एकांत की तलाश

क्या वो समय कभी आएगा जब मनुष्य जीने के अधिकार पर कायम रहेगा और दिन की चमकदार रोशनी और रात की शांतिपूर्ण खामोशी के साथ खुशी मनाएगा । क्या आएगा कभी ऐसा समय ? क्या वह सपना हकीकत बन सकेगा कभी ? कि धरती के इंसान ही मांस से ढक जाने के बाद और मनुष्य के खून में मिल जाने के बाद साकार हो सकता है । होगा अगर ज्ञान होगा, होगा अगर जीवनमुक्ति का अनुभव होगा, तभी मनुष्य वास्तविकता में जीते-जी मुक्ति के आनंद को पा सकेगा । मैंने एकांत की तलाश प्रार्थना करने और एक साधु का जीवन बिताने के लिए नहीं की क्योंकि प्रार्थना तो हृदय की गति होती है और वह हजारों स्वरों की चीख और चिल्लाहट के बीच भी परमेश्वर के कानों तक पहुँच जाती है । ऐसा जीवन जीने का मतलब है कि शरीर और आत्मा को यातना देना और इच्छाओं को मारना । ये ऐसी जिंदगी है जिससे मुझे चिढ़ होती है । आखिर परमेश्वर ने शरीर को आत्मा का मंदिर बनाया है और यह हमारा मकसद है कि परमेश्वर ने हम पर जो भरोसा जताया है उसे बनाकर रखें । मैंने एकांत की तलाश की तो इसलिए की कि मुझे उन लोगों के मुँह न देखने पड़ें जो उस दाम में अपने आपको बेचते है और उसी दाम में खरीदते भी है । जो आत्मिक और मौखिक हिसाब से उनसे कम मिलता है । मैंने एकांत की तलाश इसलिए की ताकि मेरा सामना उन औरतों से न हो जो अपने होंठों पर एक हजार मुस्कान लिए घमंड से घूमती रहती है । जबकि उनके हजारों दिलों की गहराईयों में बस एक ही मसकद होता है । मैंने एकांत की तलाश इसलिए की ताकि अपने आपको उन आत्मसंतुष्ट व्यक्तियों से छुपा सकूँ जिन्हें जगत में उस सत्य का प्रेत दिखाई देता है और जो चिल्ला-चिल्लाकर दुनिया से कहते हैं कि उन्होंने सत्य के सार को पूरा का पूरा पा लिया है । मैंने इसलिए यह दुनिया को छोड़ा और एकांत की तलाश की क्योंकि मैं उन साधारण लोगों को शिष्टाचार दिखा-दिखाकर थक गया था । जो ये मानते है कि विनम्रता तो एक तरह की कमजोरी है और दया एक तरह की कायरता है और अकड़ एक तरह की ताकत है । मैंने एकांत की तलाश इसलिए भी की क्योंकि मेरी आत्मा उन लोगों की संगति से तंग आ गई थी जो पूरी निष्ठा के साथ ये मानते है कि सूरज, चाँद और सितारे बस उनके खजानों में उगते हैं और बस उनके बागों में भी खिलते है । मैं उन पद चाहनेवालों से भागा जो लोगों के सांसारिक भाग्य को चकनाचूर कर देते हैं और उनकी आँखों में बागों की धूल झोकते हैं और उनके कानों में बेमतलब की आवाजें भर देते हैं । मैं उन लोगों को छोड़ आया जो अपने उपदेशों के मुताबिक जीते नहीं है वे लोगों से वो सब माँगते हैं जो वे खुद के लिए नहीं चाहते । मैंने एकांत की तलाश इसलिए की क्योंकि मुझे किसी इंसान से तब तक रहम नहीं मिला जब तक मैंने अपने दिल से उसकी पूरी कीमत अदा नहीं कर दी । मैंने एकांत की तलाश इसलिए की क्योंकि मुझे उस महान और भयंकर संस्था से चिढ़ है, जिसे लोग सभ्यता कहते हैं । वह सुदृढ़ विकरालता, जिसे मनुष्यों की निरंतर दीनता पर खड़ा किया गया है । मैंने एकांत की तलाश इसलिए की क्योंकि इसमें आत्मा के लिए और दिल के लिए और देह के लिए पूरा का पूरा जीवन है । मुझे वह अनंत घास के मैदान मिले, जहाँ सूरज की रोशनी विश्राम करती है । जहाँ फूल अपनी खुशबू अंतरिक्ष में छोड़ते है और जब जहाँ धाराएँ गुनगुनाती है और गुनगुनाती हुई सागर की राह तय करती हैं । मैंने वो पहाड़ देखे जहाँ मुझे वसंत का नूतन जागरण और ग्रीष्म का रंगीन बसेरा मिले, शीत का । मैं परमेश्वर के राज्य के इस दूरदराज कोने में इसलिए आया ताकि मुझे संसार के रहस्य को जानने की और परमेश्वर के सिंहासन के नजदीक पहुँचने की एक ललक थी, एक भूख थी और मैंने इसलिए एकांत की तलाश की और मैं उस तलाश में सफल हो पाया और मैं उस एकांत की तलाश को पूर्ण करके आत्मसंतुष्ट और सुखी बन पाया ।

– नारायण साँईं

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