रामनवमी संदेश 2019
यह जो रामनवमी का उत्सव है, उसमें इसके साथ-साथ पूज्य श्री मोटा एक आत्मसाक्षात्कारी जीवनमुक्त महापुरुष हो गए, उनके 81वाँ साक्षात्कार दिन का रामनवमी उत्सव के साथ साक्षात्कार दिवस भी मनाया जाएगा । तो मानव जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए मौन मंदिर का आदेश देनेवाले और युवाओं में साहस भावना जागृत हो इसके लिए जिन्होंने प्रेरणा और मार्गदर्शन प्रदान किया ऐसे गुजरात के आत्मसाक्षात्कारी संत पूज्य श्री मोटा के 81 वें आत्मसाक्षात्कार दिवस पर उनके शिष्य समर्थक व भक्तगण जो है शनिवार और रविवार, 13 और 14 को गुजरात के नवसारी में जूना अखाड़ा है वहाँ कोर्ट के पीछे श्री समस्त माटिया पाटीदार सेवा समाज की वाटिका है उसमें शनिवार और रविवार 2 दिन का आयोजन किया गया है । उसमें सूरत और गुजरातसहित देशभर में से बड़ी संख्या में पूज्य श्री मोटा के अनुयायी हाज़िर रहेंगे । चैत्र शुक्ल नवमी रामनवमी को पूज्य श्री मोटा के 81वें साक्षात्कार दिवस पर पूज्य श्री मोटा और उनकी विचारधारा के साथ जुड़े हुए सज्जनों के मिलन समारोह का आयोजन किया गया है ।
समारोह की शुरुआत शनिवार 13 अप्रैल शाम को 5:17 से 5:45 तक विवेकानंद सोसायटी सिविल कोर्ट से उत्सव स्थल तक शोभायात्रा निकाली जाएगी । फिर 5:45 से 6:00 बजे तक सत्कार स्वागत की,6:00 से 7:00 बजे तक कीर्तन, भजन, फिर 7:00 से 8:00 बजे तक पूज्य श्री मोटा ने भाई नंदू भाई को लिखे हुए जो पत्र थे उन पत्रों का पठन किया जाएगा । फिर 8:00 से 9:00 बजे तक प्रसादी कार्यक्रम होगा और कल रविवार को सुबह 5:30 से 9:00 बजे तक राम स्मरण, फिर हरिओम संकीर्तन फिर आरती, 9:00 से 10:30 बजे तक भजन, 10:30 से 10:45 बजे तक अवार्ड का वितरण और फिर वीर नर्मद साउथ गुजरात यूनिवर्सिटी के जो पूर्व कुलपति श्री दक्षेश ठाकर उनका प्रवचन और 11:45 से 12:00 बजे तक यजमान परिवार सदस्य आभार विधि और दोपहर में 12:00 से 2:00 बजे तक गुरुवंदना और प्रसादी का कार्यक्रम अयोजित होगा । मैं पूज्य श्री मोटा के तमाम अनुयायियों और भक्तों की तरफ से और आत्मसाक्षात्कार दिवस के आयोजन की सेवा में तमाम भक्तजनों को इस पूज्य श्री मोटा के 81 वें आत्मसाक्षात्कार दिवस की शुभकामना देता हूँ । यह भारत का वैभव है, यहाँ नित्य और नैमित्तिक अवतार के रूप में परमात्मा उपस्थित हैं । यह ज्ञान की भूमि है, यह धर्म की भूमि है, अध्यात्म की भूमि है और यही ज्ञान के बल पर और भारत की आध्यात्मिकता के बल पर हम भारत को पूरे विश्व की आध्यात्मिक राजधानी बनाने के सपने को साकार होता हुआ देख सकते हैं । तो,
आओ सच्चे साधकों, साधना मिलकर करें ।
दूर हो दुःख दर्द से, प्रार्थना मिलकर करें ।।
सभी को मैं पूज्य मोटा के 81वें साक्षात्कार दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं….!
इस दिवस को सार्थक बनाएँ ।
– नारायण साँईं
आज रामनवमी के पावन अवसर पर मैं आप के साथ श्री राम कथा के अध्येता और “निज मनु मुकुर सुधारी” पुस्तक के प्रसिद्ध लेखक श्री जमुना शंकर ठाकुर द्वारा रचित एक सुंदर लेख साझा करता हूं। तो आइए राम जन्मोत्सव की बेला में अपने भीतर की राम को जगाएं और राम से एकाकार हो जाए…
हम में राम राम में हम
रामकथा पुरातन होते हुए भी चिरनूतन है। प्रत्येक व्यक्ति को श्रेष्ठ जीवन प्रदान करना ही इसका उद्देश्य है।
समें हम अपनी वर्तमान समस्याओं का समाधान पा सकते हैं और इस दुनिया को एक बेहतर जगह भी बना सकते हैं। | रामचरितमानस में संत तुलसीदास ने राम के आदर्श जीवन को केंद्र में रखकर कथा का गान किया है। यह महज स्तुति और प्रशस्ति नहीं है, बल्कि प्रेरणा और अनुशंसा भी है कि हम राम के गुणों को आत्मसात करें।
परिवार प्रथम
भारतीय संस्कृति परिवारों की संस्कृति हैं। तमाम स्वार्थलिप्सा और भौतिकता के बावजूद रिश्तों का ८ सम्मान बचा है तो इसलिए कि राम अब भी भारतीयों के दिलों में बसते हैं। वचन-निर्वाह के लिए पिता ने राम के स्थान पर भरत को राज्य दिया। राम ने पिता की आज्ञा का पालन किया, लेकिन भरत राज्य पर अपने बड़े भाई का ही अधिकार मानते हैं। वन में जाकर चित्रकूट में राम से राज्य स्वीकार करने का आग्रह करते हैं। बड़ों के प्रति सम्मान, छोटों के प्रति उदारता और भ्रातृत्व भाव हमारे परिवारों में आज भी है। ।
साहस संग धैर्य
राम राज्य पद पाते-पाते उससे वंचित हो जाते हैं। महलों की सुख-सुविधा में पलकर भी चौदह वर्ष की लम्बी अवधि के लिए वनवासी जीवन बिताते हैं। वहां भी राक्षसों से सतत संघर्ष बना रहता है। ऐसी विकट परिस्थिति में पत्नी का अपहरण हो जाता है, लेकिन राम जीवन के प्रति हताश नहीं होते। इसके विपरीत उनका आत्म-विश्वास इतना दृढ़ है कि बस यही कहते हैंकिसी प्रकार एक बार सीता का ठिकाना भर मालूम हो जाए, फिर तो वे काल को भी पलभर में पराजित कर सीता को छुड़ा लाएंगे।
एक बार कैसेहुं सुधि जानौं।
कालहु जीति निमिष महुँ आनौ।।
राम का यह अटल विश्वास हताशा व निराशा के क्षणों में पूरी मानव-जाति के लिए प्रकाश-स्तंभ है। गलाकाट प्रतिस्पर्धा, रोजाना की चुनौतियां, सहारे की कमी, विश्वास का अभाव इस दौर के बड़े दुख हैं, जिनके सामने व्यक्ति खुद को बहुत छोटा और असह्यय महसूस करने लगता है। ऐसे में वह या तो बुराई की धारा में बह निकलता है या फिर आत्मघाती क़दम उठा लेता है। राम का जीवन ऐसी स्थिति में बहुत बड़ा संबल है। उन कमजोर क्षणों में राम को याद करना चाहिए, अपने भीतर उनका आह्वान करना चाहिए।
सत्य के लिए संघर्ष
राम के जीवन का लक्ष्य था- एक ओर सज्जनों का परित्राण तो दूसरी ओर दुष्टों का दमन। दण्डकारण्य में अस्थियों का समूह देखकर जब उन्होंने जाना कि राक्षसों ने ऋषि-मुनियों को खा डाला है, तो उनकी आंखों में करुणा के आंसू छलक आए और उन्होंने दृढ़ प्रतिज्ञा की
निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।
यानी मैं पृथ्वी को राक्षसों से रहित कर दूंगा। और उन्होंने ऐसा किया भी। अपने उत्साहपूर्ण साहसी | संकल्प के आधार पर ही केवल वानर-भालुओं को साथ | लेकर रावण जैसे दुर्धर्ष शत्रु का नाश करने में सफल होते
हैं। गौर करें कि अन्याय और अत्याचार की अधिकता देखकर राम मौन नहीं हो गए। उन्होंने समाज के प्रति | अपनी जिम्मेदारी को समझा और बुराई के विरुद्ध संघर्ष किया।
उदार नेतृत्वकर्ता
समर विजय के पश्चात समस्त वानर-भालुओं को सम्बोधित करते हुए उदार-हृदय राम की वाणी इस प्रकार मुखरित हुई
हे साथियो! प्रबल शत्रु रावण तुम्हारे ही बल पर मारा गया है। जीत का श्रेय संगी-साथियों को बांटना ही कुशल
नेतृत्व का गुण है। अपने सखाओं के साथ अयोध्या | पहुंचने पर गुरु वशिष्ठ से भी इसी तरह परिचय कराया | कि इनके सहारे ही मैंने संग्राम रूपी सागर पार किया है। दूसरों का श्रेय चुराने और आत्मप्रवंचना के इस दौर में राम और भी प्रासंगिक हो उठे हैं। वे न केवल बताते हैं, बल्कि अपने जीवन में दिखाते भी हैं कि शासक, स्वामी, बॉस, नेता को उदार, बड़े दिल का होना चाहिए।
निर्बल के बल राम
राम का रामत्व यही है कि उनकी करुणा सदा शोषितों और समाज के पिछड़े तथा कमजोर व्यक्ति के पक्ष में प्रवाहित हुई। उन्होंने केवट, शबरी, जटायु, भील-कोल और वानर-भालुओं को भी गले लगाया। एक ओर जहां वे ऋषि-मुनियों के आश्रमों पर गए, वहीं शबरी की कुटिया में भी पहुंचे। शबरी से चर्चा करते ह्या राम कहते हैं-
‘जाति, पांति, कुल, धर्म, बड़प्पन, धन, कुटुम्ब, गुण या चतुरता मेरे लिए महत्वपूर्ण नहीं है। मैं तो बस प्रेम चाहता हूं।’
जल में कमल जैसे
राम अपने भुजबल से किष्किन्धा और लंका पर विजय प्राप्त करते हैं, किंतु उन्हें अपने अधीन नहीं रखते हैं। सोने की लंका का राज्य राम विभीषण को उस स्थिति में दे देते है, जब वे स्वयं वनवासी हैं, फलों के भोजन पर रह रहे हैं, घास-फूस की शय्या पर शयन करते हैं। राज्यश्री के प्रति निर्लिप्त, एकदम निस्पृह। सुख-साधन जुटाने की अंधी दौड़ में आज जब बहुत कुछ पाने के बावजूद लगभग हर कोई दुखी और अधूरा महसूस करता है, तो राम की यह निस्पृहता और भी जरूरी लगती है।
भारतीय संस्कृति मानती है कि भक्त अंततः भगवान में समाहित हो जाता है। इसका मतलब ही यही है कि वह अपने आदर्श के गुणों का अनुकरण करता है और उन जैसा हो जाता है। यही सच्ची भक्ति है। इस रामैवनमी आइए संकल्प लें कि भगवान राम, ऐतिहासिक राजा राम, महाकाव्य के नायक राम, हम जिस रूप में भी उन्हें देखें, उनके गुणों को आत्मसात अवश्य करें।
Source :
मधुरिमा, बुधवार, 10/04/2019