‘सबमें भारत और भारत में सब’
आइये, लोकतंत्र बचाएँ, देश की स्वतंत्रता के रक्षक बनें और
भारत की आत्मा को जिन्दा बनाये रखें ।
– नारायण साँईं
मैं, भारतीय विद्या भवन के संस्थापक और कुलपति के. एम. मुनशी के उमदा विचार नवनीत मासिक पत्रिका के अक्टूबर 2019 के अंक में पढ़ रहा था । उनके विचार मेरे विचारों से मेल खाते है अतः जो उनके विचार हैं वे मेरे विचार हैं और आपको भी अगर जँच गए तो आपके आत्मसात् करने पर ये विचार आपके हैं । हम सबके विचार अगर एक हो गए और हमारे प्रयास संगठित हुए तो देखते ही देखते एक जबरदस्त क्रांति हो जायेगी । भारत देश को आज ऐसी ही क्रांति की जरूरत है । वे कहते हैं :
“सदियाँ गुजर गई, पर हमारा दृष्टिकोण नहीं बदला – संकुचित और आत्मघाती ! कृष्ण, बुद्ध, महावीर, ईसा समय के गलियारे से हम तक पहुँचते तो हैं, पर क्या हम भारत में एकता की भावना का विकास कर पाये हैं ? ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र सबकी अलग-अलग पहचान है । बिहारी, बंगाली, तमिल, महाराष्ट्रियन, हिन्दू-मुस्लिम सब अपनी अलग पहचान के साथ जीते हैं । हमारी एक सरकार है, एक राष्ट्रीयता है, हमारी बुनियादी संस्कृति एक है, मूलतः हमारी जीवन प्रणाली एक है ; हमारा जीवन दर्शन एक है, हमारा अतीत एक है, हम में से जो सर्वश्रेष्ठ है, वे ऋषि-मुनियों के विचारों में संतोष का अनुभव करते हैं । हमारे लोगों, हमारे पेड़-पौधों आदि की शरीर-रचना एक जैसी है, लेकिन इसके बावजूद हम एकता की सजीव भावना को विकसित नहीं कर पाये, यह जानते हुए भी कि यदि हम एकता की भावना को जी नहीं पाए, तो हम अपनी स्वतंत्रता खो देंगे और स्वतंत्रता गयी तो भारत अपनी आत्मा खो देगा और आत्मा खो गई तो भारत जीयेगा कैसे ?”
तो, आइये हम एकता की भावना के साथ जीएँ, अपनी स्वतंत्रता को बरकरार रखने के लिए जाग्रत रहें और प्रयास जारी रखें ।
परतंत्रता-पराधीनता-गुलामी से भारत को बचाएँ । भारत की आत्मा को जिन्दा रखें, भारत के लोकतंत्र की रक्षा करें ! जगें – जगाएँ ! देश को दूसरी गुलामी से बचाएँ !
जय हिन्द… वंदे मातरम्…