“नारायण साँई का संदेश”
(1 अगस्त, 2019)

‘नारायण’ ने फिर से लेखनी उठाई है… आपके लिए ! जेल की सलाखों के पीछे से आपके लिए लिखते रहने की आदत पड़ गई है – कल से श्रावण मास का शुभारंभ हो रहा है | इस बार तो मेघों ने पूरे मन से बरसाया है पानी… लबालब भर गए हैं तालाब… और नदियाँ उफान पर है । पूरे देश में मानसून ने अच्छे से दस्तक दी है और पानी… पानी… पानी… हरियाली छाई है !
आज कला के बारे में, कलाकार के विषय से इस पात्र की शुरुआत करता हूँ ।
कला जीवन में ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’ बनकर कलाकार के अंतर मन को आल्हादित, आनंदित करती है व इसके साथ ही समाज को भी सात्विक आनंद देती है । कला, समाज की जड़ हो रही संवेदनाओं को फिर से चेतन बनाने का कार्य करती है । इसलिए ही कहा गया है कि ‘साहित्य संगीत कला विहीनः साक्षात् पशु: पुच्छविषाविहीनः ।’ कला चाहे चित्र के रूप में उभरे, संगीत, नाटक या साहित्य के रूप में उभरे लेकिन कला द्वारा ही संस्कृति एवं समाज – जीवन का पिंड उन्नत एवं समतुलित बन सकता है ।
क्या आप कभी कोई ऐसे कलाकार से मिले हो कि जिसने कला को हृदय से चाहा हो और जीवन के अंतिम तबके तक उसकी करवट में समय व जीवन बिताने की तीव्रतम इच्छा रखी हो ?
एक सभा में जब प्रज्ञा वशी ने ये सवाल किया कि प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई पर मैंने एक स्क्रीप्ट लिखी है उसे कौन अभिनित करेगा ? तो तुरंत सभा में से एक 87 वर्ष के युवा ने उनसे कहा मैं… मैं अभिनित करूँगा आप मुझे वो स्क्रीप्ट दो । ये उत्तर देनेवाले थे सुरत के कर्मठ, उर्जावान तरबतर अभिनय के ओजस्वी पुरुष श्री वसंतभाई मगनलाल घासवाला । पुरानी रंगभूमि के आयोजन में भी उनका अपूर्व योगदान रहा ऐसे पिता और बड़े भाई की अंगुली पकड़कर बचपन में ही केपिटल और मोहन टोकिझ में वे नाटक देखने जाते थे । उन्होंने नटघर, कलाक्षेत्र, राष्ट्रीय कला केन्द्र, मल्हार, कला निकेतन जैसी संस्थाओं के साथ कार्य किया व कला को प्रस्तुत किया ।
सच्चा कलाकार हृदय से कला को चाहता है और जीवन के अंतिम समय तक कला के प्रति समर्पित भाव से लगा रहता है । कला से ही जीवन में सात्विक आनंद पनपता है । हम सबके भीतर भी कोई न कोई कला अवश्य छुपी है । हम अपनी कला को उभारें… विकसित करें व ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’ की राह पर आगे बढ़ें ! कला का संवर्द्धन करें | एक कलाकार तो पत्थर में से फुट पड़ती कोंपल की नाइ विकट व विषम परिस्थितियों के बीच भी कला को विकसित करने का प्रयास करता है । आपके भीतर भी अगर कोई कला कौशल्य है तो उसे विकसित होने दीजिए । प्रयास करिए… भीतर छुपी कला को दबाइये मत… उसे खिलने दीजिए… !
उठाओगे कदम तो मंजिल निकट होगी,
जागोगे जल्दी सुबह तो मन प्रफुल्लित होगा
मांगोगे दिल से तो हथेली में चाँद होगा
बोलोगे नम्रता से तो वाणी में अमृत होगा
देखोगे प्रीतियुक्त नजरों से तो अच्छी तस्वीर सामने होगी
गाओगे मधुर गीत तो कोयल सामने होगी
कदम बढ़ाओगे आगे संभलकर तो जीवन स्वर्ग-सा होगा
दोगे गर भाव से तो आपके प्रति भाव होगा
सुनोगे ध्यान से तो प्रत्येक शब्द मधुर होगा
सीखोगे संवेदना से तो कौशल्य विकसित होगा
चाहोगे दिल से तो सामने से भी चाहत होगी
सो जाओगे नींद से ज्यादा तो सामने स्मशान होगा
बुलाओगे प्रेम से किसी को तो सामने भी स्नेह होगा
करोगे प्रार्थना स्वार्थ बिन, तो सामने ईश्वर होगा
चलाते रहोगे कलम तो सामने गजल होगी !

एक जोक्स है लेकिन अर्थपूर्ण है कई बार हँसने हँसानेवाले जोक्स भी कुछ अर्थ समझा जाते हैं । एक जोक्स पढ़ा था मैंने – कि ‘शादी क्या है ? जब दिशा उल्टी हो जाती है तो उसे शादी कहते हैं । शादी को उल्टा कर लो तो दिशा होता है । जीवन की दिशा को सही रख पाना चुनौती है |
रचना समंदर ने एक चिट्ठी की बात की है दो लाइन की दिल के नाम लिखी चिट्ठी बहुत मजेदार है और समझने जैसी, याद रखने जैसी, जीवन में उतारने जैसी है ।

(संदर्भ – मधुरिमा, दैनिक भास्कर – 3, 7/8/19)

दस्तक – रचना समंदर

दिल से कहा है, ध्यान दे !

एक बड़ी ही मजेदार उक्ति पढ़ी, जो एक छोटे-से खत की शक्ल में थी । खत लिखा गया है अपने ही दिल को ।
प्रिय दिल,
तुमको हर मामले में नहीं उलझना है । याद रखो कि तुम्हारा काम केवल खून को पम्प करना है ।
दो वाक्यों की इस चिट्ठी में कितनी सारी हिदायतें छुपी हैं ।
एक तो अपने दिल के जरिए खुद को कि हर मामले में भावुक होने की जरुरत नहीं है । यह मुश्किल सबके सामने पेश आती है । अकारण ही ऐसे मुद्दों पर बोलने या शामिल हो जाते है, जिनसे कोई ताल्लुक न होता है, न हो सकता है । ऐसे में बाद में दुःख हो, तो क्या हैरानी की बात होगी । दूसरी बात जो इस खत से जाहिर होती है, वो है ऐसी घटनाओं का बहुधा होना, जहाँ मन को फिजूल में ही शामिल कर लिया जाता है । कई परिस्थितियों में खुद को चोट पहुँचने की सम्भावनाएं अक्सर दिखाई नहीं देतीं और इंसान उसमें अनजाने शामिल हो जाता है । इसलिए दिल को सावधान कर दिया गया है कि जरा दूर रहें । यह भी कहा जाता है कि अक्सर दिमाग हार मान जाता है, क्योंकि उसके लिए हर बात को तर्कों से तौलना जरूरी होता है, जबकि अगर दिल को बता दिया जाए कि कहाँ बचकर रहना है, तो उसकी मजबूती ज्यादा मददगार साबित होती है ।
तर्क जहाँ हारते हैं, वहाँ भावनाएँ जीतती रही हैं ।
आगे कोई राह नहीं है, यह बात दिमाग स्वीकार करके रुक सकता है, लेकिन राह बनाई जा सकती है, इसका जज्बा दिल के पास होता है । लेकिन भावनाओं को तर्क नहीं करना पड़ता, या कहें कि उन पर तर्क का असर नहीं होता, इसलिए दिल किसी और के भंवर में डूबने पर आए, तो कौन बचाए उसे । तभी इस चिट्ठी की ताकीद समझ में आती है । सारी दुनिया में महशूर है, हर जुबान में कहा गया है, अपने दिल की सुनो, फॉलो योर हार्ट । तो ऐसे में दिल को भी तो बताना होगा कि हम पीछे-पीछे आ रहे हैं, तो अपनी दिशा का ख्याल रखे | दो वाक्य की यह सावधानी अगर हम याद रख सकें, तो बहुत-सी राहों से धुंध छंट सकती है ।

मैं, ज्ञानपीठ के नवलेखन पुरस्कार, हंस कथा सम्मान आदि से जिन्हें सम्मानित किया गया है ऐसे उपन्यासकार, कहानीकार, गजल लेखक और संपादक पंकज सुबीर की नई छपी पुस्तक ‘जिन्हें जुर्म-ए-इश्क पे नाज था’ के बारे में पढ़ रहा था, नए लेखकों के विचार भी आज के समय सामयिक हैं ।
यहाँ जेल पर मेरी मुलाकात को आनेवाले मुलाकातियों की संख्या बढ़ती जा रही है । लोग कहते हैं मुझसे मिलने पर उनको उर्जा मिलती है, आनंद में वृद्धि होती है । रक्षाबंधन पर भी कई घंटों प्रतिक्षा करने के बाद मुझसे मिलने का अवसर मिल पाया, कईयों ने राखी बांधी, कई रह गईं और व्यथित हुई कि इतना दूर आने व इतना इंतजार करने के बावजूद राखी नहीं बांध पाई ! खैर, कई बार सुव्यवस्था को बनाए रखने के लिए संवेदनाओं से समझौता करना पड़ता है और यही हुआ !
और अब तो, मुझे लिखने की आदत पड़ गई है । लिखना, अभिव्यक्ति का एक अच्छा माध्यम है । लेखन को किसी वंश या डिग्री से जोड़कर नहीं देखना चाहिये । पश्चिम बंगाल के मनोरंजन व्यापारी थे जो जेल में जाकर साक्षर हुए । उन्होंने एक पुस्तक लिखी जिसकी चर्चा देश के कई साहित्य समारोहों में हुई । एक गहन मस्तिष्क, साक्षरता पर निर्भर नहीं होता । वह शब्दों को जोड़कर मन की स्पष्टता प्रकट करता है । इसकी झलक पुरातन मौखिक आख्यानों, पारंपरिक नाटकों और लोकनृत्यों में देखने को मिलती है । जो लिखते है वे स्वयं को अभिव्यक्ति ठीक से कर सकते हैं ।

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