भारत के गणतंत्र की ताकत क्या है ?
गणतंत्र के तीन स्तंभ है । विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका । और तीनों के आदर्श वाक्य है । इस देश को चलानेवाली प्रतिनिधि संस्थाओं के ध्येय वाक्य क्या है इसको भी विचार करना जरूरी है । बड़े प्रेरक है ये ध्येय वाक्य ।
देश का मंत्र है – ‘सत्यमेव जयते ।’ ये भारत सरकार का ध्येय वाक्य है और मुंडकोपनिषद से लिये गए इस वाक्य का अर्थ है कि आखिर में सत्य की जीत होती है, असत्य की नहीं । बस, यही सबसे बड़े लक्ष्य का करता है ।
संसद का पथ प्रदर्शक है – ‘धर्मचक्र प्रवर्तनाय ।’ अब ये वाक्य संसद भवन में अंकित है । इसका अर्थ है भारत के शासक धर्म के रास्ते पर आगे बढ़ें और उसका अनुसरण करें । भगवान बुद्ध ने जो सारनाथ में पहला उपदेश दिया था उसे कहते हैं – ‘धर्मचक्र प्रवर्तन ।’ यह सूत्र वहीं से लिया गया है ।
CBSE का ध्येय वाक्य है – ‘असतो मा सद्गमय’ और यह लिया है बृहदारण्यक उपनिषद से । इसका अर्थ है कि हमें असत्य से सत्य की ओर ले चलो ।
अब UGC का ध्येय वाक्य है – ‘ज्ञान-विज्ञानं विमुक्तये ।’ यानी ज्ञान ही जड़ता को मिटाता है । स्वास्थ्य का लक्ष्य सिद्ध करने के लिए AIIMS अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान का ध्येय वाक्य है – ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ कि शरीर सभी कर्तव्यों को पूरा करने का साधन है और ये जो पंक्तियाँ है वो कालिदास की रचना कुमारसंभव महाकाव्य से ली गई है ।
न्याय की शक्ति को समझने के लिए सुप्रीमकोर्ट का ध्येय वाक्य है – ‘यतो धर्मस्ततो जयः’ – कि जहाँ धर्म है वहीं जीत है और ये वाक्य महाभारत से लिया गया है । मूल श्लोक है – ‘यतः कृष्णस्ततो धर्मो यतो धर्मस्ततो जयः’ कि विजय हमेशा धर्म के पक्ष में होता है । ज्ञान की प्रार्थना करते हुए केन्द्रीय विद्यालय का ध्येय वाक्य है – ‘तत् त्वं पूषन् अपावृणु’ ये ईशावस्योपनिषद के मंत्र से ये सूत्र लिया गया है । इसका अर्थ है कि सत्य का मुख सुनहरे ढक्कन से ढका है । हम सत्य को जान सके और देख सके इसीलिए हे सूर्यदेव ! इस ढक्कन को हटा दीजिए ।
भारत की रिसर्च एंड एनालिसिस विंग का ध्येय वाक्य है – ‘धर्मो रक्षति रक्षितः ।’ इसका अर्थ है तुम धर्म की रक्षा करो, धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा । अब ये वाक्य मनुस्मृति से लिया है ।
भारत की वायु सेना है, उसका सूत्र है – ‘नभस्पर्शं दीप्तम्’। ये वाक्य भगवद्गीता से लिया है । कृष्ण-अर्जुन के संवाद का हिस्सा है । इसका भावार्थ है गर्व के साथ आकाश को छुना । इस श्लोक में विष्णु के गुणों के बारे में बताया है कि उनका रूप चमकदार है, कई रंगों वाला है और प्रकाश में नेत्रों*** वाला है ।
ये भारत की नौसेना है उसका ध्येय वाक्य है – ‘शं नो वरुणः ।’ ये तैत्तिरीय उपनिषद की प्रार्थना से लिया गया है । इसमें जल के देवता वरुण की प्रार्थना है और इसका अर्थ है जल देवता वरुण हमारे लिए मंगलकारी रहे और शांति प्रदान करें ।
जो भारत की थल सेना है उसका ध्येय वाक्य है – ‘सर्विस बिफोर सेल्फ’ मतलब हर सैनिक में स्वयं से पहले सेवा करने का भाव रहता है । हमारे देश की सुरक्षा, सम्मान और कल्याण सबसे पहले आते हैं इसलिए पहले देश, बाद में हम ।
सीमा सुरक्षा बल बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (BSF) का वाक्य है – ‘जीवन पर्यन्त कर्तव्य ।’ इसका अर्थ है कर्तव्य पथ पर हमेशा बढ़ते रहो और इसका घोष है भारत माता की जय…!
भारतीय जो तटरक्षक हैं उनका मंत्र है – ‘वयम् रक्षाम:’ कि हम रक्षा करते हैं । तो भारत के ये गणतंत्र की ताकत के पीछे हमारे उपनिषद, महाभारत, गीता का जो वीज़न है । जो* दृष्टिकोण है वो इसमें समाहित है ।
सुप्रीम कोर्ट में भी ध्येय वाक्य ‘यतो धर्मस्ततो जय: ।’ जहाँ धर्म है वहाँ विजय है कि जहाँ धर्म है वहाँ विजय होनी चाहिए और वैसा दृष्टिकोण अपनाना चाहिए । तो गण की ताकत ये सूत्र और ये विचार जो लोकतंत्र की रक्षा करनेवाले है । देश को चलानेवाली प्रतिनिधि संस्थाओं के उस लक्ष्य को हमें दिखाते है और हमारे इरादों को मजबूत करते है, हमारे विजन को क्लियर करते है । इस गणतंत्र दिवस पर इसका भी हमें एक बार मनन करना चाहिए ।
अब एक बात और है – ज्ञान, जानकारी और समझ – ये तीनों अगर ठीक से मिल जाएं तो सीखना प्रारंभ होगा और यदि सीखना न हुआ तो ये तीनों बातें जीवन को सूक्ष्म बाहर से ही समृद्ध और सुविधाजनक बना सकती है । ये भीतर का रूपांतरण करते हैं तो वो सीखने से ही संभव होता है । उसका अच्छा उदाहरण क्या है कि हनुमानजी जो सदैव सीखने को तैयार रहते है । लंका जाते समय उन्होंने एक बात सीख ली कि वहाँ सब बड़े-बड़े अपराधी मिलेंगे तो सबसे बड़ा दुराचारी तो रावण ही है । तो विचार किया कि छोटे अपराधियों पर हाथ नहीं डालूँगा, मारूँगा । सीधे रावण को मारूंगा ।
अब आज की जो राज्य व्यवस्था है उसमें हम क्या देखते है कि छोटे-मोटे दोषियों को और भ्रष्टाचारियों को आसानी से पकड़ लिया जाता है और जो बड़े-बड़े अपराधी हैं वो खुले घूमते है लेकिन हनुमानजी की स्टाइल कुछ अलग है । उनका काम सीताजी को सूचना देने के बाद पूरा हो गया लेकिन उनको तो सबसे बड़े अपराधी तक पहुँचना था इसलिए अशोक वाटिका उजाड़ी, रावण के बेटे को मारा और फिर बांधकर उस तक पहुँचे है । ध्यान रखिए कि वे ले जाए नहीं, बल्कि स्वेच्छा से गए थे क्योंकि बताना चाहते थे कि यदि बड़ों पर हाथ नहीं डालेंगे तो जीवनभर छोटे अपराधियों से खेलते रहना पड़ेगा । बड़े और अधिक पनपते रहेंगे, इसलिए रावण के सामने उसकी लंका जलाई और हम सबको ये संदेश दिया कि सत्य की विजय बड़ी करना हो तो शिकंजा बड़े अपराधियों पर कसना पड़ेगा और जब हम ऐसा करेंगे तभी यही सच्चा गणतंत्र होगा तो आज गणतंत्र की यह सीख और हनुमानजी के इस कार्य से हमें यह प्रेरणा मिलती है हमें उस विजन तक अगर पहुँचना चाहते हैं तो हमें उस प्रकार से प्रयास हमारे तेज करने पड़ेंगे । वन्देमातरम् ! जय हिन्द ! जय भारत !

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