नारायण साँई के दिल की बात (2019 – 6th message) बुलेटिन

शुभ संदेश पढ़े – पढाऐं सबको पहुँचाऐं ओजस्वी जीवनशैली अपनाकर, विश्वगुरु भारत बनाऐ

पुरुषार्थ एवं कर्मठता के महान कर्मयोगी, सादगी – सहयोग एवं सद्भाव के पालनकर्ता, सामाजिक उत्थान में सक्रिय, विश्वगुरु भारत के स्वप्नदृष्टा, ओजस्वी अध्यात्म के प्रणेता, साँई सेवा महिला गृह उद्योग के द्वारा नारी सशक्तिकरण के लिए प्रयत्नशील, ओजस्वी आयुर्वेद के प्रतिष्ठाता, संगीत – संकीर्तन द्वारा तनाव, अवसाद आदि मनोरोग दूर करने वाले चिकित्सक, वैदिक ऋचाओं के गायक, प्रेम धर्म के स्थापक, आनंदवाद के प्रसारक, युवा ऋषि तेजस्वी प्रवचनकार स्वनामधन्य प्रगट ब्रह्मस्वरूप बालयोगी श्री श्री नारायण साँई महाराज के पावन शुभ संदेश को आप तक पहुँचाकर हम अत्यंत प्रसन्नता व गर्व की अनुभूति कर रहे हैं । समाज को, देश को और दुनिया को बदलने के लिए अच्छे विचार व कर्म को अधिक से अधिक फैलाने की आवश्यकता है । आप सद्गुरुनन्दन पूज्य श्री के संदेश को पढ़ें – पढ़ाऐं – अधिकाधिक फैलाऐं और हमारे ‘विचार क्रांति से विश्वक्रांति अभियान’ में सहभागी बनें । हमारा छोटा – सा – प्रयास, थोड़ा – सा समय दान, एक क्लिक, संदेश को ज्यादा से ज्यादा फैलाने की कोशिश… इस दुनिया को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण होगा । धन्यवाद । आपके सुझाव हमें अवश्य मेल करें ।

– वैश्विक शुभ विचार कर्म प्रचार प्रसार संगठन

Global Organization for Promotion of Noble Thoughts and Deeds.. (GOPONTAD) email – gopontad@gmail.com

विश्व के कोने – कोने में फैले हुए मेरे धैर्यवान् साधको – भक्तो ! परमात्मा के प्यारे, सद्गुरु के दुलारे तमाम अध्यात्म पथ के पथिकों, ऋषियों का प्रसाद पाने के इच्छुकों के लिए ‘नारायण’ की कलम वसंतऋतु में चल पड़ी है …

भारत देश का वातावरण इन दिनों गमगीन है, आतंकवाद को लेकर चिंतित है… आतंकवाद को हम आनंदवाद से ही हरा सकते हैं ऐसा मेरा स्पष्टरूप से मानना है । आँख के बदले आँख लेने से तो पूरी दुनिया ही अंधी हो जायेगी । नफरत व घृणा को प्रेम से जीतें, अशांति को शांति से जीतें, भोग व संग्रह के दोष को दूर करने के लिए योग व त्याग को अपनाऐं । क्रोध को शांति से जीते !

वर्ष 2017 में विश्व के 100 से अधिक देशों में आतंकवादी हमले हुए थे । आश्चर्य की बात है कि इन हमलों में से 59 प्रतिशत टेरेरिस्ट अटैक विश्व की सिर्फ पाँच कंट्री में हुए थे – उन पाँच देशों में भारत, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और फिलिपीन्स शामिल हैं । मतलब कि इन आंकड़ो का सीधा मतलब ऐसा होता है कि भारत व पाकिस्तान टेरर ऐक्टिविटी में इराक व अफगानिस्तान के साथ गिना जाता है ।

भारत के हालत आज इराक व अफगानिस्तान जैसे देशों के जैसी ही है – हर दूसरे – तीसरे दिन टेरर अटैक के समाचार आते रहते हैं… यह अघोषित युद्ध कबतक … कबतक… और आखिर कबतक चलता रहेगा ? आखिर कितने लोग शहीद बनते रहेंगें ? इस अघोषित लड़ाई के कारण भारत ने सबसे ज्यादा बलिदान दिया है… मैं सोचता हूँ काश ! भारत खंडित न होता तो ऐसे हालात न बनते । खंडित भारत को अखंड भारत बना दिया जाए तो कश्मीर समस्या हल हो सकती है और सदा के लिए भारत आतंकवाद की गंभीर समस्या से मुक्त हो सकता है । भारत में रहनेवाले कई हन्दू – मुस्लिम ऐसा चाहते है कि पाकिस्तान को भारत में फिर से मिल जाना चाहिये और ऐसा ही पाक में रहनेवाले लोग भी चाहते हैं पर उनकी आवाज मुखर नहीं हो रही, अब जो शांति – अमन – चैन चाहते हैं और भारत – पाक का सच्चे ह्रदय से हित चाहते हैं वे फिर से इस ऐतिहासिक भूल को सुधारने की इच्छा रखते हैं कि भारत का अलग हुआ टुकड़ा फिर से भारत में मिल जाए ! धरती एक है, आकाश एक है, हम धरती पर जितनी अधिक सीमाऐं बनायेंगे – समस्या उतनी अधिक होगी । अखंड भारत को खंडित करके पाकिस्तान बनाने से लाभ से अधिक हानि हुई है ये बात प्रत्यक्ष है तो उस गलती को चाहें तो दोनों देश सुधार सकते हैं – दो देश एक हो जाऐं – पाक – भारत में मिल जाए – अगर प्रयास शुरू किया जाए तो कुछ समय बाद ये कठिन व असंभव सी संभावनाऐं साकार होने लगेगी । हमें आतंकवाद मुक्त विश्व निर्माण के लिए आनंदवाद अपनाना होगा – यही स्थायी समाधान है । वैसे दुनिया के नक्शे में पाकिस्तान जैसे देश का            अस्तित्व नहीं है । ये बात गुजरात समाचार अखबार में 21-2-2019 को छपी है ।

मैं, एक खास ऐतिहासिक बात बताता हूँ । 1947 से पहले की है । नेक दिल, प्रजा प्रेमी और मातृभाषा गुजराती के अनन्य चाहक महाराज भगवतसिंहजी, गुजरात के गोंडल राज्य के राजा थे । इस राज्य में उपलेटा है, उपलेटा के पास गाँव है पानेली । पानेली गाँव मोहम्मद अली जिन्ना का जन्मस्थान होने से वे इस गाँव में बार – बार आते – जाते थे ट्रेन के जरिये । उस समय गोंडल शहर के नजदीक में रिबडा रेल्वेस्टेशन पर यात्रियों के दस्तावेजों का निरीक्षण – होता था । इस प्रक्रिया में रिबडा रेल्वेस्टेशन पर मोहम्मद अली जिन्ना की पूछताछ की गई । जिन्ना को यह कैसे अच्छा लगता ? अधिकारी ने उनका पाकिस्तानी पासपोर्ट देखा और सोचा कि अन्य देश के नागरिक को इस तरह गोंडल राज्य में प्रवेश कैसे दिया जाय ? बेरोकटोक राज्य में प्रवेश करके घुमने देने की इजाजत क्या दी जा सकती है ? अधिकारी ने अंतिम उपाय के रूप में महाराजा को इस परिस्थिति के बारे में अवगत किया । तब महाराजा भगवतसिंह जी ने तत्काल एक राजकर्मचारी को बुलाया और कहा कि तुम मेरा यह संदेश लेकर जिन्ना को मिलो ।

उस संदेश में गोंडल के महाराजा भगवतसिंह जी ने लिखा था ‘मिस्टर मोहम्मद अली जिन्ना, पहली बात तो स्पष्ट करो कि दुनिया के नक्शे में पाकिस्तान जैसे देश का अस्तित्व नहीं है उसका क्या ? स्वयं आप हिन्दुस्तान के नागरिक हैं ऐसा अगर कहते या स्वीकार करते हैं तभी आपको आपकी जन्मभूमि पनोली गाँव में जाने की इजाजत (परमीशन) मिलेगी ।’

महाराजा का संदेश राज्य के रेल्वे अधिकारी को सौंपा गया, उन्होंने वह संदेश जिन्ना को दिया । मुस्लिमों के लिए अलग देश की मांग करनेवाले मोहम्मद अली जिन्ना इस बात का स्वीकार कैसे करते ? उन्होंने कहा कि कुछ भी हो जाए फिर भी मैं हिन्दुस्तान का नागरिक हूँ ऐसा लिखित में नहीं दूंगा ।

महाराजा को इस बात का पता चला । देश में जिन्ना के कई समर्थक भी थे उनको नापसंद हो एसा कुछ भी हो तो वे गंभीर व बड़ी समस्या खड़ी करें ऐसा भी हो सकता था लेकिन महाराजा अपने निर्णय पर अडिग थे, उन्होंने जिन्ना को रिबडा से वापस जाने को कहा । महाराजा के आदेश के खिलाफ जाने की जिन्ना की हिम्मत नहीं थी – इससे अपनी जन्मभूमि पानेली गाँव की मुलाकात लिए बिना ही उन्हें वापस लौटना पड़ा .. ।

ये बात इसलिए याद आई है कि उस समय महाराजा भगवतसिंह जी ने मोहम्मद अली जिन्ना को तनिक भी नरम रुख अपनाकर जन्मभूमी में प्रवेश की इजाजत नहीं दी क्योंकि वे पाकिस्तान के नागरिक बनकर प्रवेश करना चाहते थे ! अगर हिन्दुस्तान के नागरिक बनकर आते तो उनके प्रति नरम व सकारात्मक रवैया अपनाया जा सकता था ।

तो उस समय देश का टुकड़ा हुआ – देश खंडित हुआ –उससे क्या फायदा हुआ ये मैं आजतक समझ नहीं पाया हूँ । न वहाँ के लोगों को फायदा हुआ – न यहाँ के लोगों को । एक देश का दो देशों में रूपांतरण अगर फायदे मंद, हितावह, उन्नतिमूलक नहीं है तो उस गलती को सुधार कर दोनों देशों को एक हो जाना चाहिये ! और गलती सुधार लेनी चाहिये । अघोषित युद्ध में अनेको जवानों का शहीद होते रहने का सिलसिला सदा के लिए थम जाए ऐसा पर्मनेंट सोल्युशन (permanent solution) निकालना होगा ! और ये प्रयास हम सभी को करने होंगे । दोनों देशों की जनता आवाज उठायेगी और चाहेगी तो यह कार्य संभव है ।

अब मैं, डो.एस.कल्याणरमन के बारे में आपको बता रहा हूँ जो चैन्नइ में सरस्वती – सिंधु रिसर्च सेन्टर में एशियन डेवलपमेन्ट बैंक से प्रिमैच्योर लेकर रिसर्च कर रहे हैं । भारत की लुप्त हो गई नदी सरस्वती पर । इस रिसर्च सेन्टर की वेबसाइट आप देख सकते हैं और 200 पेज का मोनोग्राम भी डाउनलोड करके पढ़ सकते हैं । इस पुस्तक में मुख्य रूप से उत्तर भारत की तमाम प्रमुख नदीयों (गंगा,सरस्वती की शाखाऐं) के बारे में इतिहास जानने को मिलता है ।

डॉ. एस. कल्याणरामन के इस कार्य से प्रभावित होकर उत्तरभारतीय राज्यों की सरकारें सरस्वती नदी के किनारे नए संशोधन शुरू करना चाहती हैं जिससे नए ऐतिहासिक तथ्य व प्रमाण हाथ लगेंगे । खुदाई और रिसर्च से भारत को दो हजार साल पुराना इतिहास फिर से प्रमाणों के साथ हाथ लगेगा । पाकिस्तान के पुरातत्ववेता, इतिहासकार भी इस रिसर्च में भारत की मदद कर रहे हैं जिससे वैदिक कालिन सरस्वती नदी के रहस्य से परदा उठ पाने की संभावनाऐं तेज हो गई हैं । इस बात से मुझे प्रसन्नता हुई ।

मैं सरस्वती नदी के रहस्य को उजागर करने के प्रयासों में लगे भारत – पाक के पुरातत्व शास्त्रियों को, रिसर्च करने वालों को, इन्डियन स्पेस रिसर्च ओर्गैनाइजेशन ( इसरो ) को, भाभा आटोमेटिक रिसर्च सेन्टर (बार्क) को, एवं आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ए.एस.आइ) को बधाई व धन्यवाद देता हूँ । और आशा करता हूँ कि बहुत जल्दी उन्हें सरस्वती नदी के किनारे बसी वैदिक संस्कृति, 2000 साल पुरानी सभ्यता – महत्वपूर्ण स्थानों को उजागर करने में सफलता मिले । The lost river : Saraswati के बारे में विस्तार से गुजराती लेखक परख भट्ट (email: bhattparakh@yahoo.com) ने लिखा है जो गुजरात गार्डीयन के आचमन में छपा है – इस लेख को पढ़ने के बाद मुझे यमुनानगर (जगाधरी) से 20 कि. मी. दूर आदि बदरी, कि जहाँ पर तीन पौराणिक स्थान हैं – जाने की इच्छा हुई । आदि बदरी, देहरादून और कुरुक्षेत्र – दोनों से समान दूरी 70 k.m. पर है ।

हिमालय के हिमक्षेत्र के प्रखर अभ्यासु डॉ.विजय मोहन पुरी हैं कि जिन्होंने सरस्वती नदी का उद्गम ढूंढ लिया है वो है कुरुक्षेत्र से उत्तर में, रूपिन-रूपिन हिम क्षेत्रों में शिवालिक पर्वतमाला में देखी गई टेक्टोनिक मूवमेन्ट के कारण कि सरस्वती की प्रमुख शाखा यमुना में मिलकर प्रयाग पहुँच गई । ये सरस्वती स्वर्गारोहिणी हिमक्षेत्र से गुजरती थी किसी समय…आज फिर से उसकी खोज में गंभीरता से जो लगे हैं उन सभी वैज्ञानिकों को, संशोधकों को बधाई देता हूँ ।

अब मैं संत कबीर और रामानंद स्वामी के बीच के गुरु-शिष्य के ऐसे रिश्ते की बात करता हूँ कि जिसमें मतभेद था – पर मन-भेद नहीं था । कबीर ने रामानंद को गुरु माना था ।

स्वामी रामानंद के ‘राम’ अलग थे, और कबीर के ‘राम’ अलग थे । तत्वतः तो राम एक ही हैं – पर फिर भी स्वामी रामानंद दशरथी कल्पित राम रस में डूबे रहते थे कबीर उन्हें समझा समझाकर थक गए लेकिन वे उसमें से हटकर अंतरात्मा के राम की ओर नहीं मुड़े जबकि कबीर उस राम को नहीं मानते थे जिस ‘राम’ को उनके गुरु मानते थे – राम को देखने का नजरिया गुरु-शिष्य का अलग रहा ! गांधीजी ने भी जीवनभर राम का स्मरण किया । कबीर और रामानंद के विचारों में भिन्नता थी, और दोनों के ‘राम’ भी भिन्न थे उसके बावजूद दोनों के बीच परस्पर आदरभाव-स्नेहभाव भी था…..।

गांधीजी ने किसी को अपने गुरु के रूप में वरण नहीं किया था चूंकि ज्होन रस्किन, लियो टोलस्टोय और श्रीमद रामचंद्र उनके आध्यात्मिक मार्गदर्शक रहे, मैं समझता हूँ कि इन तीनों के प्रभाव ने गांधीजी को महात्मा बनाया ।

कहा जा सकता है कि ये तीनों अघोषित गुरु थे !

फरवरी में ही ज्होन रस्किन का जन्मदिन था – मैंने उनके जीवन के बारे में गहराई से पढ़ा । ‘अन टू ध लास्ट’ रस्किन की पुस्तक पढ़ने के बाद ही गांधीजी में बदलाव शुरू हो गया ! मनुष्य के विचार कितने बदलाव कर सकते हैं देखिए !

मेरे विचार आपको, आपके विचार मुझे असर करते हैं, प्रभावित करते हैं – बदलने की क्षमता रखते हैं । तो, वैचारिक क्रांति करनी होगी हमें – बेहतर दुनिया बनाने के लिए हमें change maker बनना होगा –

रिवोल्यूशन – क्रांति लाना होगा – वैचारिक मतभेदों के बावजूद भी साथ चलना होगा …….. आगे बढ़ना होगा !

वसंत पंचमी…….. विद्या देवी सरस्वती की उपासना का दिन है – वसंत पंचमी जब भी आए –

लिख लो यह मंत्र :-

ओम विद्यादेवी सरस्वती वरदे कामरूपिणी

विद्यारभ करिष्यामि सिद्धि भवतु मे सदा ।

इसे बोलकर सरस्वती का पूजन करें – वंदन करें ।

ऋतुओं की रानी है वसंत और वसंत में ही – वसंत पंचमी – सरस्वती की वंदना – का उपासना का समय है !

दक्षिण भारत के तमिलनाडु में पूरे वर्ष भर कई उत्सवों का अनोखे ढंग से आयोजन होता है …… जिसमें खास है पोंगल, आराधना संगीत उत्सव, नाट्यांजलि उत्सव और महामहम उत्सव आदि…….।

हर साल फरवरी में आयोजित होनेवाला ‘आराधना संगीत उत्सव’ तन्जापुर से 13 k.m. तिरुवैयारू में कावेरी नदी के तटपर महान संत त्यागराज के समाधी स्थान पर मनाया जाता है – जहाँ पर भारतीय शास्त्रीय संगीतज्ञों की अदभुत प्रस्तुति देखने को मिलती है । इस उत्सव में जो भाग लेते हैं उन्हें संत त्यागराज के आशीर्वाद मिलते हैं ।

फरवरी-मार्च में महाशिवरात्री के दिन से नाट्यांजलि उत्सव पांच दिन का आयोजित होता है । चिदंबरम के नटराज टेम्पल में …..भगवान नटराज को श्रद्धांजलि देने के लिए यह उत्सव आयोजित होता है ……. नटराज मंदिर के सहस्त्र स्तंभवाले विराट कक्ष में मनमोहक नृत्यों की प्रस्तुति मंत्रमुग्ध करती है ।

हर बारह वर्ष में एक बार आयोजित होनेवाला महामहम – कुंभकोणम में 15 फरवरी से 15 मार्च तक आयोजित होता है जब बृहस्पति और पूर्ण चंद्रमा सिंह राशि में प्रवेश करते हैं । तब सूर्य कुंभ राशि में निवास करता है । कुंभकोणम में कुंभेश्वर मंदिर में धार्मिक सरोवर में पवित्र स्नान करने के लिए लाखों श्रद्धालु यहाँ उमड़ पड़ते हैं । माना जाता है कि भारत की सात पवित्र नदियों की आत्मा ने स्वयं को शुद्ध करने के लिए इस सरोवर में डूबकी लगाई थी………

दक्षिण का कुंभ मेला – इसी स्थान पर हर 12 साल में आयोजित होता है ।

अब मैं आपको एक आध्यात्मिक महापुरुष थिच न्हाट हान (Thich Nhat Hanh)

के बारे में बताना चाहता हूँ जो इस समय इस पृथ्वी पर हयात हैं और पहले वियतनाम में रहते थे पर अभी वे फ्रांस में हैं । 1967 में मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने वियतनाम के कवि और बौद्ध भिक्षु थिच न्हाट हान को नोबल पुरुस्कार के लिए नामांकित करते हुए कहा था ।

“मैं किसी दूसरे ऐसे व्यक्ति को नहीं जानता जो इस पुरुस्कार के इतना योग्य है ।”

वे शांतिदूत हैं, कवि हैं, आध्यात्मिक हैं ।

विभिन्न धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए वे अमेरिका के प्रिंसटन युनिवर्सिटी गए थे । तीन सालों के बाद वे वापस लौट आए । इनके संगठन पर साम्यवादी होने का आरोप लगातार सरकार ने उन्हें मिलनेवाले सभी अनुदान बंद कर दिए । उन्होंने शांति के पक्ष में कई कवितायें लिखीं ।

  • साल के ये महापुरुष – माइंडफुलनेस : जीने का नया मंत्र देने के लिए नए सफर पर निकल चुके हैं ।

तो, शांति और प्रेम के पथ पर चलकर ही हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं ।

आतंकवाद को आनंदवाद से हमें हराना होगा ।

 

माइंडफुलनेस: जीने का मंत्र देने वाले गुरु का नया सफर

वियतनामी बौद्ध संन्यासी पश्चिम से जड़ों की ओर लौटे

किसी समय वियतनाम की राजधानी रह चुके ह्यू के बाहर एक बौद्ध मठ में 92 वर्ष के थिच न्हाट हान चुपचाप एक नए सफर पर निकल पड़े हैं । सेलेब्रिटी बौद्ध महंत ने 2014 में ब्रेन स्ट्रोक के बाद दवाई खाना बंद कर दिया है । 19वीं सदी के तू हियू पगोडा के मैदान में स्थित अपने बंगले में लेटे हान जीवन चक्र से आजाद होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं । 28 अक्टूबर, 2018 को वियतनाम पहुँचने के बाद वे व्हीलचेयर पर कई बार लोगों के सामने आ चुके हैं । जब कम्युनिस्टों के खिलाफ लड़ाई का समर्थन करने पर दक्षिण वियतनाम की सरकार ने उन्हें देशद्रोही घोषित कर दिया तब 1960 में उन्होंने देश छोड़ दिया था ।

पश्चिमी देशों में न्हाट हान को एकाग्रता ध्यान, सचेतनता या माइंडफुलनैस का पिता कहते हैं । उन्होंने, अपने अनुयायियों को बताया था कि ध्यान से संतरा छीलकर खाने या चाय पीने से मिलने वाली सामान्य प्रसन्नता से हम बोधिसत्व प्राप्त कर सकते हैं । अपनी एक किताब – योर ट्रू होम में उन्होंने लिखा है, “बुद्ध वह है जो प्रबुद्ध है, प्रेम कर सकता है, क्षमा कर सकता है । कई बार आप ऐसे होते हैं । इसीलिए बुद्ध होने का आनंद उठाइए ।” हान ने 70 किताबें लिखी हैं । इनका अनुवाद 30 भाषाओ में हुआ है । उनका प्रभाव कई देशों में है । जलवायु परिवर्तन पर यूएन कन्वेंशन की एक्जीक्यूटिव सेक्रेटरी क्रिस्टीना फिगुएरेस कहती है कि यदि उन्होंने, न्हाट हान के उपदेशों पर अमल नहीं किया होता तो पेरिस समझौता नहीं हो सकता था ।

संन्यासी की वियतनाम वापसी को उनके अनुयायियों के लिए संदेश माना जा रहा है । हान की यूरोपियन बौद्ध इंस्टिट्यूट के प्रमुख थिच चान फाप एन का कहना है, हान अपने शिष्यों को बता रहे हैं कि हम सबकी जड़ें देश में हैं । लेकिन, इसमें पुराने जख्म हरे होने का खतरा भी है । उनके आलोचक हान की 2005, 2007 की अति प्रचारित यात्राओं से आक्रोशित है । उनका कहना है, हान की यात्राओं से धारणा बनी कि वियतनाम में धर्म की आजादी है जबकि उस पर सरकार का कठोर नियंत्रण है ।

कई धर्म गुरुओं को कम्युनिस्ट शासन में प्रताड़ित किया गया है । बुद्धिस्ट चर्च वियतनाम के प्रमुख थिच क्वांग डो ने कई वर्ष जेल में बिताए या घर में नजरबंद रहे । चर्च के पेरिस स्थित प्रवक्ता वो वोन एई का कहना है, हान की पुरानी वियतनाम यात्रायें सरकार के हाथों में खेलने के समान थीं । इसलिए उनकी वापसी को वियतनाम में बहुत महत्व दिया जा रहा है । हान ने हमेशा अपना रास्ता चुना है । 1961 से 1963 तक कोलंबिया और प्रिंसटन विश्वविद्यालयों में बौद्धवाद की शिक्षा देने के बाद युद्ध विरोधी एक्टिविस्ट की भूमिका में वियतनाम लौटे थे । तब दक्षिण वियतनाम की सेना ने उनके कम्यून पर हमला किया था ।

हान ने 1966 में वियतनाम छोड़कर शांति स्थापना के लिए 19 देशों की यात्रा की । इस पर दक्षिण वियतनाम की सरकार ने उनकी देश वापसी रोक दी थी । अंत में उन्होंने दक्षिण पश्चिम फ्रांस के प्लम गाँव में बौद्ध मठ को अपना मुख्यालय बनाया । हान ने अमेरिका, थाईलैंड सहित अन्य स्थानों में 8 बौद्ध मठों की स्थापना की है ।

 

एक अरब डॉलर की इंडस्ट्री

हान ने जिस माइंडफुलनैस का प्रसार किया आज वह अमेरिका में एक अरब डॉलर से अधिक की इंडस्ट्री है । वहाँ 2450 ध्यान सेंटर हैं । हजारों किताबें, एप्स, ऑनलाइन कोर्स चल रहे हैं । एक सर्वे में पाया गया है कि 35% कंपनियों ने माइंडफुलनैस को अपनाया है । विश्व में कई अस्पतालों में तनाव घटाने के लिए माइंडफुलनैस का उपयोग होता है ।

 

हैपीइज्म (Happism) फैलाना होगा – भय, तनाव और हिंसा से मुक्त विश्व बनाना होगा !

प्रेम को फैलाएं –

प्रेम का विस्तार करें –

प्रेम को अहमीयत दें

प्रेम के लिए जीवन समर्पित करें ।

धरती तब तक निरापद रहेगी

जब तक हम करेंगे प्रेम ।।

तो शांति – प्रेम – आनंद का विस्तार

करना है – आतंकवाद से मुक्ति आनंदवाद

अपनाकर ही हो सकती है ।

तो आनंदवाद से जुड़ें –

विश्व शांति-प्रेम राज्य की स्थापना करें ।

 

  • नारायण सांई

22/2/2019

शुक्रवार

 

Comment (1)
Ketan Patel
March 2, 2019 1:42 pm

What a Great Article with such a Deep Insight & A brilliant Solution of the Today’s Existing Problem in the country

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