पूज्य पिताश्री,
सादर वंदन !
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को – ‘यदेच्छसि तथा कुरु’ – जैसी इच्छा हो वैसा कर ! – ऐसा कह दिया !
अपने ढंग से निर्णय लेने – सही निर्णय लेने के लिए योग्य बनाया, और ऐसा निर्णय लेने की स्वतंत्रता भी दी ।
गुरु, आचार्य या शिक्षक का काम विद्यार्थी या शिष्य के जीवन में महत्वपूर्ण निर्णय लेने का नहीं, परन्तु वास्तविकता से उसका परिचय करने का है – साथ ही सही व गलत की समझ देकर अपने आप उचित निर्णय लेने के योग्य बनाना है ।
आप भी मुझे ऐसे ही योग्य बनाएंगे – जैसे कृष्ण ने अर्जुन को बनाया था – आपके श्रीविग्रह के मानसिक चिंतन की तरंगों में हमेशा मैं स्वयं को महसूस करता हूँ और आपकी उपस्थिति हरदम मुझे रोमांचित कर देती है – और हिम्मत भी देती है ।
जन्माष्टमी के पावन पर्व पर आपको सादर प्रणाम करते हुए आशीर्वाद चाहता हूँ कि – आपकी कृपा ऐसी बने जैसे अर्जुन पर कृष्ण की कृपा बरसी थी ।
तमाम जिम्मेदारियों को समझने, निभाने – संस्था को विश्व में नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने और इस हेतु ठोस निर्णयों को लेने और पूरा करने का बल भी आप ही देंगे – इस विश्वास के साथ ।
आपका अपना –
आपकी सहानुभूति का चाहक –
‘नारायण’
6/9/2015

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