साँईं की प्रतीक्षा में !!

नारायण साँईं….. कि जो कई वर्षों तक अँधेरे की दुनिया में रहे, कारावास में पाँच साल से भी अधिक समय जिन्होंने बेबुनियाद आरोपों के तहत राजनीतिक तेजोद्वेष के कारण व्यतीत किया । गेलेलियो एक महान वैज्ञानिक हो गए, जब उन्होंने कहा कि पृथ्वी घूमती है, सूर्य खड़ा है तो यह सच बोलने पर उन्हें जेल में डाल दिया ! सोक्रेटिस को भी युवाओं को भड़काने के आरोप लगाकर कारावास में डाला गया ! कई सदियों से जेलों का दुरुपयोग होता आ रहा है । अपनी सत्ता को बचाये और बनाये रखने के लिए सत्ता लोलुप, धन लोलुप, महत्वकांक्षी राजनीतिज्ञों द्वारा अक्सर अपनी सत्ता व पद का दुरुपयोग करना, अब ये मानों एक परंपरा-सी बन गई है । हमेशा परीक्षण सच का होता है । सोने को तपाया जाता है । सीता की अग्नि परीक्षा ली गई ! कई उदाहरण इतिहास में देखे जा सकते हैं ।
     तो, नारायण साँईं कि जो आसारामजी बापू के समर्थ सुपुत्र हैं और उनकी आध्यात्मिक व लौकिक विरासत के अघोषित उत्तराधिकारी के रूप में देखे जाते हैं । वे सूरत की सेंट्रल जेल में कि जहाँ घोर निराशा-हताशा, अवसाद और नकारात्मकता से युक्त वातावरण था, कैदियों के बीच, उनकी बंधनावस्था में सहभागी बनकर रहे और अपनी आध्यात्मिकता के बल पर कैदियों के मन में सकारात्मकता, आशा और जीवन उपयोगी सद्गुणों को विकसित करने का प्रयास, उन्हीं के बीच रहकर करते रहे ! मानों मानव सेवा का नया क्षेत्र जेल के रूप में उन्हें मिल गया कि जो सालों-सालों तक समाज की उपेक्षा, अवहेलना और तिरस्कार से भरा था ! कारावास कि जहाँ अपराधबोध से ग्रसित वे लोग हैं जो वर्षों-वर्षों तक निराशा में जीते हैं और जेल उनके लिए मानों जिन्दा लोगों का कब्रिस्तान है, घोर नकारात्मकता और उपेक्षा के बीच रहते हुए भी उब चुके, थक चुके कैदी, ये वो इंसान हैं जिनके भीतर इंसान होने का गौरव ले पाना भी मुश्किल-सा होता है । ऐसे मानवों के बीच जाकर लंबे समय तक उनके साथ रहते हुए उनके भीतर की दबी हुई, छुपी हुई सुषुप्त चेतना को जाग्रत करना ये काम कोई साधारण नहीं है ! अँधेरे की दुनिया में उजाला लाने का काम नारायण साँईं के जीवन का मानों एक शौक बन गया है ! कई कैदी उनकी कृपा, आशीर्वाद व सहायता से जेलमुक्त हुए हैं और अपराधमुक्त होकर श्रेष्ठ भारत के अच्छे नागरिक बन गये हैं । ये सिलसिला जारी है ! जेल में रहने के दौरान नारायण साँईं ने अपने मधुर व्यवहार, दिव्य प्रेम और करुणा के बल पर कैदियों के वाणी, बर्ताव और आचरण में सुधार लाने का प्रयत्न किया है !
     हर सप्ताह में एकाध-बार जेल के द्वार तक पहुँचकर मुलाकात खंड में नारायण साँईं के दर्शनों के लिए कई लोगों को देखा जा सकता है जो आत्मारामी, समता के धनी, प्रसन्नवदन महापुरुष की एक झलक पाने के लिए बेसब्री से प्रतिक्षा करते हैं । अक्सर यह मुलाकात बुधवार के दिन होती है । अनेकों लोगों ने यह अनुभव किया है कि शांति, प्रेम, करुणामूर्ति प्रकट ब्रह्मस्वरूप नारायण साँईं महाराज के दर्शन करने मात्र से घड़ी भर ही सही, दुनिया के सारे दुःख, कष्ट, पीड़ा, तनाव, अवसाद नदारद हो जाते हैं । अपार सुखानुभूति का अहसास होता है, उनकी नूरानी नजरों से निहाल होने के लिए, उनकी एक झलक पाने के लिए धर्म-संप्रदाय की कोई सीमाएँ अवरोधक नहीं हैं । हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, सिक्ख, जैन आदि कई धर्मों के लोगों से वे बहुत ही आत्मीयता से पानी में पानी के मिलने के समान उतनी ही सहजता से मिलते है और यही कारण है कि हर इंसान उनसे मिलने, उनको देखने के लिए बेताब-लालायित रहता है ।
     जेल के फौलादी सीखचों के पीछे कई अभागे कैदियों के जीवन में प्रसन्नता व सकारात्मकता का प्राण संचार करने के लिए मानों नारायण साँईं देवदूत बनकर बंदीवानों-सा जीवन जीते हुए उनके जीवन में हर हाल में मस्त रहने का समतायोग सिखाने के लिए कारावास के बंधनों में स्वयं को जकड़े हुए है यह कहना अतिश्योक्ति न होगी । नारायण साँईं कहते हैं :-
     “मैं लबालब प्रेम से परिपूर्ण हूँ और पूरी दुनिया को प्रेम का दान करता रहता हूँ । प्रेम के दान को ही मैं इस विश्व में महान दान समझता हूँ । आज मानव-मानव से नफरत करने लगा है ! प्रेम ही परमात्मा है । प्रेम के रूप में परमात्मा का अहसास होता है । मैं परमात्मा का आनंदरस प्रेम के रूप में प्रदान करता हूँ ।
     मेरा स्वरूप प्रेम है । मेरा अस्तित्व प्रेम है । मेरा खजाना प्रेम है । अनन्त प्रेममय होकर जीना ही मेरा स्वभाव है ।
     तुम मुझे मारोगे तो मैं फिर नए रूप, नए नाम के साथ वापस आऊँगा ! तुम मृत्यु दोगे, मैं पुनः जीवन प्राप्त करके दस्तक दूँगा ! तुम मेरी ताकत को नष्ट नहीं कर सकते । तुम मुझे जितना कमजोर बनाने का प्रयास करोगे, मैं उतना ही ताकतवर बनता जाऊँगा । मैं इस तरह से फिर से आऊँगा कि शायद तुम मुझे जल्दी पहचान ही न पाओ ! लेकिन फिर भी जो प्रेम की चाह में हैं, प्रेम की राह में हैं, वे अवश्य मुझे पहचान लेंगे ! वे दूर होंगे तो मेरे करीब आ जायेंगे । लंबी दूरी तय करके वे निकट आयेंगे । वे दूर होने पर मुझे याद करेंगे ! मेरी स्मृतियों में खोये रहेंगे । मेरे प्रेम में डूबे रहेंगे ! मेरे प्रेम को दूर होने के बावजूद वे पाते रहेंगे । मधुर प्रेम का अहसास करते रहेंगे ! वे मुझे देख नहीं पायेंगे फिर भी, मेरे से जुड़े रहेंगे ! मेरी स्मृति उन्हें सुखद अहसास देती रहेगी ! मेरी मधुर मुस्कान दुनिया के दर्दों से राहत देती रहेगी । मेरा प्रेम जीने का संबल देगा । मेरा प्रेम उत्साह देगा, उमंग देगा । जीवन के मार्ग में प्रसन्नता से आगे बढ़ने का हौंसला प्रदान करता रहेगा – मेरा प्रेम ।”*
     उनके इस अनोखे प्रेमयुक्त व्यक्तित्व से अनेकों लोग आकर्षित होते जा रहे हैं । देश और दुनिया में नारायण साँईं की जरूरत महसूस की जा रही है । उनको जेल से बाहर देखने के लिए लोग प्रार्थना करते हैं । कुछ लोग व्रत-उपवास करते हैं । भारत के कई स्थानों पर यज्ञ-हवन हुए । कईयों ने तीर्थ यात्रा की । कई लोग धर्म स्थानों में जाकर अपनी धार्मिक परंपराओं के अनुसार अपने-अपने तरीके से उपासना-प्रार्थना में रत हुए कि नारायण साँईं जेलमुक्त हों ।
     नारायण साँईं जेल मुक्ति आंदोलन, जगह-जगह शुरू हो गया और धरने, प्रदर्शन – मौन रैली, प्रार्थना सभाएँ आदि के द्वारा जनता की आवाज मुखर होने लगी । सरकार भी ये सोचने पर मजबूर हुई कि नारायण साँईं लंबे समय तक कारावास में रहे लेकिन उनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई ।
     आखिर सत्य की विजय, प्रेम की विजय, होने की आशा में भारत ही नहीं, विश्व उनकी प्रतिक्षा कर रहा है । नारायण साँईं को अपने बीच पाने के लिए दुनिया प्रतिक्षारत है ! बदलाव के सशक्त नायक के रूप में नारायण साँईं उभर रहे हैं । कारावास के दौरान उनके लिखे पत्र सोशयल मीडिया के जरिये देश-दुनिया में पहुँचकर एक शांत लेकिन ठोस वैचारिक क्रांति ला रहे हैं । उनके लघु या दीर्घ संदेशों में मानव समाज के बदलाव की वैचारिक ताकत देखी जा सकती है ।
     जिसे दिव्य प्रेम या प्लेटोनिक लव कहते है जैसा कि मीरा को कृष्ण के प्रति था । वैसा दुर्लभ, विलक्षण और अनोखा दिव्य प्रेम उनके और उनके चाहकों के बीच देखा जा सकता है । कई तरुणियाँ, युवतियाँ उनके प्रति जिस दिव्य प्रेम में सराबोर हो स्नेहसिक्त भाव से उनको देखती हैं, तब जेल के अधिकारी ही नहीं, कई बुद्धिजीवी भी दंग रह जाते हैं और कहते हैं कि यह सिर्फ शारीरिक आकर्षण मात्र नहीं है, यह भावनात्मक संबंध है । यह दिव्य प्रेम है जिसे सिर्फ चर्मचक्षुओं से नहीं समझा जा सकता । हाँ, मनुष्य कभी भगवान नहीं हो सकता लेकिन कुछ महान आत्माएं धरती पर मानवरूप में आती हैं जिन्हें देखकर ईश्वर का अस्तित्व प्रमाणित होता है । उन्हें देखकर न चाहते हुए भी ईश्वर की याद, उनके होने का प्रमाण महसूस होता है । उनको देखकर ‘भगवान !’ शब्द सहसा मुख से निकलता है तो आखिर ईश्वरीय अस्तित्व या ईश्वरीय भाव उनको देखकर मन में कैसे या क्यों उभरता है इस सवाल का जवाब नहीं मिलता । और एकाध-दो व्यक्तियों को यह अहसास होता तो अलग बात थी लेकिन यही अहसास जब कई लोगों को होता है तब यह सोचने पर मजबूर होने के अलावा और कोई विकल्प रह ही नहीं जाता कि ‘कुछ तो है ।’
     उनके हर हाल में, हर परिस्थिति में सम रहने और मुस्कुराने की आदत सबको लुभाती है, आकर्षित करती है । वे परेशानियों के बीच जिस तरह से प्रसन्नता को अभिव्यक्त करते हैं उसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग उमड़ते हैं । उद्धव कृष्ण ने एक कविता लिखी है :-
नारायण साँईं का जीवन ही मानों यह संदेश देता है ।
खुद की गलती मान ली, मुस्कुरा दो
बगल से गुजरे जब कोई, मुस्कुरा दो
पहचान का मिले कोई, मुस्कुरा दो
पश्चाताप हो तब भी, मुस्कुरा दो
क्षमादान देते वक्त, मुस्कुरा दो
आदर से देखो किसी को तब, मुस्कुरा दो
जीत पर, विजय पर आप, मुस्कुरा दो
असफलता आए तब भी, मुस्कुरा दो
झिक झिक हो किसी बात पर, मुस्कुरा दो
प्यार का अहसास करवाने को, मुस्कुरा दो
पीछे रह जाओ किसी से तब भी, मुस्कुरा दो
आडंबरों पर भी आप, मुस्कुरा दो
कुरीतियों पर भी, मुस्कुरा दो
किसी के झूठ पर गलत व्यवहार पर भी, मुस्कुरा दो
किसी की ईमानदारी पर और सच्चाई पर, मुस्कुरा दो
घर से निकलते वक्त आप, मुस्कुरा दो
घर में प्रवेश करते वक्त, मुस्कुरा दो
कभी वक्त के एक कांटे/टांके*** पर, मुस्कुरा दो
तो, कभी बेवक्त भी यूँ ही आप, मुस्कुरा दो
गर्व से भरकर कभी, मुस्कुरा दो
ग्लानि हो तब भी, मुस्कुरा दो
किसी के रूठने पर आप, मुस्कुरा दो
दिल के टूटने पर भी, मुस्कुरा दो
जिंदगी के थपेड़ों पर, मुस्कुरा दो
किसी के मनाने पर, मुस्कुरा दो
मासूमियत से भरकर बच्चों की तरह – मुस्कुरा दो
जिंदा हो तुम बतलाने के लिए – मुस्कुरा दो
गमों को दूर करने के लिए – मुस्कुरा दो !
बस, मुस्कुरा दो… हरदम मुस्कुरा दो…
हर हाल में बेहाल में बस मुस्कुरा दो…!!
Comment (1)
Ranjana Sharma
April 14, 2019 10:17 pm

Wah prabhu wah

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