सभी आश्रमवासी भाई-बहनों के नाम पत्र

(वकीलों द्वारा प्राप्त)

30 अप्रैल, 2019 के बाद, कि जब से सूरत सेशन्स कोर्ट ने 17 वर्ष पुरानी उपजाऊ कहानी के आधार पर अशुद्ध बुद्धि व मलिन इरादों से दर्ज केस का आश्चर्यजनक आजीवन कारावास का दंड मुझे सुनाया, उसके बाद से आज लेखनी उठाकर लिखना पुनः शुरू किया हूँ । (1/6/2019) बहुत ही आश्चर्य हुआ, व्यथित हुआ और पीड़ित भी, कि बलात्कार के कानूनों का कितना दुरुपयोग हो रहा है – गलत सजाएँ दी जा रही हैं और कई पुरुष निर्दोष होने के बावजूद जेल में लंबे समय से पड़े हैं । डॉ. दुर्गादास बसु की ‘भारत का संविधान : एक परिचय’ पुस्तक पढ़ रहा था । उसमें लिखी बात बहुत सत्य और सटीक है कि “मानवों द्वारा संचालित कोई भी न्यायिक प्रक्रिया पूर्वतः दोषमुक्त कभी हो ही नहीं सकती ।”
सोक्रेटिस को युवाओं को भड़काने, उकसाने के आरोप में जेल में बंद कर दिया था । गेलेलियों ने कहा था – धरती घूमती है सूर्य खड़ा है – तो उनको भी जेल में डाल दिया गया । जेलों व अदालतों का दुरुपयोग सदियों पहले से होता आ रहा है । कृष्ण के माता-पिता को जेल में रखना क्या उचित था ? गाँधीजी, अरविंद, विनोबा को जेल में रखना क्या उचित था ? कई उदाहरण मिलेंगे इतिहास में कि कई लोगों को अनुचित जेलवास भुगतने के लिए मजबूर किया गया !
गाँधीजी की ‘हिन्द स्वराज’ पुस्तक आप पढ़के देखियेगा । उसमें जो अदालतों के बारे में, वकीलों व जजों के बारे में महात्मा गाँधी के विचार हैं वे अवश्य पढ़ना – वे कहते थे कि अगर देश अदालतों से मुक्त हो जाए तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा । सरकारें अदालतों के जरिये लोगों को गुलाम बनाने का कार्य करती हैं । आप क्या मानते हो ? अंग्रेजों ने भारत को गुलाम ऐसे ही नहीं बनाया । अदालतों के जरिये लोगों की स्वतंत्रता छीन ली और गुलाम बनाया । वे कहते है कि “मैं सर्वथा अदालतों के नाश होने का प्रयत्न तो नहीं करता चूँकि अगर ऐसा हो जाए तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा ।”
जितने गाँधीवादी लोग भारत में और दुनिया में है वे गाँधी के विचारों, सिद्धांतों को मूर्त रूप देने की कोशिशों में लग जाए तो अवश्य अदालत/न्यायालय मुक्त भारत निर्माण की मुहिम तेज हो सकती है ।

दिनोंदिन भारत के लोगों का भारतीय न्यायालयों पर विश्वास तेजी से घटता जा रहा है क्योंकि न्यायालयों द्वारा अधिकतर मामलों में न्याय नहीं अन्याय ही मिलता है । न्याय मिलता नहीं खरीदना पड़ता है । कभी भी ऐसी स्थिति आ सकती है की जनता का न्यायालयों के खिलाफ इतना आक्रोश बढ़ जाएगा कि लोग न्यायालयों का बहिष्कार करने पर उतारू हो जाएंगे । ऐसी स्थिति कभी भी बन सकती है ।
न्यायालयों का पक्षपात पूर्ण रवैया, मीडिया व सरकार के दबाव में काम करना, लंबे समय तक मामलों को टालते या खींचते रहना, निर्दोषों को सजा देना यह सारे मुद्दे गंभीर है और राजनीतिक हस्तक्षेप भी न्यायालयों में जिस तरह बढ़ता जा रहा है इससे लोगों का भरोसा अदालतों से खत्म हो रहा है । महात्मा गांधी स्पष्ट रूप से मानते थे कि अदालतें अंग्रेजों ने लोगों को गुलाम बनाने के लिए बनाई है और यह अदालतें भारत से खत्म हो जाए तो उनको बहुत खुशी होगी ऐसा हिंद स्वराज पुस्तक में उन्होंने लिखा है । अगर हम भारत को पूर्ण स्वतंत्र देखना चाहते हैं तो अंग्रेजों की बनाई और अंग्रेजों की नीति पर चलने वाली अदालतों को भारत से खत्म कर देना होगा । #CourtFreeIndia याने न्यायालय मुक्त भारत बनाना होगा क्योंकि न्यायालयों द्वारा जब न्याय ही नहीं मिल रहा हो तो न्यायालयों की जरूरत ही क्या है ? भारत के न्यायालय लोगों को गुलाम बनाने के प्रमाण बनकर खड़े हैं । इन न्यायालयों भवनों को शिक्षा केंद्र बना देना चाहिए ।

“Court Free India” – यह गांधीजी का सपना था । गांधीजी के चाहक, समर्थक व गांधी विचारों को आत्मसात करने वाले लोग उनके विचारों को साकार करने की दिशा में कदम आगे बढ़ा सकते हैं ।
हनी ट्रैप में पुरुषों को फंसा कर कुटिल स्त्रियों द्वारा मोटी रकम वसूलने की घटनाएं बढ़ती जा रही है । सूर्पनखा, मंथरा, पूतना के वंशज आज भी है और वह महिला सुरक्षा के बने कानूनों का दुरुपयोग करती है ।
न्यायाधीश के नाम मैंने डेढ़ साल पहले एक पत्र लिखा था । वह उन तक किन्ही कारणों से पहुंच नहीं पाया, यह पत्र उन तक पहुंचता तो शायद मुझे सजा नहीं सुनाई जाती । खैर आप सभी व्यथित हैं, व्याकुल हैं, उदास है, निराश हैं लेकिन यह सारी मन की दशा है- मन बदलता रहता है । मन, बुद्धि, इंद्रियां , शरीर जिससे सत्ता पाते हैं उस आत्मस्वरूप में कोई विक्षेप नहीं, उस आत्मज्ञान में दृढ़ रहें ।
आत्मा लाभात् परम लाभं न विद्यते…
जीवन के लक्ष्य को भूलना नहीं है और दृढ़ता से लगे रहना है । जीवन को ज्ञान, प्रेम, सेवा व परोपकार से सार्थक बनाते रहना है ।
शरीर का पालन-पोषण – कहीं भी शरीर रहे – प्रारब्ध के अनुसार होता ही रहेगा – इसकी चिंता नहीं ।
आप फिक्र किए बिना – गुरुज्ञान को आत्मसात् करते हुए अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते रहिए ।
और खास बात कि
राग-द्वेष दोनों खोईये
खोजिये पद निर्वाण ।
कह नानक पथ कठिन है
कोई कोई गुरुमुख जान ।।
तो विरले – कोई-कोई – “गुरुमुख…”बनने का प्रयास करें ! विरले गुरुभक्तों की सूची में मैं होऊँ – ऐसा सोचकर आगे बढ़ें ।
आपका –
नारायण साँईं
1/6/2019

दूसरा पत्र जल्दी लिखूँगा ।

Comments (3)
P Murali Krishna rao
June 2, 2019 5:01 pm

Hari om sai

Reply

Sunil Sudam Pardeshi
June 2, 2019 6:01 pm

Hari om

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Sangeeta
June 2, 2019 6:02 pm

Prabhu ji jaldi aaiye

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