खुशहाल जिंदगी के समर्थक – श्री गणेश

–  नारायण साँईं

‘श्री गणेशाय नमः’ के साथ गणपति गजानन बप्पा का मंगलमय स्मरण करते हुए विश्व के तमाम मनुष्यों को गणेश उत्सव के अवसर पर मैं हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ प्रदान करता हूँ ।

भारत में करीब 70-75 साल पहले स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बाल गंगाधर तिलक ने समाज में समरसता बढ़ाने के लिए गणेश उत्सव को सार्वजनिक रूप से मनाने की रीत शुरू की थी, ताकि आम लोगों की इस उत्सव के साथ ही स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी बढ़ सके । उनका प्रयास समय के साथ व्यापक स्वरूप लेता गया ! आजादी प्राप्त करने के लिए लोकोत्सव बना यह गणेशोत्सव पर्व आज सामाजिक, पारिवारिक बंधनों को मजबूत करने का अवसर बन गया है । स्नेह बाँटने का त्यौहार बन गया है । कारावास में बंद कई कैदी भी बहुत उत्साह से गणेशोत्सव मनाते हैं । गणपति की स्थापना करते हैं ।

यह सिर्फ भारत में ही नहीं, विश्व में जहाँ भी भारतीय समुदाय बसता है, उन देशों में भी उत्साह के साथ दस दिन गणपति उत्सव के बहुत ही आस्था और संस्कृति के भावों को हर बार नए रंग में रंगते हैं । हमें परंपराओं के जीवंत होने का एहसास होता है हर वर्ष के गणेशोत्सव में ! इस पर्व पर उल्लास और कलात्मक भावों को भक्ति का साथ मिलता है । मिलना-जुलना, झूमना और बप्पा का स्वागत सत्कार करने का गणेश-उत्सव सही मायनों में एक अनूठा लोक उत्सव है, जो हर आँगन की शोभा बढ़ाता है ।

‘गणपति बप्पा मोरिया…’ का जयघोष भारत के कई स्थानों पर विशेष रूप से गणपति उत्सव के दस दिन गूँजता है । इस जयकारे की कहानी महाराष्ट्र के एक गाँव चिंचवाड़ से जुड़ी है । यहाँ एक संत हो गए जिनका नाम था, मोरया गोसावी । वे गणपति के बहुत बड़े भक्त थे ! गणेश चतुर्थी को वे कई किलोमीटर पैदल चलकर मयूरेश्वर मंदिर उनके दर्शन करने जाते थे । यह सिलसिला 117 साल तक चला । अधिक उम्र हो जाने के कारण उनका यह सिलसिला टूटने लगा, तब स्वप्न में गणपति ने कहा कि एक मूर्ति तुम्हें नदी में मिलेगी… इसके बाद वैसा ही हुआ । धीरे-धीरे यह बात फैल गई और लोग मोरया गोसावी के दर्शन के लिए आने लगे । उनके पैर छूकर उन्हें मोरया कहने लगे । मोरया भी अपने भक्तों को मंगलमूर्ति पुकारने लगे । तब से ‘गणपति बप्पा मोरया’ जयघोष शुरू हुआ, जो आज भी हम सुनते हैं ।

किसी भी काम के शुभारंभ से पहले गजानन की आराधना की जाती है । शादी-ब्याह के न्यौते भी सबसे पहले उनके द्वार ही पहुँचते हैं । बप्पा यानी कोई अपना-सा ! प्रथम पूज्य गणेश, ईश्वर हैं लेकिन औपचारिकताओं से परे हैं । उनकी ओर देखना यानी चेहरे पर मुस्कुराहट का आना और अपनी उलझनें भूल जाना ! ये एक ऐसे साथी हैं जो बच्चें हों या बड़े सबको अपने से सहज लगते हैं और प्यार बाँटते महसूस होते हैं ।

हर शुभ कार्य में जिनका स्मरण और पूजन सबसे पहले होता है ऐसे गजानन को हर साल ढोल-नगाड़ों की धुन पर नाचते-गाते घर लाइये, विराजमान कीजिए, दस दिन उत्सव मनाइये और फिर आखिरी दिन विदा कीजिए, साथ में यह आमंत्रण भी दीजिए कि ‘बप्पा, तुम्हें फिर अगले साल हमारे घर-आँगन, मोहल्ले में आना है… फिर से आना है बप्पा !’

गणपति बप्पा खुशहाल जिंदगी के समर्थक हैं । उनके हाथ में मोदक आनंद का प्रतीक है । मोदक में ‘मोद’ का अर्थ आनंद और ‘क’ का अर्थ है छोटा-सा भाग । इसका मतलब ही है आनंद का छोटा-सा भाग । हर पल को खुशी से जीएँ ! आनंद का हर क्षण अनमोल है । मुम्बई की रिंटू कल्याणी राठौड़ चॉकलेट से गणपति बनाती है, जिसका विसर्जन दूध में करने पर वे चॉकलेट मिल्क में तब्दील हो जाते हैं और सैकड़ों बच्चों को ये प्रसाद मिलता है । ‘स्व’ के ज्ञान और ऊर्जा के साथ जीवन की बाधाओं को पार करते हुए जो जीता है वह गणेश है ! आइये, हम प्रेरणा लें । सबको पुनश्च गणेशोत्सव की बधाई !

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