मौन में संवाद !

मौन से जो होता संवाद
वैसा भाषा से कहाँ होता है ?
अर्थहीन तो बहुत कुछ होता दिनभर
पर है जो महत्वपूर्ण, वो कहाँ होता है ?
मंदिर तो हर घर में होगा
लेकिन दिल से प्रभु की पूजा क्या होती है ?
प्रयोग होते हैं सत्य के,
लेकिन असत्य अलविदा कहाँ होता है ?
मंदिर के बाहर भूख लेती करवटें
लेकिन भगवान को छप्पन भोग लगाते हैं !
आदर्शों की बात करते हैं सारे
लेकिन अवसर आते ही शैतान बन जाते हैं !
प्रेम के वहम में जीते हैं सब
शुद्ध प्रीत के दर्शन कहीं कहीं होते हैं
सभी बंधे हैं औपचारिकता में
दिल की बात सच्ची कहाँ पेश होती है !
तो, चलिए, हम करें प्रयास,
जो नहीं होता हर जगह –
वो हमारे बीच हो !
संवाद मौन में हो, कुछ खास हो,
शुद्ध प्रीत हो, दिल की बात हो…
हाँ, ऐसा ही कुछ घटित हो,
हमारे बीच !
– नारायण साँईं

Comment (1)
Jayshree
August 4, 2019 5:49 am

Nice

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