नारायण साँईं का 2019 में पाँचवा संदेश

दिल की बात, अपनों के साथ

 

कहानी बनके जिये हम तो इस जमाने में

लगेंगी आपको सदियाँ हमें भुलाने में ।

न जिनको पीना भी आये न पिलाना आए

शरीफ़ ऐसे भी आ बैठे हैं मैखाने में ।

गरीब क्यों न रहे देश की सारी बस्ती

है कैद खुशियाँ सभी एक ही घराने में ।

न आग फेंको मेरे मुस्कुराते फूलों पर

मिलेगी ऐसी न खुशबू किसी खजाने में ।

जो रोते दिल को हँसाने में इबादत होती

बड़ी है उससे इबादत कहाँ जमाने में ।

गिरी हैं बिजलियाँ कुछ ऐसी चमन पर अपने

कि अब तो बच्चे भी डरते हैं मुस्कुराने में ।

है उसके वास्ते पागल कली कली अबतक

कोई तो बात है नीरज के गुनगुनाने में ।

मैं, आज के संदेश की शुरुआत नीरज की इस गज़ल से कर रहा हूँ । गजल न तो प्रकृति की कविता है न अध्यात्म की, वो हमारे उसी जीवन की कविता है जिसे सचमुच हम जीते हैं ! हमारे भारत के बड़े-बड़े नगरों में जो संस्कृति उभरकर आई उसकी प्रकृति न तो शुद्ध हिन्दी है और न उर्दू की ही । यह एक प्रकार की खिचड़ी संस्कृति है । गजल इसी संस्कृति की प्रतिनिधि काव्य विधा है । लगभग 700 वर्षों से यही संस्कृति नागरिक सभ्यता का संस्कार बनती रही । शताब्दियों से जिन मुहावरों और शब्दों का प्रयोग इस संस्कृति ने किया है । गजल उन्हीं में अपने को अभिव्यक्त करती रही । अपने रोजमर्रा के जीवन में भी हम ज्यादातर इन्हीं शब्दों और मुहावरों का प्रयोग करते हैं ।

तो, ऊपर लिखी गजल पर फिर से एक नजर… कि

कहानी बन के जिये हम तो इस जमाने में

लगेंगी आपको सदियाँ हमें भुलाने में ।

क्योंकि हम हैं इस दुनिया में सत्य, प्रेम, करुणा का फैलाव करनेवाले… जी हाँ, हम हैं जन-जन के मन-मन में छुपी खुशियों को जाग्रत करनेवाले… हम हैं इस समाज-देश-दुनिया को बेहतर बनाने का प्रयास करनेवाले… हम हैं मुसीबतों के बीच मुस्कुराने वाले… हम हैं हर विकट और विषम परिस्थितियों के बीच हौंसला बुलंद करके जीनेवाले… हम हैं समस्याओं से खेलने का शौक रखनेवाले… हम हैं विश्व में शांति-प्रेम-आनंद को अधिक से अधिक फैलाने का संकल्प करनेवाले… हम हैं मुस्कुराते फूलों के पौधे… हम हैं रोते हुए दिलों को हँसानेवाले… हम हैं अच्छाईयों की खुशबू… तो बताओ कैसे भुला पायेगी हमें दुनिया ! हमारे विचार और कार्य इस देश-दुनिया में सदियों-सदियों तक लोगों के मन-मस्तिष्क में छाये रहेंगे और समूचे जीवन को प्रभावित करेंगे… हम विश्व में वैचारिक क्रांति की शुरुआत कर चुके हैं, स्वयं को बदलते रहकर, नित नया सीखते हुए हम आगे बढ़ते जा रहे हैं और हौंसला बुलंद करते हुए गुनगुनाते हुए दुनिया को बदलने का अभियान छेड़े हुए हैं… ।

दुनिया में हमारी चर्चा हो रही है । दुनिया हमारे सामने देख रही है । दुनिया में हम कहानी बन रहे है और इतिहास बनते जा रहे हैं… अच्छाईयाँ फैलाने के लिए हमारे प्रयासों की सराहना हो रही है… मुश्किलों के बीच भी बिना थमें, बिना डरे हम आगे बढ़ रहे हैं । तो, नीरज ने ठीक कहा है –

लगेंगी सदियाँ हमें भुलाने में !

किसीने ठीक कहा है :-

जिंदगी ऐसी बना जिन्दा रहे दिलशाद तू ।

तू न हो दुनिया में तो दुनिया को आए याद तू ।।

जीएँ हम उपयोगी बनकर, उद्योगी बनकर, सहयोगी बनकर ! और ये भी सुना होगा – पढ़ा होगा कि

जिंदगी के बोझ को, हँसकर उठाना चाहिये ।

राह की दुश्वारियों में, मुस्कुराना चाहिये ।।

तो – आइये, हम जिंदगी से घबराकर आत्महत्या के विचार ना करें । निराशा के गर्त में ना डूबें । हम पुरुषार्थ करें । प्रसन्न रहें, आगे बढ़ें – उम्मीदों के साथ कि आज नहीं तो कल हम अवश्य होंगे कामयाब ।

नीरज कहते हैं :-

“न आग फेंको मेरे मुस्कुराते फूलों पर,

मिलेगी ऐसी न खुशबू किसी खजाने में !”

आपको ऐसी खुशबू, ऐसी सुगंध किसी खजाने में नहीं मिलेगी इसलिए आग मत फेंको, मेरे मुस्कुराते फूलों का आनंद लो !

कई लोग जीवन की समस्याओं से इस कदर घिर जाते हैं कि मन ही मन उलझन में रहते हैं और तनाव, अवसाद, भय, चिंता और अकेलेपन में वे घिर जाते हैं । ऐसी स्थिति से निजात पाने के लिए मैं सीबीटी (कॉग्नेटिव बिहेवियरल थैरेपी) का परामर्श देता हूँ । इसके जरिये इंसान अपने मन के नकारात्मक विचारों को सकारात्मक रूप से बदल पाने में सफल हो सकता है । प्रियांशी बसु ने तलाक के मुद्दे पर असमंजस और निराशा की गर्त में डूबी एक लड़की की कहानी बताई है – कैसे वो सीबीटी के पाँच चरण आगे बढ़कर जिंदगी को खूबसूरत बनाती है ! देखिये उसकी कहानी –

(मधुरिमा, 6/2/19)

मुद्दा तलाक का था । प्रियांशी की शादी टूटी थी । सबके पास सहानुभूति थी । पर उसे तो मदद चाहिए थी ? वह मिली सीबीटी से । कैसे मन की उलझनें मिटीं, उसकी जुबानी जानिए…

सब कहते थे भूल जाओ…

मैंने ठीक से याद किया…

कोई छोड़ दे, तो जिंदगी में आगे कैसे बढ़ा जा सकता है ? मेरी 5 साल की शादी टूट गई थी । तलाक की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी ।

निराशा में डूबी मैं, सबकी चिंता का कारण थी । घर में सबका कहना था, भूल जाओ । जो हुआ, सो हुआ । आगे बढ़ो, जिंदगी में कुछ और करने का सोचो । कुछ नया सीखो, मन लगेगा, तो पुरानी बातें भूल जाओगी । मैं समझ नहीं पा रही पा रही थी कि 5 साल की शादी और उसके पहले 3 साल की दोस्ती के सुहाने समय को कोई कैसे भूल सकता है ?

सीबीटी की मदद मिली

मैं छटपटा रही थी । तब किसी ने कॉग्नेटिव बिहेवियरल थैरेपी का नाम लिया । सीबीटी एक मनो परामर्श है, जिसके जरिए इंसान अपने मन के नकारात्मक विचारों को सकारात्मक रूप में बदल पाता है ।

…जानिए, प्रियांशी (बदला नाम) की थैरेपी का सिलसिला ।

(1) पहला चरण

अपने अहसास को समझो

‘दिल के टूट जाने’ का अहसास सबके लिए अलग होता है । किसी के लिए बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड से ब्रेकअप में यह अहसास आता है, तो किसी को परिजन के मिले धोखे से । तलाक का अलग है । मैंने और मेरे पति ने साथ नई जिंदगी शुरु की थी और अब मैं भावनात्मक ही नहीं, वित्तीय और सामाजिक तौर पर भी खड़े होने के लिए जूझ रही थी । निराश थी । मेरे पति किसी और से शादी कर लेंगे, यह सोच मुझे मारे दे रही थी । यानी मेरी जगह कोई भी ले सकता है, इतनी आसानी से ? यही था सीबीटी का पहला चरण, अपने अहसास को नाम दो । मैंने दिए – निराशा, नाराजगी, भय, चिढ़, उदासी ।

(2) दूसरा चरण

अहसास के पीछे क्या है ?

यह बहुत अहम हिस्सा था । ठीक है मैं उदास थी, निराश थी, डरी हुई थी, तो अब करना क्या चाह रही थी ? इन अहसासात के परे जाकर, उसके सिर पकड़ने थे । उदास क्यों थी, क्योंकि पति ने मुझे अहमियत नहीं दी थी, हम अलग हो गए थे, इसलिए ? निराश थी क्योंकि पति ने अपने निबाह के वादों को तोड़ा था । डरी हुई थी क्योंकि एक बार फिर अकेलापन महसूस हो रहा था । आत्मविश्वास आहत था । कोई छोड़ दे, तो आप पराजित महसूस करते हैं । मैंने उससे बहुत बात करने की कोशिश की थी, उसका इंतजार किया था, मेरे लिए वह पहली प्राथमिकता था, लेकिन उसने कद्र नहीं की । मैंने अपने अहसास की पड़ताल कर ली ।

(3) तीसरा चरण

नकारात्मकता को नियोजित करो

मेरी नकारात्मकता जाहिर थी । क्या सचमुच इन सबका ताल्लुक मुझसे था ? हर भावना को एक क्रम देना इस चरण का मकसद था । जब सिलसिले में बैठाने लगी, तो एक-एक भाव को ठीक से समझना पड़ा । डर क्यों है ? निराशा क्यों है ? क्या सबसे ज्यादा है – गुस्सा, निराशा, उदासी ? विश्लेषण करने के दौरान यह समझ में आया कि मेरे पति के लिए मैंने बहुत इंतजार किया था, शायद कुछ ज्यादा ही । जो मुझे कोई महत्व नहीं दे रहा था, मैंने उसे अपने से भी आगे अहमियत दी थी । खुद को भुलाकर ।

इसी दौरान यह भी समझ में आया कि शायद मेरा पति मुझे धोखा देते हुए खुद भी कमजोर पड़ रहा था, इसीलिए घर से बाहर रहने की कोशिश करता था । मैं उसके लिए अहम नहीं थी, ऐसा मेरी वजह से नहीं था, उसकी अपनी वजह से था । इसमें मेरा दोष नहीं कहा जा सकता । हर नकारात्मक भाव के विश्लेषण ने मुझे जैसे उस भावना से आजाद ही किया ।

(4) चौथा चरण

खुद पर थोड़ी नरमी बरतो

ऐसी शायद ही कोई पत्नी होगी, जो तलाक के लिए अपने आपको दोष न देती हो । अधिकतर तो आदमी खुद ही महिला को दोष देते हैं, रही-सही कसर स्त्री खुद ही पूरी कर लेती है । शादी के टूटने का दोष उठाना आसान काम नहीं है । लेकिन यहाँ तक सोचने की बात थी कि रिश्ता दो लोगों के बीच था, दो परिपक्व, पढ़े-लिखे, समझदार लोग । रिश्ते के निबाह की जिम्मेदारी भी दोनों पर थी । फिर किसी एक पर इल्जाम कैसे लगाया जा सकता है ? इस चरण के पूरे होते-होते मैं बहुत हल्का महसूस कर रही थी, आखिर गलती मेरी नहीं थी ।

(5) पाँचवा चरण

पहल करो

अब वह पड़ाव आया, जब कुछ करना था । अब तो मैं भी मन से तैयार हो चुकी थी । सबसे पहले मैंने पति के नंबर को ब्लॉक किया और फिर उसके फेसबुक अकाउंट से खुद को अलग किया । अपनी जिंदगी को दोबारा शुरू करने की जितनी जल्दी उसे थी, उससे कहीं ज्यादा उत्कंठा अब मुझे यह जानने में है कि जिंदगी के पास मेरे लिए क्या है !

और अब ओम प्रकाश गुलाबानि की कविता से इस संदेश को विराम देता हूँ !

जब तक चलेगी जिंदगी की सांसे

कहीं प्यार कहीं टकराव मिलेगा ।

कहीं बनेंगे संबंध अंतर्मन से तो

कहीं आत्मीयता का अभाव मिलेगा ।

कहीं मिलेगी जिंदगी में प्रशंसा तो

कहीं नाराजगियों का बहाव मिलेगा ।

कहीं मिलेगी सच्चे मन से दुआ तो

कहीं भावनाओं में दुर्भाव मिलेगा ।

कहीं बनेंगे पराए रिश्ते भी अपने तो

कहीं अपनों से ही खिंचाव मिलेगा ।

कहीं होगी खुशामदें चेहरे पर तो

कहीं पीठ पर बुराई का घाव मिलेगा ।

तू चलाचल राही अपने कर्मपथ पर

जैसा तेरा भाव वैसा प्रभाव मिलेगा

– नारायण साँईं

Comment (1)
rekhabatra2701@gmail.com
February 25, 2019 9:23 pm

Very heart touching post … Sai ji aap ke darshno ki aas h .. kl khel me hm ho na ho gardish me tare rhenge sda … Bhulega nhi ye jagt kbhi hm aapke hi rhenge sdaa .. 😘😘😘😘

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