पाने से अधिक देने में आनंद है ।

वस्तुओं के लाभ से ही आनंद मिलता है उस उसूल के साथ जो लोग जीवन बिताते हैं, उन्हें एक हजार अच्छाईयों के बाद एकाध संकट आ जाए तो उनके लिए दुःखपूर्ण बन जाता है। मैं चाहता हूँ हम एक ऐसे आनंद को प्राप्त करें जो हर हाल में, हर अवस्था में – दुःख में-सुख में, संयोग में-वियोग में बरकरार रहे ! निरंतर प्रेममय रहना, हृदय को स्नेहसिक्त रखना आनंद की उच्चतर अवस्था है । रोनेवाले को दिलासा देना, उसे ढांढस बंधवाना आनंद है । कौन कहता है कि आनंद में रहने का अर्थ गाजे-बाजे और आतिशबाजी के साथ खुशी मनाते रहना है ? क्या सिर्फ नाचना, गाना, थिरकना ही आनंद का लक्षण है ? अरे, आनंद की वास्तविक स्थिति तो ये है कि हम विपत्तियों के बीच भी उनसे प्रभावित हुए बिना जब रह सकें, तब आनंद है । बेबस और लाचार भाई-बहनों की दिल से सेवा करें, तब आनंद है । दीन-दुःखियों को स्नेहपूर्वक सहारा दें तभी आनंद है । सिर्फ पाने में ही आनंद नहीं, देने में भी आनंद है ।
– नारायण साँईं

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