जहाँ जीविका न मिले वहाँ एक पल भी ठहरना ठीक नहीं ।
भारत देश की एक गंभीर समस्या है – Under Employment (अल्प रोजगार) या क्वालिफिकेशन से कहीं कम का काम मिलना ।
सही इकोनॉमी वही है जहाँ छटनी न हो । सही सरकार वही है जो इतने रोजगार पैदा कर दे कि नये ही नहीं, पुराने हटाये गये व्यक्तियों/नागरिकों के पास भी कई विकल्प हों – आमदनी के, रोजगार के ।
जॉब मार्केट सदा निर्मम होता है/रहेगा लेकिन फिर भी कोशिश यह करते ही रहनी होगी कि सबको उनकी योग्यता के अनुसार काम मिले और सही देश वही है जो बेरोजगारों को साथ दे, सहयोग दे, अवसर दे, उत्साह दे और उन्हें भिखारी माननेवालों को मुँह तोड़ जवाब दे ।
आखिर, हम सभी को, सरकारों को बेरोजगारों की पीड़ा को समझना ही होगा । चाहे उनकी पीड़ा को समझ पाना मुश्किल हो, पर समझना ही होगा और उस पीड़ा को दूर करना ही होगा ।
देश का नागरिक, चाहे जेल के अंदर हो या बाहर, अगर काम चाहता है, रोजगार चाहता है, तो उसे देना ही चाहिये, देना ही होगा । जिन्हें काम की तलाश है, रोजगार की चाह है, अपने समय-शक्ति को, ऊर्जा को लगाना चाहते हैं तो उन्हें सही दिशा, सही मार्ग देना ही होगा ।
मैं, आप और बेरोजगार, हम सारे के सारे अंततः काम ही तो करना चाहते हैं । आखिर, निकम्मा कौन रहना चाहता है ? जेल की व्यवस्थाएँ भी निकम्मेपन को दूर करनेवाली हों | मुश्किल है, पर ये व्यवस्थाएँ बनानी ही होंगी । जेल में आलसियों की फौज बनाकर समाज को बोझिल नहीं बना सकते ।
– ‘ओहम्मो’