साधना की प्रतिमूर्ति तपोवनी माँ सुभद्रा माताजी एक उच्च कोटि की तपस्विनी थी, जिनकी साधना और सेवा एक मिसाल के रूप में सदियों तक आध्यात्मिक पथ के पथिकों को प्रेरणा देती रहेगी ।
मैं आप सभी से ये अनुरोध करता हूँ कि सुभद्रा माताजी की जीवनी “समुद्र से हिमशिखर तक” – जो कि पतंजलि योगपीठ के दिव्य प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुई है, जिसमें उनके पूर्णतः परमेश्वर आश्रित साधनामय जीवन का विस्तार से उल्लेख है, उसे पढ़कर सद्प्रेरणा लें । दो-तीन बार माताजी गंगोत्री से भी ऊपर तपोवन में अकेले साधना करते हुए बहुत गंभीर रूप से बीमार हुई थी… एक बार तो उनके हृदय की धड़कन भी रुक गई थी । मृत जैसा होने पर भी कैसे ईश्वर ने उन्हें शीघ्र स्वस्थ कर दिया, कैसे उनके शरीर में होने वाला अत्यंत घातक और पीड़ाजनक फोड़ा बिना उपचार या ऑपरेशन के अपने आप ठीक हो गया… और 90 वर्ष से भी ज्यादा आयु होने पर भी उनके केश काले ही रहे, सेवा करने का हौंसला बुलंद ही रहा… यह सब जानकर, पढ़कर जो लोग ईश्वर को नहीं मानते वो भी ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करने पर बाध्य हो ही जायेंगे, ऐसा मेरा मानना है ।
तपोवनी सुभद्रा माताजी 4 फरवरी, 2021 दोपहर के समय ब्रह्मलीन हो गईं… उनको हमारा शत-शत नमन… भावभीनी श्रद्धांजलि…!!