साँईं संदेश…

किसी ने ठीक ही कहा है कि –

  ” बंद पिंजरों में परिंदों को देखा है कभी ?

     ऐसे सिसकते हैं मोहब्बत के मुजरिम अक्सर । “

बहुत सच लगती है ये बात । गहराई से सोचने पर । हमने अब समय के साथ ये सीखा है और सीख रहे हैं कि दूसरों के अस्तित्व को सम्मान कैसे दिया जाए ! जो हमारे प्रति तनिक भी सद्भाव – सम्मान नहीं रखते, ऐसों के प्रति भी हमारा आचरण – बर्ताव सद्भावनायुक्त कैसे बनाये रख सकते हैं इस बात को मैं आजमा रहा हूँ, प्रयोग कर रहा हूँ । मैंने प्रयोग करना महात्मा गाँधी से सीखा है । मैं अपने जीवन को प्रयोग करने की शाला मानने लगा हूँ । मैं इन दिनों एक नया प्रयोग कर रहा हूँ – बचपन की तरह फिर से जीकर देख रहा हूँ और मुझे इस प्रकार दिन बिताने में बहुत अच्छा लगता है । मैं चाहता हूँ कि यह प्रयोग तुम्हें भी करके देखना चाहिये । अरे, पूरा दिन नहीं तो दिन में सिर्फ एक बार बचपन की तरह खुलकर मस्ती करके देखो । कौन क्या बोल रहा है या सोच रहा है इसकी तनिक भी परवाह किये बिना बाल मानस, बाल अठखेलियों, बाल स्वभाव को स्वयं में प्रकट करके देखिये । फिर से बचपन में आ जाइये । अनजाने में जिस बचपन का आनंद ले ही नहीं पाये थे, अब जानकर उस बचपन को पुनः जाग्रत कीजिये । बचपन को निखरने दीजिये । खुलकर बचपन को आप किसी भी उम्र में जाग्रत कर सकते हैं । बचपन की मस्त निर्दोष मुस्कुराहट को, अपने होंठो पर अठखेलियाँ करने दीजिए…

यह प्रयोग ज्यों-ज्यों मैंने किया मुझे फायदा हुआ । मेरा तनाव, मेरी चिंता, मेरा शोक, मेरी उदासी, मेरी गमगीनी, मेरी फिक्र, मेरा अवसाद, मेरा अकेलापन, मेरी पीड़ा – कहाँ गुम हो गई, खो गई, मुझे पता ही नहीं चला । क्या कहूँ ये प्रयोग इतना सरल है और कितना सुखदाई है कि ज्यों-ज्यों ये प्रयोग करता जा रहा हूँ मेरा उत्साह, मेरी खुशी बढ़ती ही जा रही है । ये प्रयोग करना केवल मेरे लिए ही खुशी का कारण नहीं बल्कि दूसरों के लिए भी आंनद-प्रमोद-विनोद का कारण बन रहा है ।

सभी लोग जो मुझे जानते हैं या नहीं जानते – मेरे बालवत् स्वभाव से मुझसे मिलने-घुलने लगते है और निःसंकोच मस्ती कर सकते हैं । मेरे इस प्रयोग ने सभी के साथ मुझे आत्मीय भाव से जोड़ दिया है और इसका आंनद ही कुछ निराला है । आप भी इस प्रयोग को करें और अपने जीवन में आनंद की वृद्धि करें ।

इन दिनों लाजपोर सूरत जेल में मेरी ही बेरेक में श्याम सुन्दर पांडे नामक ब्राह्मण साथ में रहते है । मेरे साथ, जेल में वे भी चलते हैं । और उन्होंने जब मेरा यह प्रयोग देखा तो कहा कि इस प्रयोग से आपकी प्रसन्नता तो बढ़ती ही हैं साथ ही साथ जिनसे आप मिलते हैं उनकी प्रसन्नता भी बढ़ती है । मेरी बेरेक में 5-10 अन्य लोग भी है और उनके चेहरे पर जेलवास का दुःख, पीड़ा नहीं है जबकि अन्य यार्डो, बेरेकों में रहनेवाले कैदियों के चेहरे पर उनकी पीड़ा, दुःख की रेखाएँ स्पष्ट देखी जा सकती हैं । यह बालवत् आचरण, बालवत् स्वभाव को अगर हम उम्र की परवाह किये बिना जाग्रत रख पाएं तो मस्ती-खुशी हर हाल में हमें मिल सकती है ये बात पक्की है ।

– नारायण साँई ‘ओहम्मो’

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