जगत प्रतीत ही नहीं होना चाहिए । निर्वासनिक होगा तो दुःख क्यों मिलेगा ? (This world should not be perceived at all. When the being gets free of every desire then why would any pain impact at all?)
अध्यात्म की दुनिया तो एकदम निराली है। उसमें तुम्हारी चाल या शैली के साथ कोई लेना-देना नहीं है। जन्मों-जन्मों तक रात-दिन दौड़ा जाये तब भी कभी पहुँचा नहीं जा सकता और कुछ लोग तो आँखे खोलते ही पलकभर में पहुँच जाते हैं। अध्यात्म के जगत् में तुम कितना दौड़ते हो यह बिलकुल जरूरी नहीं [...]
जब तक चित्त का दृश्य के साथ संबंध है, तब तक कर्मबंधन बना ही रहेगा, अतः दृश्य के साथ संबंध तोड़ो । शुद्ध अद्वैत चिन्मात्र तत्व को प्राप्त करो । (Until the Chitta (mind & intellect) is attached to sight, bondage of Karma will persist. Hence, sever your relationship with sight. Attain the pristine consciousness [...]
वही ईश्वर ब्रह्म है । साक्षी, गंभीर, आत्मा, ॐ कार, प्रणव, परब्रह्म, चेतन, परमात्मा आदि उसी के नाम हैं । जब उस ईश्वर की कृपा होती है तब जीवन अंतर्मुख होकर निर्मल होता है । निर्मल हृदय में आत्मा की भावना होती है फिर विवेकरूपी दूत ईश्वर भेजता है । विवेक के आते ही आत्म [...]
मन को संकल्प-विकल्प रहित करके देखो, सारा दृश्य एक रूप हो जाएगा । (Just eradicate every resolve & counter-resolve from your mind and the entire outlook will become homogeneous.)
जीव आनंदस्वरूप है और यह विश्व अपना ही रूप है । फिर नाहक अज्ञान से दुःखी, भयभीत, चिंतित और परेशान होने की क्या जरूरत है ? (The being is the embodiment of Bliss and this world is our own reflection. Then why to be upset, agonized, worried and fearful unnecessarily?)
संसार समुद्र है । मृत्युरूपी भंवर है । तृष्णारूपी तरंगे - अज्ञानरूपी जल हैं - इन्द्रियाँ रूपी ग्राह हैं, विवेकरूपी नौका अचानक प्राप्त हो तभी बचते और तरते हैं । (This world is an ocean, a whirlpool of death. There are waves/ripples of desires & alligators of senses in the water of ignorance. By attaining [...]
हकीकत में कुछ बना ही नहीं - सब भ्रांति मात्र है । यह हर क्षण, हर पल याद रहे तो संसार का प्रभाव चित्त पर नहीं पड़ेगा । (In reality, nothing has been created- everything is just an illusion. With the consistent remembrance of this fact, the world will no longer impact our mind & [...]
दृढ़ वासना को ग्रहण करने पर ही अंतवाहक से अधिभौतिक होकर शरीर आदि प्राप्त होते हैं । चित्तवृत्ति स्फुरण से रहित होकर अपने स्वरूप की ओर आती है तब केवल अपना ही स्वरुप भासित होता है और परम आनंद अद्वैत रूप दिखता है । (Holding onto intense cravings takes the being from subtle to physical [...]
कैदियों को भी मानव अधिकार : सुप्रीम कोर्ट नई दिल्ली, (जी.टी.आई) 29 मार्च, 2018 देश की जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदियों को रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी के साथ बताया है कि कैदियों को भी मानवाधिकार है । उनको जानवर के समान जेल में नहीं रख सकते । अगर कैदियों को अच्छी [...]
एक खास बात है - कि लगभग हर मनुष्य स्वयं को अतृप्त, अपरिपूर्ण महसूस करता है ! हर मानव पूर्ण तृप्ति, पूर्ण संतुष्टि चाहता है परंतु उसे लाख कोशिशें करने के बावजूद भी तृप्ति , संतुष्टि मिलती नहीं है ! क्यों ? क्योंकि सही मार्ग से बेखबर है ! गुजरात के पोरबंदर में एक निलेश [...]