सकल मनोरथ पूर्ण !!
हनुमान चालीसा का पाठ आपने किया होगा – उसमें ये आता है कि
और मनोरथ जो कोई लावे ।
सोई अमित जीवन फल पावे ।।
अमित का अर्थ है असीम । एक ऐसा फल कि जिस फल की कोई सीमा ही न हो । अमर्यादित फल और वो अमर्यादित फल जीवन फल ही हो सकता है । हम सबको जन्म तो मिला है पर जीवन नहीं मिला । आइये थोड़ा गहरा चिंतन कीजिए । मैं आप सभी पाठकों को इस विषय पर गहरा चिंतन करने के लिए आमंत्रित करता हूँ ।
देखिये विषयों का फल क्षणभंगुर होता है । रूप-सौंदर्य का फल, जवानी का फल, धन-संपदा का फल ये सारे सीमा में आबद्ध हैं और उसमें उतार–चढ़ाव भी आते रहते हैं । अमित फल का अर्थ है – जीवन फल । हमारे जीवन का फल क्या ? कोई पद जीवन फल है ? नहीं । जैसे आम के पेड़ का फल आम है, जामुन के पेड़ का फल जामुन है । तुलसीदासजी ने कहा – जीवन फल । जीवन वृक्ष है, फल गुप्त है ।
थोड़ा-सा और गहरा चिंतन कीजिए । हम सभी को जन्म मिला है, जीवन नहीं मिला और जब तक जीवन नहीं मिला, तब तक जीवन फल कैसे मिलेगा ? सबसे पहले तो जीवन चाहिए । जीवन मिलना चाहिए । कभी-कभी तो जन्म और मृत्यु आ जाती है, लेकिन उसके बीच हम जीवन को उपलब्ध नहीं कर पाते ।
जीवन प्राप्त किया था मीरा ने, जीवन प्राप्त किया था तुकाराम ने, एकनाथ ने । जीवन प्राप्त किया था निजामुद्दीन ऑलिया ने, जीवन प्राप्त किया था नानक ने कबीर ने, जीवन प्राप्त किया था सहजानंद ने, गुणातीत स्वामी ने, जीवन प्राप्त किया था रामकृष्ण परमहंस ने, जीवन प्राप्त किया था जीसस ने, जीवन प्राप्त किया था मुहम्मद पैगंबर ने, जीवन प्राप्त किया था अक्का महादेवी ने, जीवन प्राप्त किया था प्रह्लाद ने, ध्रुव ने, जीवन प्राप्त किया था राजा जनक ने, याज्ञवल्क्य ने, ! इन सभी ने जो जीवन प्राप्त किया, हम सबके पास ऐसा जीवन कहाँ है ? ये कोई खोखली बातें नहीं हैं । खाना-पीना-सोना ये सब रूटीन में चलता रहता है, ये जीवन थोड़े ही है ।
भक्ति मार्ग में तुम्हें मिलेगा “जीवन-रस” । ज्ञान मार्ग में ज्ञान मिलेगा ‘जीवन फल’ । फल और रस दोनों एक ही बात है ।
न जन्म हमारे हाथ में है न मृत्यु हमारे हाथ में है, लेकिन जीवन हमारे हाथ में हो सकता है, अगर हम उसे अर्जित करें तो ! लेकिन अक्सर हम चूक जाते हैं । गंगा सती कहती हैं – ‘ये मोती पिरोने की बात है । बिजली की चमक के बीच मोती में धागा पिरो देना है ।’
छोटे-मोटे मनोरथ भौतिक मनोरथ हैं और उनका फल भी सीमित है, लेकिन अमित-असीम जीवन फल की प्राप्ति तो महामनोरथ है । ऐसे मनोरथ की पूर्ति हेतु – जीवन की प्राप्ति-उपलब्धि है । आइये, हम प्रयास करें और जीवन फल प्राप्त करें । सत्य-प्रेम-करुणा के बल पर ओजस्वी अध्यात्म की वेदांतिक जीवनशैली को आत्मसात् करके इस मनोरथ की प्राप्ति हो सकती है ।