कैदियों को भी मानव अधिकार : सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली, (जी.टी.आई) 29 मार्च, 2018 देश की जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदियों को रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी के साथ बताया है कि कैदियों को भी मानवाधिकार है । उनको जानवर के समान जेल में नहीं रख सकते । अगर कैदियों को अच्छी तरह से रख नहीं सकते तो उन्हें छोड़ देना चाहिए । आदरणीय सुप्रीम कोर्ट ने बताया है कि बहुत सारे कैदी जमानत के अभाव में और कितने ही सामान्य गुनाह में जेल में होते है । जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी होते है, यह बदनसीबी है । अगर जेल कैदियों से भरा हुआ हो तो जेलों में सुधार करने का कोई अर्थ ही नहीं है । अगर कैदियों को ठीक तरह से रख नहीं सकते हों तो छोड़ देना चाहिए । देश की विविध जेलों में 600 प्रतिशत खिचोखीच भरी हुई होने की जानकारी मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा निवेदन किया था । देश की 1382 जेलों में अमानवीय रूप से कैदियों को रखा जाता है इस विषय पर सुनवाई चल रही है ।
सुधार सुझाव : ओपन जेल
स्मिता चक्रवर्ती पिछले १५ वर्षों से भारत में खुली जेलों के लिए काम कर रही हैं। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी बात मानते हुए खुली जेल की स्थापना करने को कहा है। दुनिया के महान विचारक सदियों से कहते आए हैं कि किसी अपराध का हेतु बदला लेना नहीं अपितु अपराधी के पुनर्वास का होना चाहिए। गांधीजी ने भी कहा था कि अपराधी से नफ़रत मत करो, अपराध से करो। अगर व्यवस्था के द्वारा ही अपराध का बदला अपराध से दिया जाएगा तो इस क्रम का कभी अंत नहीं होगा। वैसे कोई भी अपराधी बनकर पैदा नहीं होता। न्यायतंत्र व सरकार को मात्र पीड़ितों के लिए ही नहीं, अपराधियों के लिए भी सोचना व काम करना होगा तभी हम एक स्वस्थ समाज की रचना कर पाएंगे। बन्द जेलों में राजस्थान राज्य का कैदियों के पीछे खर्च औसतन ७,०९४ रुपए प्रतिमाह, प्रति बन्दी है। वहीं खुली जेल (Open Jail) में प्रतिमाह, प्रति कैदी खर्च सिर्फ ५०० (पांच सौ) रुपए मात्र ही है। जेलों में प्रत्येक ६ कैदी पर एक स्टाफ निगरानी के लिए एक स्टाफ की जरूरत है जबकि खुली जेलों में ८० कैदियों पर केवल एक स्टाफ (सुरक्षाकर्मी) चाहिए। अच्छे चाल – चलन और आधी सजा काट चुके कैदियों को खुली जेलों का लाभ अवश्य मिलना चाहिए।
नीदरलैंड देश में कैदियों पर किए गए प्रयोगों पर सफलता मिलने पर उस मॉडल को हमारे देश में लागू किया जा सकता हैं जिससे देश में कैदियों की संख्या को घटाया जा सके, जेलों को युनिवर्सिटी या अस्पताल या शरणार्थियों की शरणस्थली में तब्दील किया जा सके। कोई भी देश विकास के पथ पर तभी अग्रसर माना जा सकता है जब वो बढ़ते अपराधियों की संख्या घटा सके, अपराधियों का मानस परिवर्तन कर उनमें अपराध प्रवृत्ति मिटा सके, जेलों में कैदियों की संख्या घटा सके – इन मापदंडों के आधार पर वह देश सही मायनों में विकास की ओर गति कर रहा है ऐसा कहा और माना जा सकता है। राजस्थान पत्रिका में दिनांक १५ दिसम्बर २०१९ पेज नंबर ११ पर प्रकाशित खबर के अनुसार नीदरलैंड में पिछले एक दशक में ११,००० (ग्यारह हजार) कैदी घटे और मनोवैज्ञानिक इलाज कर के घटाए गए कैदियों के कारण पिछले पांच वर्षों में २३ जेलों को बन्द करना पड़ा व बन्द हुई जेलों को घरों व होटलों में तब्दील करना पड़ा।
कैदियों की संख्या घटाने के लिए नीदरलैंड में विशेष कैदी पुनर्वास कार्यक्रम चलाया जा रहा है जिसे टीबीएस के रूप में जाना जाता है। लिडेन विश्वविद्यालय में अपराध शास्त्र की प्रोफेसर मिरांडा बुने ने जेल में कैदियों की संख्या घटने का अध्ययन किया। उनका कहना है कि बाकी देशों में अपराधियों को दोषी ठहरा कर सजा सुना दी जाती है जबकि हमारे यहां मनोरोग संस्थान है जहां लोगों को केवल जवाबदेह नहीं ठहराया जाता। यहां उन्हें पहले कम से कम ४ साल की सजा के साथ पुनर्विचार का अवसर दिया जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इससे जेल की आबादी पिछले एक दशक में बहुत कम हो गई है।
पूरे यूरोप में सबसे कम कैदियों कि संख्या के लिहाज से नीदरलैंड तीसरे स्थान पर है। यहां प्रति एक लाख लोगों पर ५४ कैदी हैं। कानून मंत्रालय के डब्ल्यूओडीसी रिसर्च एंड डोक्यूमेंटेशन सेंटर के अनुसार वर्ष २००८ से लेकर २०१८ के बीच जेल में सजा काट रहे कैदियों की संख्या ४२,००० से घटकर ३१,००० पहुंच गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, इस दौरान युवा अपराधियों की संख्या में भी दो तिहाई की कमी दर्ज की गई । इस अवधि में पंजीकृत अपराधों में ४०% की गिरावट के साथ २०१८ से ७.८५ लाख केस दर्ज किए गए।
नीदरलैंड में २०१८ में १३०० लोगों को गिरफ्तार किया गया था। सभी का मनोवैज्ञानिक उपचार कर के यह पता करने का प्रयास किया गया कि अपराध के पीछे का कारण क्या है? इसके उपरांत हर दो साल में जज इनके उपचार का आकलन भी करते हैं। ये देखा जाता है कि उपचार की अवधि बढ़ाई जाए या नहीं।
नीदरलैंड के इस मॉडल को हमारे देश में भी अपनाये जाने की जरूरत है ताकि देश की जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों कि संख्या को घटाया जा सके। हमारे भारत में जेलों की स्थिति की बात करें तो वर्ष २०१५ में जेलों की संख्या १४०१ थी। वर्ष २०१९ में जारी भारतीय जेल सांख्यिकी २०१९ की रिपोर्ट से यह पता चलता है कि ३१ दिसम्बर २०१७ तक जेलों की संख्या घटकर १३१६ रह गई। इनकी कुल क्षमता ३,९१,५७४ कैदियों की है लेकिन इनमें क्षमता से कहीं अधिक ४,७०,६९६ कैदियों को रखा जा रहा है। यह आंकड़ा भारतीय जेलों की स्थिति को बयां करने के लिए काफी है। अतः भारत में कैदियों की संख्या को घटाने के लिए त्वरित नीदरलैंड मॉडल लागू करने की आवश्यकता है। जिन कैदियों को जेल में १२ या १५ वर्ष हो चुके हैं उन्हें तत्काल प्रभाव से जेलमुक्त किया जा सकता है। भारत के राष्ट्रपति व राज्यों के राज्यपालों को भी संविधान द्वारा प्राप्त अनुच्छेद १६१ के तहत मिले अधिकारों का प्रयोग करते हुए सात वर्ष से अधिक कारावास में रहे कैदियों को सुधरने का मौका देते हुए एक बार अवश्य माफी देकर रिहा किया जा सकता है। ये प्रयोग करने से कई युवा जिंदगियां जेल में बरबाद होने से बच सकती हैं और सुधार के लिए अवसर मिलने से जेलों में बढ़ती आत्महत्याएं और मानसिक रोगियों की संख्याएं घट सकती हैं।
नीदरलैंड के विजल्लब बेस जेल परिसर के मुख्य भवन को वर्ष २०१६ में बन्द कर दिया है और वर्तमान में उस जेल को रिफायनरी सेंटर के रूप में बदल दिया गया है। भारत में भी कुछ जेलों को बन्द कर के युनिवर्सिटी, हॉस्पिटल, रिफाईनरी या गरीबों के रहने के स्थान में बदला जा सकता है व झोंपड़पट्टी में रहने वालों को रहने के अच्छे स्थान मिल सकते हैं इस तरह झोपड़पट्टी की बेशकीमती जगह का अच्छा उपयोग हो सकता है।
जबतक देश में नीदरलैंड मॉडल लागू हो तब तक या उसके साथ – साथ कैदियों को अधिक से अधिक खुली जेलों में रखा जाए इससे सरकारी खर्च कम होगा और कैदियों में पुन: अपराध करने का प्रभाव घटेगा। सजायाफ्ता कैदियों (Convicted Prisioners) को खुली जेलों में रखना, जेल के बाहर दुकानों, ऑफिसों में नौकरी पर रखना, स्वच्छता अभियान से जोड़ना, सड़क बनाने, सरकारी निर्माण कार्यों में मजदूरी देना आदि में भी नियोजित किया जा सकता है। कर्नाटक विधानसभा के निर्माण में कैदियों का उपयोग किया गया था। राष्ट्रीय सड़क निर्माण में भी किसी राज्य ने कैदियों का सहयोग लिया था। राष्ट्र की सुरक्षा हेतु युद्ध कार्य में, सीमाओं की रक्षा करने में भी भूतकाल में सहयोग किया था। इस तरह कैदियों की क्षमता, समय – शक्ति का प्रयोग सकारात्मक दिशा में हो सकता है। गौसंरक्षण – संवर्धन में, देशी गौवंश की नस्ल सुधारने में व देश में बने दो – तीन गौ अभ्यारण्यों में गौवंश की सेवा करके भी सजा का समय कैदी काट सकें ऐसा प्रावधान करने की आवश्यकता है। इस तरह खुली जेल (open jail) में रहने के साथ गौवंश संरक्षण दोनों साथ – साथ हो सकते हैं।
भारत के राजस्थान में सबसे अधिक खुली जेलें हैं। भारत में खुली जेलों की संख्या १६३ है जिसमें से ३० जेलें राजस्थान में हैं। अन्य राज्यों में भी खुली जेलों की संख्या बढ़े या फिर वर्तमान कुछ जेलों को खुली जेल में बदलने का प्रयास किया जाए, ये कैदियों के सुधार व परिवर्तन के लिए हितकारी होगा क्योंकि खुली जेलों के वातावरण में कैदियों को रखने से उनके फिर से अपराध करने की सम्भावना मात्र एक प्रतिशत तक है।
साबरमती जेल व सूरत जेल में कैदी प्रतिदिन जेल से बाहर भजिया हाउस (पकौड़े की दुकान) पर जाते हैं और सुबह जाकर शाम – रात को वापस जेल पर आ जाते हैं – इससे उनका समय भी कटता है और जेल को आमदनी भी हो जाती है। इस तरह की दुकानों की संख्या बढ़नी चाहिए।
जेल में जिन कैदियों को रेस्टोरेंट – भोजनालय – होटल चलाने, सिलाई – कढ़ाई – बुनाई का अनुभव हो – और इस तरह का हुनर जानने वालों को उस प्रकार का काम देना, रोजगार प्रदान करने में भी अधिक ध्यान देने की जरूरत है।
अतः कैदियों को खुली जेल में रखकर सरकारी खर्च बचाने और कौशल्य वान कैदियों के कौशल्य का उपयोग करने तथा गौअभ्यारण्य में गौ – संवर्धन – संरक्षण कार्य को सुचारू रूप से बढ़ाने, देशी नस्ल के गौवंश को बचाने के लिए कैदियों का उपयोग, उनके Work Force का use करने की दिशा में सोचने व निर्णय करने की आवश्यकता है।