क्या मानव जीवन की कमान सृष्टि के हाथों में ?
इस प्रश्न पर चिंतन–मनन करते हुए समझें कि पर्यावरण का संरक्षण व परिवर्धन का संदेश भारतीय जीवन–दर्शन के आधार चिंतन में निहित है | यहाँ अनादि काल से दिन का प्रारंभ सूर्य को अर्घ्य व तुलसी को जल देकर करने की परंपरा रही है | पूजन–पद्धति में पीपल, वट, नीम, आँवला और केला आदि पेड़–पौधों की महत्ता का प्राचीनकाल से स्थापित होना निरुद्देश्य नहीं है | दिन–रात ऑक्सीजन उत्सर्जित करनेवाले वृक्ष, पूजनीय गंगा, माता के रूप में धरती, पिता के रूप में आकाश, सभी में देवत्व के दर्शन करने का हमारा दर्शन, इसी पहलू की ओर इंगित करता है कि इनसे हमारा जीवन संभव है |
ठौर–ठिकाना बनानेवाली इंसानी सभ्यता आज अपने पूर्वजों की इस संस्कृति को तितांजलि दे चुकी है | इसका कारण पानी उनके लिए अनमोल नहीं रहा, वैज्ञानिक अविष्कारों और यांत्रिकी के बल पर आज वे जहाँ इच्छा हो पानी पैदा कर लेते हैं | ये सुविधाएँ हमारे पूर्वजों के पास नहीं थीं, इसीलिए वो प्रकृति के अनुरूप कार्य करते थे | अब बात आती है वे पिछड़े थे या हम ? वे प्रकृति के पुजारी थे या हम ? उत्तर स्पष्ट है कि पानी की बढ़ती परेशानी ने समझा दिया है कि हमारा तरीका यानी दैनिक उपयोग का ढंग प्रकृति के विरुद्ध है, क्योंकि एक तरफ जनसंख्या विस्फोट, दूसरी ओर जलस्रोतों व गुणवत्ता में कमी है | नहाने, कपड़े धोने, पशुओं को नहलाने आदि से जल स्रोतों का दूषित होना |
धार्मिक अनुष्ठान, क्रियाक्रम, रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशकों का प्रयोग, ईधनों का जल में मिलना, खनन कार्य से जल का प्रदूषित होना आदि है |
जल प्रदूषण के प्रभाव ?
- जल में सीसा (लैड) से प्रत्येक वर्ष एक लाख पक्षियों की मृत्यु होना |
- ६० प्रतिशत पक्षियों का किसी न किसी रूप में प्लास्टिक खाना |
- दूषित जल से प्रत्येक वर्ष छोटे बच्चों में घातक बीमारियों का होना |
- नदियों में यमुना, कटक में महानदी, डिब्रूगढ़ (असम) में ब्रह्मपुत्र, जबलपुर मध्य प्रदेश में नर्मदा, सूरत (गुजरात) में तापी, वाराणसी में गंगा व विजयवाड़ा में कृष्णा नदी का जल जिसकी गुणवत्ता पर ४६ फीसदी लोग विश्वास नहीं करते यानी जल पीने योग्य नहीं है | इतना ही नहीं अन्य शहरों पर भी नजर दौड़ाएँ जैसे
- महाराष्ट्र में मराठवाडा और विदर्भ का इलाका भयंकर सूखे की चपेट में है |
- लातूर में अकाल जैसी स्थिति है वहाँ टैंकर माफिया का राज है |
- औंरंगाबाद में १२००० लीटर पानीवाला टैंकर मिनटों में रिक्त हो जाता है | वहाँ गर्भवती महिलाएँ दूर से पानी लाकर जीवन यापन करती हैं |
- बुंदेलखंड के लिए करोड़ों का पैकेज केंद्र सरकार ने दिया फिर भी पानी का संकट है | ऐसे ही गया की मानपुर में लोग पानी की किल्लत के कारण विवाह तक टाल देते हैं |
- वहीँ उत्तर प्रदेश के बागपत, मथुरा, गाजियाबाद, हाथरस, मेरठ, सहारनपुर, जालौन, हमीरपुर, जौनपुर, वाराणसी एवं इलाहाबाद में भूजल स्तर में भारी गिरावट पाई गयी है |
जरा सोचिए, वो कल कैसा होगा जब जल नहीं होगा और आज के परिवर्तन को देखते हुए धरती क्या आकाश भी थरथराता नजर आएगा और इसका कारण होंगे हम और आप क्योंकि हम ही इसके ग्राहक हैं |
पर्यावरणीय समृद्धि की चाहत या उपभोगवादी चीन और अमेरिका जैसा बनने की चाहत, क्यों ? ये प्रश्न भारत स्वयं से करें ? कि विकास की इस अंधी दौड़ में क्या खोना व क्या पाना चाहते हैं ? पहले ये सुनिश्चित करें | क्योंकि विकास की चाहत में प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता जितनी घटती जाएगी, विकास के पैमाने प्राप्त करने की चीख–पुकार उतनी ही बढ़ती जाएगी | अतः चाहे नमामी गंगे का संकल्प हो, स्वच्छ भारत, डिजीटल इंडिया, वनों की रक्षा या प्राकृतिक संरचना का वास्तविक रूप–स्वरूप, सभी का परम्परागत ढाँचा चरमरा जायेगा | इसके लिए प्रश्न भी स्वयं से ही करना होगा कि प्रगति के सोपानों पर चढ़ प्रकृति से खिलवाड़ क्यों ? जिन हाथों में देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी है, वही आज अर्थहीन से क्यों ? लेकिन यहाँ विषय की वास्तविकता को अनुभव करते हुए विचारणीय और ज्वलंत पहलू भी है कि तकनीक के सहारे किसी भी देश को पर्यावरण और विकास के पथ का चयन करना होगा, जैसे ऑस्ट्रेलिया के पास धातु, सउदी अरब के पास तेल, अमेरिका के पास भूमि है, तो यह आवश्यक नहीं है कि हमारे पास भी हों, तब क्या हम उनका अनुसरण करते हुए जंगलों, नदियों और खेतों को नष्ट कर दें ?
हाँ | हमारे पास अपार मानव संसाधन हैं | स्वास्थ्य, पर्यटन, शिक्षा व प्राकृतिक अन्य संसाधनों से परिपूर्ण हैं | इसलिए इन क्षेत्रों में विकास का लक्ष्य रखकर, वास्तविक विकास को बढ़ा सकते हैं | हम पर्यावरण संबंधित रोजगारों से जुड़कर स्वयं का व पर्यावरण का विकास कर सकते हैं | आइये, अब कुछ विचारणीय बिंदु पर ध्यान दें, जो हमें विकास व विनाश का गुणात्मक अध्ययन सिखाते हैं जैसे –
- सदाबहार वृक्ष लगाएँ | * जैविक खेती को बढ़ावा दें | * मौसमी फल सब्जी का प्रयोग करें | * बोतल बंद पानी का प्रयोग कम-से-कम करें | * कपड़े का थैला लेकर चलें, प्लास्टिक के सामान का बहिष्कार करें | * अपने वाहन सही स्थान पर रखें | * खाद्य समूह बनाएँ | * ऊर्जा को बचाएँ | * कचरा कम-से-कम इकठ्ठा करें और यथा स्थान ही डालें | * जल को जागरूकता से प्रयोग करें, प्रदूषण से बचाएँ | * प्रत्येक व्यक्ति पौधा अवश्य लगाए | * काँच रिसायकल के लिए दें | * पशु-पक्षियों को बचाएँ | * अतिक्रमण से बचें | * आपदा प्रबंधन में सहयोगी बनें | * नयी तकनीकों का प्रयोग सोच-समझकर करें | * कागज बचाएँ | * जनसंख्या विस्फोट से बचें |
उपरोक्त बिंदुओं पर गहन चिंतन-मनन करते हुए स्वयं से प्रश्न भी करें कि पर्यावरण प्रदूषण में हम व आप कितनी भागीदारी रखते हैं और कैसे ?