हमारा मन अपूर्ण संसार से हट गया, विनाशी जग से किसने क्या पाया ? हमने तो पूर्ण प्रेमास्पद को पाकर परम तृप्ति का अनुभव किया । नित्य नवीन रस को हर दिन पा रहे हैं, उन माधुर्याधिपति के रस को पी रहे हैं, हमारा मजा हम ही जाने !

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