किसी न किसी नाम से, किसी न किसी रूप से है ये । 400 साल पहले जो थी उसमें इतने लोग नहीं मरे होंगे । 100 साल पहले जो थी उसमें उतने नहीं मरे होंगे जितने इस वक्त मरे है और आनेवाले 100 साल याने 2100 के अंदर 2120 वें दिन संभवतः पिछले 400-500 वर्षों का हम इतिहास देखें तो ये संभावना लग रही है कि 100 साल के बाद भी संभवतः कोई नए नाम से, नए रूप से अलग लक्षणों से ऐसी महामारी फैलेगी । खैर, जीवन क्षणभंगुर है । पानी तेरा बुलबुला, अस मानुस की जात । मृत्यु का कोई ठिकाना नहीं है ।
अनित्यानि शरीराणि वैभवो नैव शाश्वत: ।
नित्यं सन्निहितो मृत्यु: किं कर्तव्य:  ?? कर्तव्यो धर्मसंग्रह: ।

कि धर्म का संग्रह करें । बापूजी ने सत्संगों में कई बार कहा । एक दुकानदार था । सुबह 9 बजे दुकान खुलती है, शाम को 7-8-9 बजे । उसे मान लो कि 1000 से 1500 की आमदनी है । मान लो 1000 से 1500 की आमदनी शाम को 5 बजे तक होती है । तो क्या वो दुकान बंद करके चला जाएगा ? नहीं, वो ये सोचेगा कि मैं शाम को 7-8-9 बजे तक 10 बजे तक और खुली रखूँ, क्या पता 2000 हो जाए, ढाई हजार हो जाए । ठीक उसी तरह या उससे भी ज्यादा हमें ये ध्यान रखना है कि हमारे जीवन में धर्म की कमाई हो, अध्यात्म की कमाई हो, भक्ति की कमाई, सेवा की कमाई और ज्यादा हो । एक है नश्वर लाभ, एक है शाश्वत लाभ । नश्वर लाभ रुपया, पैसा, जमीन-जायदाद नश्वर के लिए हमें मिलता है । लेकिन जो शाश्वत लाभ है ये हमें अंदर महसूस होता है । उसका अहसास होता है । उसकी अनुभूति होती है । और ये जो अहसास, दिव्य अनुभूति है उसको शब्दों में पूरा पूर्ण व्यक्त नहीं कर सकते है । उसकी अनुभूति ऐसी है । तो ये जो धर्म लाभ, अध्यात्म लाभ, ये जो अहसास, ये जो एक्सपीरियंस है,वो अलौकिक है, वो शाश्वत है । और वो कमाई हम बढ़ाते रहे… बढ़ाते रहे… बढ़ाते रहे । हमारा इहलोक सुधरेगा, हमारा परलोक सुधरेगा । महामारी का मंत्र – ‘जयंती मंगला काली’ दुर्गासप्तशती में भी लिखा है । ऋषि प्रसाद आश्रम से प्रकाशित पत्रिका उसमें भी ये छपा है । कभी-कभी उसका भी जप और हवन हो । वातावरण में मंगल, आनंद और स्वास्थ्य का प्रभाव हो । और डरना नहीं है । सावधानी रखना है । डरना नहीं, सावधानी रखना है । डरना तो मृत्यु से भी नहीं है । डर, भय, शोक, दुःख हमारे पास तबतक नहीं टिकते जबतक हम न चाहें । अगर हमारे अंदर धर्म है, अध्यात्म है, गुरु का ज्ञान है, मुसीबतें, प्रतिकूलताएँ आने के बावजूद भी हम हिलेंगे नहीं, हम डरेंगे नहीं । हम भयभीत होंगे नहीं । हम उनका मुकाबला करेंगे । हमारा हौंसला बुलंद हो ।
‘न दैन्यं न पलायनं ।’
फिर हमारे अंदर न दीनता होगी, न पलायनता होगी । तो ये गीता का ज्ञान, ये श्रीकृष्ण का अमृत हमारे अंतर हृदय में भी घटित हो । ये बहुत जरूरी है ।
तो आप सभी बहुत-बहुत सौभाग्यशाली है की धर्म लाभ, अध्यात्म लाभ, ये सुअवसर कम आता है । भागादौड़ी के इस युग में, कोरोना के इस काल में भी सत्संग नसीब हो पा रहा है । अध्यात्म का अमृत पाने का अवसर मिल रहा है । तो आप सभी इसका लाभ लें । व्यक्तिगत रूप से, स्वाभाविक रूप से, जप करके, कीर्तन करके, अपने जीवन को उन्नत बनाएँ और कई लोग यहाँ जहाँ पर मेरा निवास है यहाँ दर्शनों के लिए लालायित रहते है और एक प्यास है उनकी कि 7 वर्षों के बाद हम यहाँ आए है । हमसे मिलना, हमसे बात करना, हमको देखना चाहते है । उनकी ये जो भावना है, उनकी संवेदना है, उनको समझते हुए मैंने ऐसा सोचा कि लगभग हर रोज, जब तक मैं बाहर हूँ तब तक प्रतिदिन शाम को आधा घंटा इसी तरह वर्चुअल सत्संग आप सबको प्राप्त हो जाए जिससे कोरोना की जो गाइडलाइन है उसका पालन करने में भी हम सबका सहयोग हो और अनावश्यक यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ आने का जो प्रतिकूलता पड़ती है । वो भी न हो । समय, शक्ति नष्ट भी न हो । और सबको अपने आश्रम के परिसर में सत्संग भवन में दर्शन-सत्संग का सौभाग्य हर रोज प्राप्त हो । तो हर रोज इस प्रकार या दो दिन में, तीन दिन में एक बार इस प्रकार 15-20 मिनट, आधा घंटा सत्संग लाभ अवसर प्राप्त हो । संभवतः ये हो जाएगा और सबको लाभ मिले ।
तो आप सबके हृदय में बैठे हुए गुरुदेव को मैं नमस्कार करता हूँ ! और आप सब लोग स्वस्थ रहे । ईश्वर, गुरु से प्रार्थना है कि बापूजी के जल्दी दर्शन हो और सकारात्मक समाचार हम सबको प्राप्त हो । उनका साकार श्रीविग्रह हमारे सामने शीघ्र से शीघ्र आए और हम लोग भगवान से, ईश्वर से ये प्रार्थना करते हुए अपने मन को भगवान में लगाए रखें । सेवा में, साधना में, धर्म में, अध्यात्म में हमारी रुचि जितनी है । समय के साथ हमारी रुचि बढ़ती जाए, अध्यात्म प्रगति बढ़ती जाए और जीवन की शाम होने से पहले जीवनदाता की मुलाकात होने में हम सभी सफल हो जाए । कामयाब हो जाए । इसी शुभकामना के साथ आप सबके मंगलमय आरोग्य की, भविष्य की मैं कामना करता हूँ और आपको फिर से धन्यवाद देता हूँ । नमस्कार…!

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