहा । मेरे मुख से एक शब्द भी निकलते नहीं बन रहा था और उनकी तीव्र भावना के आगे, निरन्तर धाराप्रवाह इस तरह वे बोलते जा रहे थे कि मुझे बोलने का उन्होंने एक मौका तक नहीं दिया, भीड़ में वे ओझल हो गए और वह टेलीफोन (मुलाकात में बीच में शीशा रहता है – इधर की तरफ और उधर की तरफ टेलीफोन रहता है जिससे आपस में दो व्यक्ति बात कर सकते है) उन्होंने दूसरे व्यक्ति के हाथ में थमा दिया और हाथ जोड़कर भीड़ में अदृश्य हो गए | मैं उनको कुछ समझने का प्रयत्न न कर पाऊं इसलिए या फिर पीछे खड़ी भीड़ को दर्शन में सुगमता हो इसलिए ये तो मैं समझ ही नहीं पाया ! जब दूसरी एक स्त्री के हाथ में वह फोन का रिसीवर आया तो वह मुझसे बोली – आपकी शादी (ब्याह) कराना चाहती हूँ मैं | मैंने कहा कि मेरी शादी तो हो चुकी ! तो उसने कहा – ऐसी कैसी शादी ? कैसी पत्नी कि जो सकंट के समय पति का साथ न दे, वह भी कोई पत्नी है ? हमने तो सुना है – धीरज, धर्म, मित्र और नारी, आपतकाल परखिए चारी । कि धीरज-धर्म-मित्र और नारी की परीक्षा ही आपतकाल में दुःख-कष्ट-विपदा के समय होती है | दुःख के वक्त साथ देनेवाली ही तो असली पत्नी कहलाने के काबिल है ! हम चाहे आपका दूसरा विवाह करायेंगे लेकिन इस पत्नी को आपकी पत्नी के रूप में मानने का हमारा तो दिल ही नहीं करता, हम क्या करें ? मैं सुनता रहा… वह बोलती जा रही थी ! मैंने मन ही मन सोचा कि मैं इसे क्या बोलूं ? क्या कहूँ ? इतने में वह फोन तीसरे व्यक्ति ने ले लिया और फिर चौथे ने इस तरह कब 20 मिनट का समय पूरा हो गया, पता ही न चला ! मेरे बचपन के मित्र भी आए थे मिलने कि जिनके साथ मैं बचपन में खेला करता था । उनसे आज भी मेरे मधुर संबंध है और 2-4-6 महिने में एकाध बार मुझसे मिलने के लिए, मेरा हालचाल पूछने के लिए वे आ ही जाते हैं | आज भी हम वही बचपन में जैसे एक-दूसरे को बुलाते थे वैसे ही तू-तड़ाके से ही संबोधित करते हैं | चूँकि यह आत्मीयता हैं, स्नेह हैं । इसमें दोनों पक्षों के बीच मनमुटाव या दुःख की कोई बात नहीं होती | उनसे मिलकर, उनको देखकर मैं बचपन की ज़िन्दगी में पहुँच जाता हूँ और मासूमियत झकझोरती हुई मेरे भीतर मानो ज़िंदा हो जाती है ।
यहाँ मैं अक्सर पढ़ता-लिखता रहता हूँ । आज एक जानकारी मेरे पास में आयी कि रामचरित मानस में जिस दंडकारण्य का उल्लेख आया है वह दंडकारण्य दक्षिण गुजरात का डांग है – जहाँ भरपूर कुदरती सौन्दर्य है । “पांडव” गुजरात राज्य के दक्षिण भाग में आया हुआ एक छोटा सा गाँव है आह्वा से चिंचली होकर महाराष्ट्र राज्य के बाबुलधार जाने वाले मार्ग पर यह गाँव स्थित है । पांडवा गाँव यहाँ पर पांडव गुफा के नाम से पड़ा है । यहाँ पर गांव के नाम पर आदिवासियों की बिखरी हुई झोपड़ियाँ है । 100% आदिवासी रहते हैं । महाभारत में भी उल्लेख है कि पांडवों ने यहाँ पर 1 वर्ष बताया था । यहाँ पर सुंदर प्राकृतिक झरना भी है । विस्तार से छपी हुई गुजराती समाचार (गुजरात मित्र) 30 अक्टूबर 2018, पेज 10 पर मैंने पड़ी तब सहसा मन में इस स्थान पर जाने की जिज्ञासा हो आई ।
शतदल (गुजरात समाचार) 5 -12 -18 के पेज नंबर 12 पर काल्पनिक “2.0” का वास्तविक कनेक्शन में जय वसावड़ा का वह लेख पढ़ा जिसमें भारत के असली पक्षी राजन वैज्ञानिक की बात है जो आजकल 2.0 फिल्म के संदर्भ में हकीकत है और 12 नवंबर 1896 को जन्मे हुए सलीम अली जो 91 वर्ष की उम्र में 20 जून 1987 को गुजर गए । भारतीय पक्षी शास्त्र में इनका नाम भुलाया नहीं जा सकता – की रसप्रद सत्य कथा है जो आज के युग में समझने की है । उनका एक मशहूर कोट है – “मनुष्य को रिटायर होने के बाद की एज में समय दिया जा सके ऐसा कोई शौक जवानी में ही डेवलप करना चाहिए वरना बड़ी उम्र में लंबा जिया नहीं जाएगा,थकावट और बोरियत के कारण । बर्ड वाचिंग इस तरह जवानी और जीवन रस को टिकाए रखने के लिए दीर्घायु बनाने की हॉबी है ।” पूरा लेख मैंने पढ़ा और पढ़कर विचार आया कि सीमेंट कंक्रीट के जंगलों व शहरीकरण ने न जाने कितने मूक पक्षियों के जीवन अस्तित्व पर खतरा पैदा कर दिया है । पता नहीं मानव कब समझेगा ??
हंसमुख गब्बर का 11वें पेज पर लेख की नॉर्दन लाइट पृथ्वी पर कुदरती लाइट्स का स्वयंभू लाइट शो…
जो कि उत्तर नॉर्वे में ट्रोमसो नाम के द्वीप पर है और सितंबर से मार्च महीने के दौरान हजारों टूरिस्ट स्वयंभू आकाश में देखने को मिलती हरी – नीली – लाल नॉर्दन लाइट्स देखने जाते हैं । मन ही मन मैं मानो विश्व की सैर पर निकल पड़ा हूँ । वैसे मन में बड़ी अद्भुत शक्तियाँ छिपी है । मन ही कल्पवृक्ष है । अनंत योग्यताएं हमारे भीतर समाहित हैं, उन योग्यताओं को, भीतर छुपे हुए सामर्थ्य को हम कितना निकाल पाते हैं यह हमारे ऊपर निर्भर करता है ।
क्या आप सूरत की तेजस्विनी भाषा वाधाणी (14 वर्ष) को जानते हैं ? यह सूरज की ब्रांड एंबेसडर है और इन दिनों चर्चा में है । बहुमुखी प्रतिभा की धनी है और ओजस्वी अध्यात्म की वेदांतिक जीवन शैली जीने की राह पर आगे बढ़ रही है । केवल 14 वर्ष की उम्र में वह गुजराती, हिंदी, संस्कृत और कभी अंग्रेजी में भी वक्तव्य देती है । अब तक कुल 171 ट्रॉफी, मेडल, सम्मान पत्र इसे मिल चुके हैं । कुल 301 कार्यक्रमों में मुख्य वक्ता के रूप में वक्तव्य दे चुकी है । हाल ही में संस्कृत भारती द्वारा संस्कृत संबोधन का आयोजन सूरत के नवयुग कॉलेज में हुआ था जिसमें ओजस्वी अध्यात्म की प्रभावशाली वाणी में तेजस्विनी कुमारी भाषा हेमंत भाई वाधाणी ने अपने भाववाही शैली के साथ देव वाणी संस्कृत में कहा कि – संस्कृत भाषा मम मातृभाषा: , मम्मी अर्थात मम मातु: माता एषा । मम मातामही । संस्कृतं न केवलं प्राचीना, किन्तु प्रचिन्तमा । विश्वस्य प्रथमः ग्रंथ: ऋग्वेद: एव । अहो अद्भुतम् । निसन्देहेन संस्कृतं न केवलं परीक्षाविषयः, किन्तु एष: श्रीवनिवधयः अर्थात संस्कृत भाषा केवल परीक्षा का विषय नहीं लेकिन वह जीवन विषय है । संस्कृतं अस्माकं चरित्रनिर्माण करोति । येन अन्तःशुद्धि भवति । उक्तः महा संस्कृतम् अतीव रोचते ।
उपस्थित सभी चकित हो रहे थे कि इतनी छोटी बच्ची कितना सुंदर संस्कृत में शुद्ध उच्चारण के साथ धाराप्रवाह बोल रही है । हमारे देश में प्रतिभा की कमी नहीं है । हम उनकी योग्यताओं को पहचान नहीं पाते और उचित अवसर नहीं दे पाते । अगर हम ऐसा कर पाने में सफल हुए तो विश्व का सबसे महान विकसित देश भारत हो सकता है ।