नारायण साँई का वैश्विक संदेश
अलविदा 2018… स्वागतम् 2019…
2019 के आगमन का काउन्टडाउन शुरू हो चुका है, 2018 अलविदा होने को है, आज 25 दिसम्बर 2018 (अंगारकी चतुर्थी, मंगलवार) की शाम, मैं, नारायण साँई आपको इस संदेश के माध्यम से अपने दिल की बात बताने को तत्पर हुआ हूँ | जेल की सलाखों को चीरते हुए, मोटी दीवारों को लांघते हुए मेरा संदेश पहुँचा है आप तक, और आप अधिक से अधिक लोगों तक इसे पहुँचाइये, शहर-राज्य की सीमाओं से बाहर, देश की सीमाओं से पार हर मानव तक मेरा संदेश पहुँचाइये, पॉजिटिविटी को फैलाने का आइये – हम प्रयास करें ! मानव की पीड़ा दूर करने का मानव प्रयास करें !
आज 25 दिसम्बर है, कई देशों में, शहरों में चर्चों को सजाया गया है, क्रिसमस मनाने को लोग उत्साहित हैं | लगभग पूरी दुनिया में क्रिसमस मनाया जा रहा है… कहीं स्ट्रीटें सज रही हैं, कहीं पैलेस सज रहे हैं… लेकिन इंडोनेशिया में तबाही मची है, अफगानिस्तान में लोग भयभीत हैं – उनके दुःख दूर करने की भी सोचें जो अभी जीवन से जूझ रहे हैं | उत्सव के प्रकाश में हम उन लोगों के जीवन में भी झांकने का प्रयास करें जिनका जीवन अंधकार से घिरा है | पोप फ्रांसिस, ईसाई धर्मगुरु ने कहा है “क्रिसमस को फैशनेबल इवेंट न बनने दें | वह ईश्वर की मौन आवाज सुनने का त्यौहार है न कि आप उपहार लें और किसी गरीब की मदद न करें |” यह संदेश महत्वपूर्ण है |
क्या आप जानते हैं इंडोनेशिया देश द्वीपों का समूह है, ये उत्सवो के द्वीपों पर इन दिनों तबाही का मंजर छाया हुआ है | जहाँ एक ओर इंडोनेशिया में प्रकृति ने अचानक सुनामी लाकर त्रासदी का दुःखद इतिहास रचा है, वहीं दूसरी ओर, मानव निर्मित त्रासदी को पीछे छोड़कर अमरीकी सेना अफगानिस्तान से लौट रही है । विकास व मानव सभ्यता का डंका पीटने वाली दुनिया में हम न मानव निर्मित त्रासदियों को रोक पा रहे हैं और न प्रकृति निर्मित त्रासदियों पर हमारा वश चल रहा है । आखिर दुनिया या हम इंसानों की मंजिल क्या है ? 3 करोड़ 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले देश अफगानिस्तान में विगत 17 साल में 1,10,000 से ज्यादा लोग मारे गए हैं । समस्या जस की तस है । अमरीका के जाते ही अफगानिस्तान एक नई तरह की अराजक धार्मिक मदांध शासन व्यवस्था के हवाले हो जायेगा । भारत सहित दुनिया के दूसरे अनेक देशों ने वहाँ जो विकास कार्य चला रखे हैं, वो सब अटक सकते हैं । दक्षिण एशिया के साथ ही दुनिया में आतंकवाद का नया दौर शुरू हो सकता है । अमरीका न तो तालिबान को खत्म कर पाया है और आतंकवाद को । इतिहास में थोड़ा पीछे चले जाए, तो अफगानिस्तान को भटकाने में अमरीका और सोवियत संघ का हाथ साफ नजर आता है । यह जो मानव निर्मित समस्या है, वह पूरी दुनिया के लिए चिंताजनक है । आतंकवाद पर न अमरीका एकमत है और न चीन, दोनों ही देश आतंकवाद को परोक्ष रूप से बढ़ावा भी देते हैं और उसके खिलाफ लड़ते भी हैं । यह विरोधाभास मानवता पर दाग की तरह है । बेशक, दुनिया में तमाम आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक नीतियों का नेतृत्व कर रहे वीटो पावर प्राप्त देशों को शर्म आनी चाहिए ।
दूसरी ओर, प्रकृति निर्मित त्रासदी की वजह से इंडोनेशिया में 280 के करीब लोग मारे गए हैं । 1000 घायल और 11,800 से ज्यादा लोग बेघर हुए हैं । तकनीक का अहंकार पालनेवाले देशों की चेतावनी व्यवस्था भी यहाँ विफल हो गई । पता नहीं चला कि कब ज्वालामुखी फिर फटा, धरती के नीचे की प्लेट खिसकी और 20-20 मीटर ऊँची लहरों वाला सुनामी आ गया । विडंबना है, दुनिया के जिम्मेदार देश युद्ध के लिए लालायित रहते हैं, जबकि मानव के लिए असली युद्ध तो प्रकृति को समझना है । प्रकृति को समझेंगे, तभी हम सुनामी, तूफान या भूकंप का आंकलन सही कर पाएंगे । जावा और सुमात्रा द्वीपों के बीच सुनामी की यह तबाही वैज्ञानिकों को फिर एक बार अंगूठा दिखा रहीं है । इंडोनेशिया सरकार विवश है, वह समय पर चेतावनी जारी नहीं कर सकी । समुद्र तट पर अच्छी खासी भीड़ थी, पर्यटक उत्सव मनाने में लगे थे, उन्हें चेतावनी अगर 5-10 मिनट पहले भी मिल जाती, तो जान-माल का इतना नुकसान नहीं होता । दुःखद कमी या सच्चाई सामने आ गई कि सुनामी से पहले का चेतावनी तंत्र मानव समाज आज तक निर्मित नहीं कर पाया है ? वास्तव में ऐसा इसलिए है, क्योंकि विगत दशकों में दुनिया के जिम्मेदार देशों का एकमात्र लक्ष्य अपने आर्थिक स्वार्थ की पूर्ति रह गया है । लोकतांत्रिक अमरीका भी इसमें आगे है और वामपंथी चीन भी । उन्हें आतंकवाद के अंत या प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के पुख्ता इंतजाम की कोई जल्दी नहीं है । ऐसे-ऐसे निर्मम नीति निर्माता इन साम्राज्यवादी देशों ने पाल रखे हैं, जो आतंकवाद और प्राकृतिक आपदाओं में भी धन कमाने का सूत्र बता देते हैं ।
आखिर आतंकवाद और आपदाओं के खिलाफ दुनिया मिलकर क्यों नहीं लड़ सकती । इंडोनेशिया हो या सिंगापुर, यहाँ दुनियाभर के पर्यटक छुट्टियाँ मनाने आते हैं । इन देशों का क्या अपराध, अगर प्रकृति ने दुनिया के 50% ज्वालामुखी इन्हें दे रखे हैं ? ज्वालामुखी शांत रहे, तो हम यहाँ आनंद मनाएंगे और ज्वालामुखी फटते या सुनामी आते ही भाग खड़े होंगे, यह कहाँ की मानवता है ? दुनिया को चलाने का अहंकार पालनेवाले देशों को व्यापक मानव हित में सोचना चाहिए । विकसित होती दुनिया में बर्बरता क्यों ? चांद पर क्या हो रहा है, जानने से ज्यादा जरूरी है कि धरती पर क्या हो रहा है । कहाँ है संयुक्त राष्ट्र (संघ) ? दुनिया के हर कोने में क्रिसमस मनाया जा रहा है उसके उत्सवी प्रकाश में हमें अफगानिस्तान के भयभीत लोगों और इंडोनेशिया के दुःखी लोगों की आँखों में झाँकना चाहिए, तभी हम जान पाएंगे कि हम दुनिया को कहाँ ले जा रहे हैं ।
दुनिया को हमें कहाँ ले जाना है ये हमें स्वयं तय करना है | बढ़ता प्रदूषण, बढ़ती आत्महत्याएं, बढ़ते रोग, बढ़ती अशांति, बढ़ते मनमुटाव, बढ़ती कटुता, बढ़ती आधुनिकता कहीं जानलेवा न बन जाए ये भी देखना होगा ! विकास के नाम पर हमारे प्रयास विनाश का कारण तो नहीं बन रहे ? इसकी समीक्षा भी करते रहने की जरूरत है |
प्रीति सागर ने एक फिल्म में अंग्रेजी गीत गया था – ‘माय हार्ट इज बीटिंग’ | उस फिल्म में क्रिश्चियन पात्रों को मानवीय करुणा से ओतप्रोत दिखाया गया है | दरअसल, अच्छे या बुरे लोगों को धर्म से नहीं जोड़ा जाना चाहिये, क्योंकि वे सभी धर्मों में होते हैं | क्यों न हम अच्छाई को धर्म और बुराई को अधर्म मान लें | कई विवाद समाप्त हो जायेंगे |
संभवतः एक फिल्म का नाम था ‘क्रिसमस स्ट्रीट’ जिसमें दिखाया गया था कि एक गरीब बस्ती में एक प्यारा बालक जानलेवा बीमारी से ग्रस्त है और उसकी अंतिम इच्छा है कि कम से कम क्रिसमस तक जीवित रहे । डॉक्टर का कहना है कि बालक क्रिसमस तक जीवित नहीं रहेगा | बस्ती के लोग तय करते हैं कि वे सब क्रिसमस के बहुत पहले ही अपने घरों को क्रिसमस की तरह सजा लेंगे | पूरे उत्साह व ऊर्जा से क्रिसमस पूर्व ही क्रिसमस मनाया जायेगा ताकि उस बीमार बालक की अंतिम इच्छा पूरी हो सके | इसी फिल्म की प्रेरणा से विश्वप्रसिद्ध डिज्नी थीम पार्क में एक क्रिसमस ट्री को स्थाई रूप दे दिया गया है जहाँ पर क्रिसमस बारहमासी बना दिया गया है | क्या हमारा कोई थीम पार्क या स्टुडियो इसी तरह दिवाली या ईद स्ट्रीट का निर्माण करेगा ? नैराश्य से घिरा व्यक्ति इस तरह की क्रिसमस, दिवाली या होली, उत्तरायण, ईद स्ट्रीट पर कुछ समय बिताकर अपने नैराश्य से मुक्ति पा सकता है |
एक दौर था कि जब फिल्मों में होली के दृश्य रखे जाते थे पर अब हमारे देश के पारम्परिक उत्सव फिल्मी पर्दे पर नजर नहीं आते ! जो कि आने चाहिये !
अब, मैं एक अच्छी खबर बताता हूँ | दिल्ली के माधव की, जो सिर्फ 17 साल का है – किशोर वैज्ञानिक – उसने अविष्कार किया है – एक ऐसी डिवाइस बनाई है कि जो बधिरों के लिए आवाज को टेक्स्ट में बदलती है, खर्च सिर्फ 2,500/- रूपये ! 132 भाषओं में आवाज को टेक्स्ट में बदला जा सकता है । आईये इस खबर को पढ़ते हैं:
परेशान बधिर दोस्त ने स्कूल छोड़ दिया था, इसी से प्रेरित होकर माधव ने डिवाइस बनाई
दिल्ली के 17 साल के माधव ने ऐसी डिवाइस बनाई जो बधिरों के लिए आवाज को टेक्स्ट में बदलती है, खर्च सिर्फ 2500 रुपए
नई दिल्ली । दिल्ली का माधव लवकरे सिर्फ 17 साल का है । उसे भरोसा है कि भारत में जो काम गूगल ग्लास नहीं कर पाया, वह उसका इनोवेशन करेगा । संस्कृति स्कूल के छात्र माधव का एक दोस्त सुन नहीं सकता था । दूसरे छात्रों से बातचीत में रोजाना समस्या आने के कारण दोस्त ने स्कूल आना छोड़ दिया । इसी से प्रेरित होकर माधव ने ट्रांसक्राइब नाम से एक स्मार्ट ग्लास बनाया है । जो लोग सुन नहीं सकते, उनके लिए यह ग्लास बातों को टेक्स्ट के रूप में दिखाता है ।
ट्रांसक्राइब को इसी साल नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन ने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम इग्नाइट अवॉर्ड दिया था । माधव अब अच्छी क्वालिटी के इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स लेकर ट्रांसक्राइब का नया डिजाइन बनाना चाहता है ताकि ज्यादा से ज्यादा जरूरतमंदों को इसका लाभ मिल सके । अभी ट्रांसक्राइब का इस्तेमाल पढ़े-लिखे लोग ही कर सकते हैं लेकिन सूचनाओं का आदान-प्रदान संकेतों से भी हो सकता है । माधव इसी का प्रोटोटाइप बना रहा । ट्रांसक्राइब बनाने पर उसे करीब 2500 रुपये का खर्च आया है । माधव इससे मुनाफा नहीं कमाना चाहता । वह सिर्फ इतना चाहता है कि इसे बनाने और आगे रिसर्च एंड डेवलपमेंट के लायक पैसे मिल जाएं ।
नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन ने माधव के लिए ट्रांसक्राइब का पेटेंट कराया है । वह सरकार के लिए ऐसे प्रोडक्ट बनाना चाहता है जिन्हें स्कूल, कॉलेज और दूसरे सार्वजनिक केन्द्रों पर बड़ी संख्या में बाँटा जा सके । माधव का कहना है, अभी मैं बहुत छोटा हूँ, इसलिए निवेशकों के पास नहीं जा सकता । लोग क्राउडफंडिंग से ही मेरी मदद कर रहे हैं । एक क्राउडफंडिंग साइट की मदद से वह 3 लाख रुपये जुटाना चाहता था । अब तक उसे 2.5 लाख रुपये मिले हैं । वह अंतरराष्ट्रीय वेबसाइट पर भी क्राउडफंडिंग के लिए जाने वाला है । स्टैटिस्टा के अनुसार भारत में क्राउडफंडिंग इंडस्ट्री अभी सिर्फ 8 करोड़ रुपये की है । (साभार : फोबर्स)
132 भाषाओं में आवाज को टेक्सट में बदल सकती है ट्रांसक्राइब
माधव ने यह डिवाइस सस्ते माइक्रोचिप से बनाई है । इसे यूजर के स्मार्टफोन के साथ ब्लुटूथ जरिए जोड़ा जाता है । गूगल के एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (एपीआई) के जरिए यह 132 भाषाओं में आवाज को टेक्सट में बदल सकता है । बदला हुआ डेटा ब्लूटूथ के जरिए ग्लास पर डिसप्ले होता है । यह डिवाइस किसी भी चश्मे के फ्रेम के साथ अटैच की जा सकती है, भले ही उसमें कोई भी पावर हो ।
माधव लवकरे ने क्राउडफंडिंग से अब तक 2.5 लाख रुपये जुटाए हैं ।
दैनिक भास्कर – 11, 25/12/18
25 दिसम्बर, भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी बाजपेयी का जन्मदिवस है | मेरे पिताश्री पूज्य आशारामजी बापू के अटलजी के साथ काफी घनिष्ठ संबंध रहे | उनको प्रधानमंत्री बनाने के लिए भी पूज्य बापूजी का योगदान सर्वविदित है | 25 दिसम्बर, 2018, आज ब्रह्मपुत्रा नदी पर भारत के सबसे लंबे रेल रोड़ बोगिबील पुल का उद्घाटन हुआ है जिस पुल का निर्माण पिछले 16 वर्षों से चल रहा था | यह भारत का पहला रोड़ सहित रेल ब्रिज 4.94 कि.मी. लंबा है | इस पुल के बनने से रेल्वे ट्रेक के द्वारा 705 कि.मी. यात्रा की दुरी घटेगी एवं दिब्रूगढ़ से ईटानगर तक सीधा लोग आवगमन कर सकेंगे | इसके लिए मैं आसाम व अरुणाचल की सरकार को विशेषरूप से बधाई देता हूँ और केन्द्र सरकार को भी, क्योंकि पिछले चार साल में तेजी से इस कार्य को पूर्ण किया गया, जो पिछले 16 सालों से चल रहा था |
यहाँ प्रयागराज में कुंभ की तैयारियाँ अंतिम चरण में हैं । कई अखाड़ों के साधु-संत-नागा-दिगम्बर-महात्माओं के पहुँचने का सिलसिला तेज हो रहा है | कुंभ के लिए स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही है | मैं तो मन ही मन वहाँ के कई बार दौरे कर रहा हूँ | खास बात ये है कि राष्ट्र संत पूज्यश्री मोरारी बापू कि जिनसे मैं भावनात्मक रूप से कई वर्षों से जुड़ा हूँ और मेरे-उनके बीच मधुर संबंध रहे हैं – इन दिनों परिक्रमा मार्ग, अयोध्या में श्री राम कथा कर रहे हैं… इस कथा का नाम है मानस गणिका ! यह कथा गणिकाओं के लिए विशेषरूप से आयोजित है और कथा में विशेषरूप से गणिकाओं पर संवाद किया जा रहा है | 22 दिसम्बर से 30 दिसम्बर 2018 तक रामजन्मभूमि अयोध्या में मेरे आत्मस्वरूप पूज्य मोरारी बापू गणिकाओं (सेक्स वर्कर्स) को केन्द्रित करके जो मानसगान कर रहे हैं इस विषय पर तखुभाई सांडसुरे पत्रकार ने इन्टरव्यू लिया था जिसे कुछ समाचार-पत्रों ने प्रकाशित किया | गणिकाओं को लेकर समाज में जो उपेक्षाभाव, या तिरस्कार है उसे खत्म करने के लिए, लोगों का नजरिया गणिकाओं के प्रति बदलने के लिए पू. बापू का जो प्रयास है वह सचमुच प्रशंसनीय है और स्वागत करने योग्य है । इतिहास गवाह है कि भगवान बुद्ध गणिका के पास भिक्षा लेने गये थे और संत तुलसीदास ने वासंती नाम की गणिका के अंतिम समय में रामनाम की महिमा का गान करके आपद् धर्म निभाया था | गणिका के बारे में पूज्य मोरारी बापू का दृष्टिकोण हमें समझना होगा | वे कहते हैं –
“गणिका मतलब केवल देह व्यापार से जुड़ी कोई स्त्री या महिला नहीं परंतु हमें उसे लिंग से ऊपर उठकर देखना होगा – जब कोई पुरुष रुपयों के लिए अपना ईमान बेचता है तो वो गणिका है | जैसेकि कोई सेवक अपनी सेवा के लिए या कोई साधु-कथाकार अपने व्याख्यान प्रवचन के लिए अपनी निष्ठा को बेचता है तो वह भी गणिका ही है | हाँ, गणिकाएँ कभी कदाचित् अपनी लाचारी से या मजबूरी से या आदतन अपना देह बेचती होंगी लेकिन वो अपना दिल कभी नहीं बेचती!
मोरारी बापू न केवल एक अच्छे कुशल कथाकार हैं बल्कि वे समाजोत्थान, सामाजिक लोकक्रांति के प्रणेता भी हैं और सांप्रत समाज ने उन्हें इस रूप में स्वीकार किया है, नवाजा है | रामकथा के माध्यम से वे सामाजिक क्रांति कर रहे हैं और साहित्य-शिक्षा जगत, समाज कल्याण के अनेक विषयों पर उनकी वाणी देश-दुनिया को एक नई दिशा-नई ऊर्जा प्रदान कर रही है ! तखुभाई ने पू. बापू का जो इन्टरव्यू लिया वह गुजरात मित्र (गुजराती अखबार) के सत्संग में सोमवार 17 दिसम्बर, 2018 को पेज नं. – 5 पर प्रकाशित हुआ है जो मैंने पूरा पढ़ा | आप भी गूगल करके पढ़ सकते है | भद्रायु वछराजानी (email :- bhadrayu2@gmail.com) ने भी इस विषय में लेख लिखा है जिसका हेडिंग है – ‘आज जाने की जिद् ना करो’ – ऐसी विनंति कोई ग्राहक से करे तो ?’ उनका यह लेख मोरारी बापू की मानस गणिका विषय पर लिखा गया है जो कि 23 दिसम्बर, 2018 को गुजराती दिव्यभास्कर की रससंग मैगज़ीन में पृष्ठ – 4 पर छपा है |
गौरतलब है कि पू. मोरारी बापू ने मुंबई के कमाथीपुरा में जाकर गणिकाओं को ‘मानस गणिका’ रामकथा के लिए अयोध्या में आने का आमंत्रण दिया था | खबर है कि करीब 200 गणिकाएं अवध में पहुँची हैं ! रामकथा का रसपान कर रही हैं वहीं इस ज्ञानयज्ञ में कुछ तथाकथित सुधारक (!) विरोध करने लग गये हैं | ज्योतिष शोध संस्थान के मुखिया प्रवीण शर्मा ने योगी आदित्यनाथ को शिकायत की है कि ‘मोरारी बापू रूप ललनाओं के जीवन में अगर सचमुच बदलाव या परिवर्तन लाना चाहते हैं तो रामकथा में खर्च करने के बजाय वे रूपजीवियों को आर्थिक सहायता प्रदान करें | बापू समाज में परिवर्तन लाना चाहते हों तो माओवादी और रोड लाइट एरिया में जाकर रामकथा का आयोजन करें ।’ कुछ दक्षिणपंथी संगठनों ने भी सी एम से शिकायत करने की जानकारी मिली है | भगवा ब्रिगेड का कहना है कि ऐसा करने से अयोध्या की छवि खराब होती है | डंडिया मंदिर के महंत भारत व्यास ने भी विरोध किया है कि भगवान राम की जन्मभूमि पर सेक्स वर्कर के आने से गलत संदेश जाता है | वहीं अयोध्या में महंत पवनदास शास्त्री ने तो ये तक कह डाला कि विश्वामित्र और नारद जैसे भी महिलाओं के प्रभाव से नहीं बच सके ऐसे में अयोध्या में गणिकाओं की उपस्थिति को कैसे स्वीकार किया जाए ? इतना सब होने के बावजूद पू. मोरारीबापू के चित्त पर इस विरोध का कोई असर नहीं हैं | महापुरुष अपनी समता, शांति, स्वस्थता को विपरीत माहौल में, विरोध के बीच, विवादों से घिरे होने के बावजूद भी छोड़ते नहीं हैं |
अब मैं आपको मुंबई के संजीव की बात बता रहा हूँ, लोग उन्हें पागल मास्टरजी बुलाते हैं… हाँ… जिन्होंने गल को पा लिया, बात को समझ लिया, वो पागल… सही अर्थों में बुद्धिमान ही तो हैं ! करीब 20 साल पहले संजीव त्रिपाठी को जीवन का मर्म समझ में आ गया – जीवन है दूसरों की सेवा के लिए ! मदद के लिए ! सहायता के लिए !
किसी ने ठीक कहा है:
अपने दुःख मे रोनेवाले तू मुस्कुराना सीख ले |
दूसरों के दुःख दर्द में तू काम आना सीख ले ||
आप खाने में वो मजा नहीं जो दूसरों को खिलाने में है,
जिन्दगी है चार दिन की किसी के काम आना सीख ले ||
मानों यह बात संजीव ने पकड़ ली, आत्मसात् कर ली, अंगीकार कर ली | जीवन का मर्म समझ में आ गया उनको… जीवन एक चलता फिरता खिलौना ही तो है… ! सुरक्षित नौकरी छोड़कर वे जुट गये मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के जीवन को सुधारने के लिए ! ठान लिया की मुझे उनकी सेवा करनी है |
ऐसा करने पर लोग उन्हें पागल मास्टरजी कहकर बुलाते हैं पर इससे उनको कोई फर्क नहीं पड़ता | संजीव जी के स्कूल में करीब 250 बच्चे हैं इनमें से पचास प्रतिशत बच्चे बेहद गरीब हैं, जिनसे कोई फीस नहीं ली जाती । 50 प्रतिशत बच्चे सक्षम हैं उनके अभिभावक आर्थिक मदद करते हैं | मानसिक रूप से अस्वस्थ, पागल बच्चों की सेवा सहायता-संरक्षण करने के लिए संजीव ने अपना जीवन समर्पित किया है |
एक घटना से उन्हें चोट पहुँची और सेवा करने को प्रेरित हुए | करीब 20 साल पहले संजीव एक गाँव में गये थे जहाँ पर गाय चरा रहे मानसिक रूप से कमजोर बच्चे का अन्य बच्चे मजाक उड़ा रहे थे | कोई उसे डीएम कह रहा था तो कोई चड्डी खींच रहा था | ये दृश्य बड़ा दुखद था कि बच्चा समझ ही नहीं पा रहा था कि लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं । इस दृश्य को देखने के बाद संजीव की नींद गायब हो गई । बार-बार उस लाचार बच्चे का चेहरा सामने आने लगा और वे बेचैन हो जाते । आखिर नौकरी छोड़कर वे मानसिक रूप से बीमार बच्चों की सेवा करने के उद्धेश्य वाली संस्था से जुड़ गये ।
संजीव बताते हैं कि कई पैरेंट्स अक्सर कहा करते हैं कि हमारे बाद बच्चों का क्या होगा । ऐसे लोगों की मदद से वे इन बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने में जुट गये हैं । वे एक ऐसा होस्टेल बनाने जा रहे हैं जहाँ ऐसे बच्चों को आजीवन कोई असुविधा न हो और वे अन्य लोगों जैसी जिंदगी जी सके । ऐसे बच्चों में कार्य करने के प्रति जूझने की क्षमता सामान्य बच्चों की तुलना में अधिक होती है । मैं इन्हें देखकर जीता हूँ, यही हमारे सपने हैं, यही हमारे अपने हैं । पराया दर्द जो अपनाए उसे इंसान कहते है…
ऑप्टिज्म पीड़ित बच्चों की सेवा करने के लिए सुरक्षित नौकरी को छोड़कर संजीव त्रिपाठी जुटे हुए है… मैं आपसे पूछता हूँ क्या हमारे समाज के असली हीरो ऐसे लोग नहीं हैं ? जो परोपकार में रत हैं, दूसरों के सुख के लिए जो अपने सुख की परवाह नहीं करते… ऐसे लोग ही हैं समाज के असली हीरो ! हमें उन्हें पहचानना होगा… तभी समाज को, देश को हम बेहतर बना सकते हैं । संजीव बताते हैं कि मैं यह देखकर और अधिक बेचैन हो गया कि अधिकतर संस्थाएँ सिर्फ नाम और पैसे के लिए कार्य कर रही हैं । आहत होकर उन्होंने खुद की संस्था शुरू की । मुम्बई में ऑप्टिज्म पीड़ित बच्चों के लिए ट्रेनिंग शुरू की । यह अपने आपमें कठिन फैसला था । बच्चे सड़क पर बैठ जाते… जोर-जोर से रोने लगते । अक्सर भीड़ इकठ्ठा हो जाती । मगर कुछ ही दिनों के बाद बच्चों में बेहतर परिणाम दिखने शुरू हो गए । तभी ऑप्टिज्म शिकार कुछ बच्चों के परिजनों ने आर्थिक मदद की और स्कूल शुरू हुआ । आज भांडूप, मीरा रोड़ और बोरीवली में उनके तीन स्कूल हैं । मैं मुम्बई में रहनेवालों से खास अपील करता हूँ कि पर्व-उत्सवों के दौरान विशेषरूप से संजीव द्वारा चलाये जा रहे स्कूलों में जाए और उन्हें सेवा-सहायता देकर उनके जीवन में खुशहाली लाने का प्रयत्न करें । हमें समाज के हर वर्ग, विशेषकर वंचित, पीड़ित और रोगियों की सेवा, सहायता करते रहने के लिए जागृत रहना चाहिए, प्रयासरत रहना चाहिये । मैं, संजीव त्रिपाठी को उनके इस दैवीकार्य के लिए खूब-खूब बधाई और धन्यवाद देता हूँ ।
बचपन में स्कूली पढ़ाई के दौरान आश्रम के साधक भाई द्वारा मुझे एक किताब दी गई थी डेल कार्नेगी की, जिसका हिन्दी अनुवाद था – “जिंदगी जीतने की जड़ीबूटी” । मूल रूप से वह अंग्रेजी में है – How to win friends and Influence people by Dale Carnegie.
अब पुनः इन दिनों जेल की लाइब्रेरी से यह किताब इन दिनों मेरे पास है । व्यवहार कुशल, वाक् कौशल बनने के लिए लोगों के साथ किस तरह बर्ताव करके हम जिंदगी में सफल हो सकते हैं, मनुष्य-जाति के गुण-दोषों को समझने की प्रयोगशाला में लेखक ने इस पुस्तक की रचना की है । सामाजिक व्यवहार, व्यापार में वृद्धि एवं अपनी वाणी-व्यवहार के द्वारा लोगों से तालमेल बिठाने में यह पुस्तक का पठन बहुत उपयोगी है ऐसा मुझे लगता है । जो लोग अपने वाणी-व्यवहार के द्वारा लोगों के हृदय में स्थान बनाना चाहते हैं और सफलता पाना चाहते हैं उन्हें एक-दो बार अवश्य इस पुस्तक को पढ़ने की मैं सलाह देता हूँ ।
अब, क्रिसमस के बारे में लिखना प्रासंगिक होगा ! भूतपूर्व अमेरिका के राष्टप्रमुख जीमी कार्टर का एक विधान नाताल के दिनों में याद आना चाहिए । वे कहते हैं – ‘प्रभु इसु, आपके घर आज दोपहर में ही आनेवाले हैं उस ढंग से आप अपनी दिनचर्या बनाइयेगा ।’
लेखक युवाल नोहहचरि की एक बात थी सुनिए – ’21 Lessons for the 21st Century” जैसी विश्वप्रसिद्ध पुस्तक में एक मौलिक बात वे करते हैं । वे कहते हैं कि एकेश्वरवाद के जरिये मानवजाति का नैतिक लेवल ऊँचा नहीं हुआ है । लेखक कहता है – क्या आप वास्तव में मानते हो कि मुसलमान हिन्दुओं से ज्यादा नीतिवान हैं ? इतने ही कारण कि वे एक ही अल्लाह में मानते हैं और हिन्दू लोग अनेक भगवानों में मानते हैं ? क्या अमेरिका के मूल निवासी ऐसे नास्तिकों की अपेक्षा से तो ख्रिस्ती युद्ध करनेवाले ज्यादा असहिष्णु थे । जो बहुईश्वरवादी ऐसे तो अन्य प्रजा के लोग किसी भी भगवान को माने उसके लिए खुले मनवाले थे । उन लोगों ने शायद ही अन्य धर्मियों को युद्ध में मारा या सताया है या कत्लेआम की है या मौत के घाट उतारा था । उनके बदले जो एक ही ईश्वर में माननेवाले थे, उन्होंने तो ऐसा माना कि उनका भगवान तो एकमात्र ऐसा भगवान है और उसी भगवान के प्रभाव तले पूरी दुनिया को रहना चाहिये । परिणाम ये आया कि ईसाई धर्म और इस्लाम का फैलाव दुनियाभर में हुआ जिसमें क्रुसेड और जेहाद की घटनाएँ बड़ी भयंकर हुई । साथ ही सुधारकों पर सजा के लिए खटले चले और धार्मिक भेदभाव के आचरण करने का केस चला । इस महान लेखक का प्रवचन 16 दिसम्बर को मुम्बई में आयोजित हुआ परंतु गुणवंत शाह – मेरे पसंदीदा लेखक और विचारक विद्वान उस प्रवचन को सुनने नहीं जा पाए । उसका उनको दुःख हुआ ।
वैसे, अनुयायियों की संख्या के दृष्टिकोण से देखा जाए तो ईसाई धर्म के अनुयायियों की संख्या आज दुनिया में सबसे ज्यादा है और इस दुनिया में शायद ही ऐसा कोई देश होगा जहाँ कम-ज्यादा प्रमाण में ख्रिस्तियो का बसेरा न होगा । इसी परिस्थिति और आज के विश्व में यूरोप के सांस्कृतिक वर्चस्व के कारण पूरी दुनिया ने ईसाई पंचांग को और ईसाई उत्सवों को अपना लिया है । ईसाई नववर्ष को मनाने में सब धर्मों के लोग शामिल हो जाते हैं । लेकिन नाताल का उत्सव अधिकतर ईसाई लोग ही मनाते हैं क्योंकि 25 दिसम्बर जीसस क्राइस्ट का जन्मदिवस माना जाता है । नाताल मतलब जन्मस्थान या जन्मदिवस । लेकिन अब मूल अर्थ भूला दिया गया है और 25 दिसम्बर केवल इसु के जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं लेकिन 25 दिसम्बर को उत्सव तो इसु के जन्म के पहले दो हजार सालों से पहले मनाया जाता रहा है और इसु के साथ 25 दिसम्बर को कोई संबंध नहीं है । गरीब, अज्ञान, कुटुम्ब में जन्मे इसु ख्रिस्त के जन्म की तारीख कोई जानता नहीं और बाईबल में भी उसका कोई जिक्र नहीं है ।
25 दिसम्बर मकर संक्रांति के उत्सव के रूप में प्राचीन इजिप्त में मनाई जाती थी और सारे सम्राट देवाशी गिनते होने से 25 दिसम्बर हरेक सम्राट के जन्मदिन के रूप में मनाने का रिवाज चल पड़ा । आधुनिक खगोलशास्त्र के आधार से चला जाए तो सूर्य का मकर प्रवेश 21 दिसम्बर को होता है । हम लोग 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाते हैं वो हमारे खगोलशास्त्रियों के अज्ञान का परिणाम है और 25 दिसम्बर को मनाया जाना ये इजिप्त में खगोलशास्त्रियों की गिनती की भूल है – ऐसा नगीनदास संघवी (nagingujarat@gmail.com) ने लिखा है ।
खैर, जो भी हो विवाद में क्यों पड़ना ? खुशियाँ मनाने का कोई भी अवसर हाथ से क्यों जाने देना ! अवसर मिले ना मिले खुश रहना, उत्सव मनाना सबका अधिकार है उसे छीना नहीं जा सकता ।
अंत में, सभी को बधाई… खुशियाँ मनाएँ… मौज में रहें !
नीचे गिरे सूखे पत्तों पर अदब से ही चलना जरा !
कभी कड़ी धूप में तुमने इनसे ही पनाह माँगी थी !!
क्षणों की राख मुट्ठी में लिए
जिंदगी की सड़क पर दौड़ते रहे हम…
उसे पाने के लिए
अब, लेखनी को विराम देता हूँ,
इंतजार कीजिए मेरे अगले संदेश का !
जय-जय ।
शुभं… मंगलं… आनन्दं सर्वदा ।
नारायण साँई
26 दिसम्बर, 2018
Bye Bye 2018…
Welcome 2019…