राम श्वास है । राम प्राण है । राम जीवन है । राम ही तो विश्राम है । राम बिन आराम कहाँ ? विराम कहाँ ? राम के नाम को, राम के सुमिरन को हम जीवन के ताने बाने में इतना बुन ले कि राम से श्रेष्ठ, राम से महत्वपूर्ण, राम से सुखदायी हमें अन्य [...]
भक्ति की जितनी चर्चा हो उतना ही हमारा मंगल है । क्योंकि भगवत्प्रेम की प्राप्ति के लिये भक्ति ही सर्वप्रधान साधन है और साध्यरूप में भी वही भगवत्प्रेम है ।
विघ्न, बाधा, मुसीबत, निंदा से न डरेंगे, न हारेंगे । अगर सब कुछ हमारे विरुद्ध जा रहा है तो सोचो कि हवाई जहाज हमेशा हवा के विरुद्ध ही उड़ता है । दैवी कार्यों को पूर्ण करने के लक्ष्य को लेकर हमें चलते रहना है ।
महान व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को भीतर ढूंढते हैं,जबकि कमजोर उन्हें पाने के लिए पराधीनता का आश्रय लेते हैं । सत्य,ज्ञान, प्रेम,आनंद और ईश्वर जिसको भी मिला है भीतर मिला है। सद्गुरु स्वरूप का ज्ञान देकर जीव को शिवत्व में प्रतिष्ठित कर देते हैं, तब मिलता है आनंद निज स्वरूप का, ब्राह्मी स्थिति प्राप्त कर...
हमारा मन अपूर्ण संसार से हट गया, विनाशी जग से किसने क्या पाया ? हमने तो पूर्ण प्रेमास्पद को पाकर परम तृप्ति का अनुभव किया । नित्य नवीन रस को हर दिन पा रहे हैं, उन माधुर्याधिपति के रस को पी रहे हैं, हमारा मजा हम ही जाने !
शुभ और दृढ़ विचार मन में धारण करो, आचरण को उन्नत करो । मानसिक शक्तियों का विकास करो, सद्गुणों की प्राप्ति करो, स्नेहयुक्त व्यवहार करो, सुन्दर जीवन प्राप्त करो ।
अपने दुःख में कौन नहीं रोता ? सब रोते हैं । दूसरों के दुःख को जो अपना दुःख नहीं समझता उसका दुःख कभी दूर नहीं होगा । जब तक दूसरे के सुख को अपना सुख नहीं समझोगे तब तक अपने हृदय में सुखस्वरुप सर्वेश्वर प्रकट भी नहीं होंगे । अतः प्राणिमात्र में अपनी आत्मा को [...]
संघर्ष करने से डरने की जरुरत नहीं । आपकी इच्छाशक्ति मजबूत होनी चाहिए । ये जितनी मजबूत होगी, मंजिल की ओर उतनी ही तेजी से आप आगे बढ़ेंगे । मंजिल भी आपकी तरफ बढ़ेगी । सारे डर, सारी समस्याएँ एक तरफ रखकर, इच्छाशक्ति मजबूत बनाइये, जी-जान से उत्थान की तरफ आगे बढ़िए । जगाइये, अपनी [...]
आप अनुभवों के बारे में लिखें, जो आपको अपने जीवन में हुए हैं । उससे दूसरों को भी फायदा मिलता है । अपनी कहानी और अनुभव लिखने से आप दूसरों को प्रेरित करते हैं। किस तरह मुश्किलों का सामना करते हुए आपने सफलता प्राप्त की जब आप ये लिखते हैं तब बहुत से लोग आपसे [...]
कोई विजेता उस समय विजेता नहीं बनते जब वह किसी प्रतियोगिता को जीतते हैं, लेकिन विजेता तो वह उन घंटों, सप्ताहों, महीनों और वर्षों में बनते हैं जब वह इसके लिए तैयारी करते हैं । विजय निस्पादन तो केवल उनके विजेता स्वभाव को परिलक्षित करता है ।
जीवदया अभियान जहाँ मनुष्यता वहाँ प्रभुता... सनातन संस्कृति में जो भी अवतार या संत हुए हैं, उन सभी ने संसार के आगे हमेशा यही आदर्श रखा है कि, केवल मनुष्य ही नहीं बल्कि प्राणिमात्र में परमात्मा का निवास है। सभी प्राणी उस परमात्मरूपी धागे में पिरोए हुए मोतियों के समान हैं, किसीका भी स्वतंत्र अस्तित्व [...]