योग दिवस की तरह रक्षाबंधन को भी मिले अन्तराष्ट्रीय मान्यता !
‘रक्षाबंधन’… पर्व है स्नेह का ! पर्व है शुभ भाव का ! पर्व है सुरक्षा के संकल्प का ! पर्व है अपनत्व का !
कभी-कभी लगता है विदेशियों को भारतीय संस्कृति के पर्वों की नकल करने की एक धुन-सी चढ़ गयी है । वे हाईजेक करना चाहते है हमारे पर्व, त्यौहारों को । अलग नाम देकर ये हमारी मानो नकल ही कर रहे है कभी ऐसा लगता है । आप पूछोगे कैसे ? तो उसका जवाब ये है कि फरवरी में वसंतोत्सव आता है सरस्वती वंदना का । विद्या की देवी के सम्मान का । प्रकृति प्रेम सहज जीवन में उभरता है और उन्हीं दिनों में वैलेंटाइन डे की शुरुआत करके अलग मिज़ाज का माइंड सेट करने की पश्चिमी कल्चर की कोशिशें लेकिन हमने 14 फरवरी को ‘मातृ-पितृ दिवस’ मनाकर प्रेम को शुभ भाव में बदलने की परंपरा का सूत्रपात किया । अब ये देखो रक्षाबंधन का पर्व कितनी पवित्रता और आत्मीयता का भाव लिये श्रावण की हर पूर्णिमा को मनाया जाता है और इसी दिन के आगे-पीछे फ्रेंडशिप डे अगस्त के प्रथम सप्ताह को आता है और फ्रेंडशिप बेल्ट बाँधने की परंपरा को युवा पीढ़ी अपना रही है ।
देखो कभी फादर्स डे… कभी मदर्स डे… कभी चॉकलेट डे… वैलेंटाइन डे… ये सब पाश्चात्य और विदेशी डेस(दिवसों) को जैसे हम लोग अपने जीवन का हिस्सा बनाकर मानो एक लघुता ग्रंथि में विदेशी प्रभाव में रहने-जीने का मानस बनाकर सुधरे हुए वर्ल्ड क्लास होने का भ्रम पाल रहे है । आखिर हम ये क्यों नहीं सोचते और ये कोशिश क्यों नहीं करते कि हमारी भारतीय संस्कृति के पर्व, उत्सवों के रंग में विदेशी लोगों को कैसे रंगा जाए । रेशम की राखी विदेशी क्यों नहीं बांध सकते ? वे लोग फ्रेंडशिप डे का प्रचलन बढ़ाकर राखी के बदले फ्रेंडशिप बेल्ट हमें बंधवाना चाहा लेकिन जो भाव और जो पवित्रता, जो शुभ संकल्प रक्षासूत्र में है वो फ्रेंडशिप बेल्ट में कहाँ है…?
भारतीय सनातन संस्कृति का अद्भुत तत्वज्ञान स्नेह, सुरक्षा और संवेदना का सेतु प्रत्येक पर्व, व्रत, उत्सव और त्यौहार को जोड़कर हमारे ऋषियों ने ज्ञान और विज्ञान का समन्वय करके हमारे जीवन को उत्साहपूर्वक जीने की उत्सवों के द्वारा एक व्यवस्था प्रदान की है । ये बात को । क्या आप मुझे बतायेंगे कि भारत में अमेरिकन्स या यूरोपियन्स भी रहते है उसके बावजूद भी हम विदेशी डेस(दिवसों को) क्यों मनाते है…? पहले हमारे त्यौहारों को, पर्वों को अमेरिकन्स, यूरोपियन्स या अन्य देशों में रहनेवाले क्यों मनाते नहीं है ? जन्माष्टमी, नवरात्रि, रक्षाबंधन जैसे भारत के सनातन संस्कृति के पर्वों, उत्सवों को वैश्विक स्तर तक पहुँचाने के लिए और इन उत्सवों को वर्ल्ड फेस्टिवल बनाने के लिए आजतक हमने क्या कुछ किया ? हमारी सरकारों ने, हमारे विदेशों में रहनेवाले भारतीय मूल के लोगों ने क्या कभी कोशिश की ? चलो, मान लो कि पर्व, उत्सव हमारे देवी-देवताओं से जुड़ी श्रद्धा का विषय है लेकिन जब हम फ्रेंडशिप डे को अपनाकर फ्रेंडशिप बेल्ट बांध सकते है तो क्या हम उनको विदेशियों को रक्षाबंधन जैसे त्यौहारों को हर्षोल्लास से मनाने के लिए प्रेरित नहीं कर सकते है ? रक्षाबंधन का तो महाभारत काल में भी उल्लेख आता है । भारत में विदेशी लोग इतने नहीं बसते जितना विदेशों में भारतीय लोग बसते है । उसके बावजूद भी भारतीय लोग विदेशी कल्चर को अपना लेते है । तो होना ये भी चाहिए कि विदेशियों को भारतीय संस्कृति के पर्व, उत्सवों को अपनाने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए । बेल्ट या पट्टा/पट्टी का विचार हमारे पूर्वज नहीं कर सकते । राखी तो धागे की ही सुशोभित होती है और राखी के बदले फ्रेंडशिप डे का जो भाव है वो कतही सूट नहीं करता… समझो भाई-बहन के लिए तो रक्षासूत्र ही हृदय को सुख देता है । इन धागों में सुरक्षा, स्नेह और संवेदना के तीन भाव अभिज्ञ कवच से कम नहीं होते ।
बंधन को भी प्रेम की पराकाष्ठा की नाईं देखने की दृष्टि भारतीय सनातन संस्कृति की ओजस्वी आध्यात्मिक दिव्यदृष्टि है । जहाँ अटूट निष्ठा, प्रेम और अलौकिक जुड़ाव है और इस बंधन में भी ऋषियों के दिव्य आशीर्वाद उपलब्ध हो जाते है । रक्षाबंधन पर्व बंधन को भी सकारात्मकता से देखने का नजरिया देता है । अगर संतान अपने माता-पिता को, पति-पत्नी या गुरु-शिष्य परस-परस भाई-बहन, दो मित्र, भाई-भाई बहन-बहन, मालिक और कर्मचारी या अन्य हमारे आत्मीय संबंधों में ऐसी हृदयपूर्ण संवेदना को महसूस करे कि हम आपको स्थूल रूप से ही नहीं, सूक्ष्म रूप से भी दिल में से चाहे तो भी हटा नहीं सकते । एक प्रेमावेश आत्मीय स्थिति में हमारे संबंध मधुरता के बंधन में बरकरार रहे जो हमारे हृदय को सुखद अनुभूति कराते है । हम हर वर्ष रक्षाबंधन पर आपको रक्षासूत्र समर्पित करके हमारे बंधन को मजबूत करने का प्रयास करते है । हमारा ये बंधन कभी टूटे नहीं, छूटे नहीं । हमारे मधुर संबंधों को मजबूत रखा है । ऐसा भाव कितना विलक्षण है ! ऐसे भाव के बिना, ऐसे बंधन के बिना तो जीवन एक से नौ के बिना इस शून्यों के जैसा ही है निरर्थक और अमूल्य । ये बंधन बेड़ी या हथकड़ी का नहीं है ये बंधन पुलिस कस्टडी या जेल कस्टडी का नहीं है ये बंधन गर्भावस्था में रहे गर्भ की पीड़ा का भी नहीं है । ये बंधन तो आत्मीयता का है, सुखद अनुभूति का है, मन को जीतने का है । भारतीय वंशजों की जमीन में भारत के वैदिक ज्ञान से परिपूर्ण ओजस्वी, आध्यात्मिक, वेदान्तिक जीवनशैली के संस्कार और चेतन मन में छिपे है और सिर्फ उन्हें जाग्रत करने की जरूरत है । उनको वास्तविक सुख का अहसास तभी दिया जा सकता है कि जब हमारे उदात्त मूल्यों के आधार पर जीवन व्यतीत किया जाए । हमारी संस्कृति और संस्कार के जो भी सदियों से मापदंड है वे हमारी तासीर है । उसका अगर हम अनुसरण करेंगे तो निश्चित रूप से हमारा जीवन आनंदमय बनेगा और हमें सुखानुभूति प्राप्त होगी । अतः फ्रेंडशिप के बेल्ट को पहनने की मैं ना नहीं कहता हूँ आखिर तो मित्रता के विदेशी पर्व का ये अनुकरण है । चलो, कोई बात नहीं परन्तु साथ ही साथ अगर हम भारत को विश्वगुरु बनाना चाहते है और भारत को दुनिया की आर्थिक और आध्यात्मिक महासत्ता बनाना चाहते है, राजधानी बनाना चाहते है तो जैसे हमने हर वर्ष 21 जून “योगा डे” पूरी दुनिया में शुरू करवाया और सफलता प्राप्त की ठीक वैसे ही रक्षाबंधन को भी हम विश्व मंच पर रखने की कोशिशें शुरू कर दें । क्यों न हम भारतीय ओजस्वी अध्यात्म की सनातन वैदिक जीवनशैली को विश्व मानव से जोड़ दें और उन्हें वास्तविक सुख की दिशा में ले जाने का प्रयास करें । आपको होगा कि क्या ये संभव है ? क्या ये मुमकिन है ? क्या ऐसा हो सकता है ? किसी को ये शंका हो सकती है ।
अब मैं घटित घटना बताता हूँ । अमेरिका के न्यूयॉर्क में रहने वाली कलोडिया एवार्ट नाम की एक महिला है उसके भाई और एक बहन ने युवावस्था में ही शरीर छोड़ दिया । उसके बाद उसे मन में विचार आया कि कई सारे डेस(दिवसों) को सालभर में मनाया जाता है । ठीक वैसे ही समग्र अमेरिका में परिवार स्वर्गस्थ भाई या बहन को याद करे ऐसा कोई डे, ऐसा कोई दिन भी तो होना चाहिए । ऐसा कोई दिन घोषित या जाहिर हो उसके लिए उसने कोशिश शुरू की और वो अमेरिका के प्रत्येक राज्य में वर्ष 1994 से घूमती रही और अमेरिका के हर राज्य के गवर्नर से मिलकर उसने इस प्रकार के डे को, इस प्रकार के दिन को घोषित करने का विचार समझाया । अमेरिका के उन 50 राज्यों ने ऐसा डे, ऐसा दिवस मनाने की लिखित में मंजूरी या इजाज़त दे दी और उसकी कोशिशें रंग लाई । अभी पिछले वर्ष 2016 में तत्कालीन प्रमुख ओबामा ने भी ऐसे डेस(दिवसों) के लिए हर वर्ष 10 अप्रैल का दिन सुनिश्चित किया और उसका नाम दिया “सिबलिंग डे” । इस दिन भाई-बहन को याद किया जाता है । अब आने वाले दिनों में सिबलिंग डे के निमित्त 10 अप्रैल को बाजार में कई कार्ड्स आ जायेंगे । गिफ्ट्स आ जायेंगे जो भाई-बहन की याद दिलाएंगे । जो आज इस संसार में नहीं है और देखा-देखी पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के तहत हम लोग भारतीय देशवासी पाश्चात्य अंधानुकरण करते हुए साल में दो बार रक्षाबंधन मनाएंगे । एक अगस्त में श्रावण की पूर्णिमा को और दूसरा 10 अप्रैल को । मैं ये पूछता हूँ आपसे कि विदेशी रक्षासूत्र क्यों नहीं पहन सकते ? है आपके पास कोई जबाव इसका ? हम उन्हें रक्षाबंधन का महत्व क्यों समझा नहीं सकते ?
अतः रक्षाबंधन को विश्वमंच पर पहुँचाने का आओ, हम सब मिलकर प्रयास करें ! रक्षाबंधन के दिन को ही सिबलिंग डे घोषित करें ताकि दो-दो बार रक्षाबंधन न मनाना पड़े और फ्रेंडशिप डे अगस्त के प्रथम सप्ताह में हम लोग मनाये इसकी मना नहीं है लेकिन उससे भी अच्छा ये होगा विदेशियों को हम भारतीय संस्कृति के रक्षाबंधन पर्व को मनाना सिखायें और प्रेरित करें । संबंधों के आत्मीयतायुक्त पवित्र बंधन में बांधने का हम मजबूत प्रयास करें । रक्षाबंधन पर्व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाए ।
आइये, हम ऐसा प्रयास करें । ओजस्वी अभिनव भारत का निर्माण करें और भारत को विश्वगुरु बनाने के मार्ग पर हम योगदान दें ।
‘Happy Rakshabandhan’
पवित्र रक्षाबंधन…
शुभ रक्षाबंधन…
– नारायण साँई ‘ओहम्मो’
7/8/2017