2019 में नारायण साँई का दूसरा पत्र

दिल की बात, “मकर संक्रांति, उत्तरायण पर शुभ संदेश”

मैं, शब्द देह बनकर, आपके समक्ष पुनः उपस्थित हूँ । मैंने पिछला पत्र जो 1-1-2019 को लिखा था, आपने पढ़ लिया होगा, अब आज 11-1-2019 की ढलती साँझ के बाद पुनः कलम उठाई है… स्वामी विवेकानन्द के सूत्र का स्मरण करें –

‘उठो ! जागो ! जब तक लक्ष्य न प्राप्त हो, आगे बढ़ते रहो…’

उनके 156वीं जन्म जयंती की आपको बधाई देता हूँ । उनके जन्मदिवस के उपलक्ष्य में पहली बार विवेकानंद जीवन पर चित्र प्रदर्शनी और डॉक्युमेन्टरी फिल्म का प्रदर्शन हो रहा है, जानकर मुझे खुशी हुई । भारत भूमि की गौरव गाथा का गान हेमलता शास्त्री द्वारा तीन दिनों तक सूरत में अलथाण चौकड़ी के पास एसएमसी स्पोर्ट्स कॉमप्लेक्स मैदान में शुरू हुआ है – (10 से 12 जनवरी, 2019) – तीन दिनों के इस कार्यक्रम में, वडोदरा के रामकृष्ण मिशन के स्वामी इष्टमयानंद और आरएसएस के विभाग कार्यवाह नंदकिशोर शर्मा भी भाग ले रहे है – ये प्रयास सराहनीय है – मैं अनुसंशा करता हूँ कि इस आयोजन से लोगों में स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में पता चलेगा । हेमलता जी द्वारा भारत गौरव गाथा के संगीतमय गान से भारतवासी, हमारे भारत के वैभवशाली इतिहास को जानेंगे, समझेंगे और गौरवान्वित होगे । भारत के लोगों को दीनता, हीनता, आलस्य, प्रमाद, वैरता वैमनस्यता, अस्वच्छता व अपराधों से मुक्त करने के लिए श्रेष्ठ मार्ग-उचित दिशा दिखलाना अनिवार्य है । इस कार्यक्रम के आयोजक उत्तिष्ठ भारत के नीलकंठ बारोट को भी मैं इस आयोजन के लिए विशेष बधाई देता हूँ । मैं जिनसे हिमाचल प्रवास के दौरान मिला था वे सुधांशु महाराज भी इन दिनों सूरत में अनाथाश्रम (वेसू, सूरत) के बच्चों के लाभार्थ चार दिनों का भक्ति सत्संग कर रहे हैं, योगाचार्य महेश जी ने भी सात दिन का योगविज्ञान व योगचिकत्सा महाशिविर लगाया है जिसमें बदलती जीवनशैली में आहार-विहार के प्रति सावधानी बरतने के लिए लोगों को जाग्रत कर रहे हैं और अष्टांगयोग के महत्व के बारे में लोगों को समझा रहे हैं । साथ ही प्राणायाम आदि सीखाकर, व्यसनमुक्त समाज निर्माण का प्रयास कर रहे हैं – ये जानकर भी प्रसन्नता हुई ।

 

बुधवार मेरी मुलाकात में जो लोग आए थे जिनमें खासकर जामनगर के नटुभाई शास्त्रीजी भी पधारे थे, पांडेसरा में योगवेदांत सेवा समिति ने श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया है । शास्त्रीजी, वर्षों से मेरे परिचित हैं और बड़े विन्रम है तथा मेरे प्रति बहुत आदर प्रेमभाव रखते हैं । सूरत जेल पर वे तथा पांडेसरा समिति के आयोजक मुझसे मिलने आए – उनकी मुलाकात से मुझे अत्यंत आंनद हुआ ! भगवान के रसिकजनों से भेंट भी भगवान की कृपा के बिना नहीं होती – सो मैं स्वयं को गद्गद् महसूस कर रहा था ! धन्य हैं वे लोग जो हरिकथा का रसपान करके भगवद्चरणों में अपने मन, बुद्धि को अनुरक्त करते हैं । भगवान के प्रेमी भक्तजनों का दर्शन पाकर मेरी आँखें पावन हुई ! आप भागवत् कथा करवाना चाहते हैं तो उनसे संपर्क करें ।

इस 13 जनवरी, 2019 को दोपहर 2:30 बजे सूरत के पाल क्षेत्र में संजीव कुमार ओडिटोरियम में ड्रामा फेस्ट के बेनर तले एक विशिष्ट कार्यक्रम होने जा रहा है – “भगवान है कि नहीं ?” इस कार्यक्रम की प्रस्तुति पांडव सेना द्वारा दी जायेगी । यह पांडव सेना, इस्कोन की इकाई है जो पिछले दस सालों से युवावर्ग को धर्म और संस्कृति के विषय में जाग्रत करने का कार्य कर रही है । समाज का एक वर्ग कहता है कि भगवान नहीं हैं और दूसरा वर्ग कहता है कि भगवान है | बुद्धि से विचार करो कि घड़ी बनाने के लिए एक मानव की जरूरत पड़ती है तो संसार को बनाने के लिए भी तो कोई होगा ! जिसमें ‘गॉड इन ट्रायल, हेल एंड एक्सपोज’ की प्रस्तुति दी जायेगी जिससे नास्तिक लोग भी ईश्वर पर विश्वास, आस्था करने के लिए प्रेरित होंगे । मैं, पांडव सेना के नवीनदास को बधाई देता हूँ कि समाज को आस्तिक, आस्थावान, श्रद्धालु और ईश्वर के अस्तित्व के बारे में विश्वासु बनाने के लिए वे पहल कर रहे हैं – लोक जागृति के आयोजन कर रहे हैं । धर्म के प्रभाव को जीवन में, खासकर युवापीढ़ी में बढ़ाने हेतु उनका प्रयास सराहनीय है ।

हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत – प्राकृतिक कृषि का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं ये अच्छी बात हैं । प्राकृतिक कृषि से खेती की लागत कम होगी, जमीन की उर्वराशक्ति बढ़ेगी । रासायनिक खाद और कीटनाशकों के प्रयोग में कमी लाएंगे तो कम पानी से भी अधिक उत्पादन संभव है ।

देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर-गौमूत्र से जीवामृत, धन जीवामृत तथा जामन जीवामृत भी बनाया जाता है । इन दिनों हिमाचल प्रदेश सरकार किसानों को प्राकृतिक खाद बनाने और उसके उपयोग से कैसे खेती की जाए ? इसके प्रशिक्षण के लिए हर साल 35 करोड़ रूपये खर्च कर रही है ये अच्छी बात है – हमें जहरीली रासायनिक खेती से मुक्त होना होगा और प्रकृति की तरफ मुड़ना होगा । गौ-अर्क व गौ-वंश आधारित उत्पादों के उपयोग से कईयों को लाभ हुआ है, हो रहा है ।

अब मैं, आपको उड़ीसा के अविलाश महानंदा की बात करूंगा कि जिनकी माताजी को अचानक कैंसर हुआ और उनका निधन हुआ । माँ के निधन ने बेटे अविलाश को तोड़कर रख दिया – वे सोचते थे कि उनकी माँ ने कभी भी सिगरेट या शराब का व्यसन जिंदगी में नहीं किया तो कैंसर हुआ कैसे ? खोजबीन करने पर यह पता चला कि कैंसर का मुख्य संभावित कारण उनकी माँ के शरीर में लंबे समय से जमा हो रहे रसायन थे, जो खासतौर पर खाने के जरिये शरीर में पहुँचे थे । यह जानने के बाद अविलाश ने लोगों को रसायन और विषैले पदार्थो से मुक्त खाने-पीने की चीजें उपलब्ध कराने की खोज शुरू की । इस काम को करने की चाह ने आगे चलकर ‘सी एंड जी एग्रोवेंचर्स’ नामक कंपनी की नींव रखी । उनकी कंपनी सब्जियों की पैकिंग की प्रक्रिया तीन चरणों में पूरी करती है, जिससे उनमें मौजूद रसायन 60 से 90 प्रतिशत घट जाते हैं । इनके पैकेट के ऊपर बारकोड भी लगा होता है जिसे स्कैन करने पर यह जानकारी भी मिलती है कि इसमें पैक सब्जियाँ किस गाँव के किस खेत से आई है । भुवनेश्वर से शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट आसपास के शहरों तक अपना विस्तार करने के लिए तैयार है ।

जो लोग ये सोचते है कि हम पान-मसाला, गुटखा, तम्बाकू नहीं खाते, बीड़ी-सिगरेट नहीं पीते तो हमें कैंसर क्यों होगा ? वे ऊपर की कहानी पढ़कर समझ जायेंगे कि हम जो अन्न-सब्जियाँ-दूध आदि आहार लेते हैं उनमें रासायनिक खाद के तत्व होने से वे रसायन अन्न-सब्जियों के द्वारा शरीर में जाकर कैंसर पैदा कर सकते हैं । अतः हमें अब, रासायनिक खाद से मुक्त जैविक-देसी खाद से सब्जियाँ आदि अपने आसपास ही उगाने के लिए प्रयास करना होगा या ऑर्गेनिक खरीदना होगा । तब तक अविलाश की कंपनी , या उस जैसी किसी कंपनी के उत्पादों का उपयोग करना होगा वरना आश्रम में उगाई सब्जी मिले तो उसे प्राथमिकता देनी होगी ।

शांत, प्राकृतिक, प्रदुषण मुक्त स्थान पर रहना-घूमना भी इन दिनों मुश्किल होता जा रहा है । प्रदुषण के कारण वातावरण भी कितना जहरीला होता जा रहा है, कहने की जरूरत नहीं है । जो छुट्टियों के दौरान कहीं जाने का प्लान कर रहे हैं उनको एक शांत, प्रदुषणमुक्त डेस्टिनेशन बतला रहा हूँ वो है कर्णाटक में द्वारासमुद्रा के होयसाला की धरोहर… ट्रेवल एक्सपर्ट हिमांशु पाध्या ( padhya.himansu@gmail.com ) ने भी इसका जिक्र करते हुए लिखा है जिसे पढ़कर मुझे भी बैंगलोर के पास हालबीड के रास्ते पर द्वारा समुद्र, या हलेबीज जाने की इच्छा हो आई । भीड़-भाड़ और शोर-शराबे से मुक्त प्रकृति की गोद में बसा यह स्थान किनारे – 10 वीं से 14 वीं सदी के भारत के पुराने इतिहास के राजाओं की राजधानी की धरोहरों को संजोए हुए है ।

हिमांशु लिखते हैं कि …. छुट्टियों में यात्रा के आनंद के ….

(DB – page – 6, 11-1-2019 )

छुट्टियों में यात्रा के आनंद के साथ एक इच्छा सभी की होती है कि जहाँ आप जाओ वहाँ भीड़ और शोर-शराबा ना हो । प्रसिद्ध स्मारक या पर्यटन स्थलों पर छुट्टियों में भीड़ होती है कि अक्सर आप छुट्टी में ताजा होने से अधिक थक जाते हो । ऐसा न हो, इसलिए एक उपाय है स्थल का चयन । ऐसी ही एक जगह का नाम है हलेबीड अथवा बालबीड । दक्षिण कर्नाटक का शांत और सुंदर समुद्र किनारे बसा एक पुराना शहर है । जहाँ आज भी 800 वर्ष से पुराने मंदिर और धरोहरें मौजूद हैं । उत्तर भारत की आबादी एक समय आयों की थी और दक्षिण भारत में बसनेवाले लोग द्वविडीयन के रूप में पहचाने जाते हैं । पुराने भारत के इतिहास में कई वंश की कथाएं हैं । जिसमें एक होयसाला वंश है । जिसका राज 10वीं से 14वीं सदी तक कंनाडिगा या कर्नाटक में था । होयसाला राजाओं की राजधानी थी । हलेबीड या उस समय में द्वारासमुद्रा के रूप में पहचाना जाता था । उस जगह में अनेक भव्य मंदिर होयसाला राजाओं द्वारा बनाया गया था । जो आज भी उसी स्थिति में मौजूद हैं । पुराने समय के गवाह रूप इन मंदिरों पर जाने का रोमांच अनोखा है । अत्यंत शांत और साफ समुद्र किनारे स्थित इस जगह पर जाने से चूकना नहीं चाहिए । हेलीबिड की सबसे महत्वपूर्ण खूबी यह है कि पर्यटकों की भीड़ यहाँ पर बिल्कुल नहीं होती । शांत वातावरण में आप परिवार के साथ भव्य स्मारकों को देख सकते हैं । यहाँ उचित भाव की कई होटल हैं । जहाँ आप पूरे परिवार के साथ दो से तीन दिन आराम से रह सकते हैं । इसके अलावा परंपरागत रूप से केले के पत्ते में खाना तो है ही साथ ही साउथ इंडियन थाली जो सूरत में 1000 रुपए में मिलती है यहाँ 50 या 70 रुपए में मिल जाती है । यहाँ की थाली का स्वाद ही इतना अनोखा होता है कि आप कभी भूल भी नहीं सकते । सूरत से बंगलुरू की फ्लाइट ले सकते है । इसके बाद यहाँ से आपको वोल्वो या इसी तरह की अनेक बस मिलेगी । दक्षिण भारत के इन क्षेत्रों में सरकारी और प्राइवेट बसों की सेवाएं उत्तम स्तर की और काफी सस्ती हैं । बंगलुरू से हालबीड के रास्ते में आपको कई जगह देखने को मिलेगी । जिसमें मुख्य रूप से श्रवनावेलगोला या जहाँ गौमतेश्वर की भव्य मूर्ति है । इसके अलावा यहाँ से समीप में हसन और सागर जैसे कई छोटे शहर हैं । जहाँ आप हू-ब-हू साउथ इंडियन संस्कृति को देख आनंद उठा सकते हैं ।

अब एक और महत्वपूर्ण बात बताता हूँ कि इरफान पठान ने एक नई तकनीक विकसित की है- जिसे गाड़ी में लगाए जाने से गाड़ी से निकलने वाला धुँआ साफ होता है । आइआइटी की कार्यशाला में भारतीय वैज्ञानिक ने जो नई तकनीक पेश की है वो बहुत ही उपयोगी है । भारत सरकार को इसे बहुत जल्द से जल्द लोगो तक मुहैया कराना चाहिये जिससे जहरीली हवा के कारण देश के नागरिक रोगी न बनें, अकाल मौत ना मरें । राजस्थान पत्रिका पेज- 8 पर 11-1-2019 को छपी खबर मैं यह साझा करता हूँ । जो लोग शहरों में प्रदूषण से घिरे रहते हैं उनको कार्बन कटर मास्क जरुर लगानी चाहिए ।

और इस कार्बन कटर मास्क की कीमत भी केवल 50 या 60 रुपये मात्र है । ये मास्क लगाने से प्रदूषण आपकी फेफड़ों में नहीं जायेगा । आप लंबा जीयेंगे, अकाल मृत्यु से बचेंगे । जहर हमारे-आपके शरीर में ना प्रवेश करे वो उपाय तो हमें करना ही होगा ।

(अगर आप शहर में है तो मास्क जरूर लगाएं) (राजस्थान पत्रिका, पेज -8, 11/1/19)

आईआईटी की कार्यशाला में वैज्ञानिक ने पेश की नई तकनीक

साइलेंसर में लगा कार्बन कटर बाहर नहीं आने देगा धुँए का जहर

धुँए से जहरीले कार्बन कण अलग होकर बदल सकते हैं पाउडर में

लखनऊ. वाहनों से निकलनेवाले काले धुँए से वातावरण को प्रदूषित होने से रोका जा सकेगा । आईआईटी में आयोजित कार्यशाला में एक ऐसी मशीन के बारे में बताया गया है जो अगर वाहन के साइलेंसर पर लगा दी जाए तो वह धुँए में घुले हुए कार्बन कणों को अलग कर पाउडर में बदल देता है और यह पाउडर मशीन में ही रह जाता है । बाहर आता है केवल धुँआ, जो कि जहरीला नहीं होता और वातावरण को प्रदूषित भी नहीं करता । इससे पर्यावरण को प्रदूषित होने से रोका जा सकेगा ।

कार्यशाला के दौरान आईआईटी कानपुर के डॉ. संदीप पाटिल की देखरेख में छात्रों ने नैनो फाइबर टेक्नोलॉजी बेस्ड एक मास्क बनाया है, जो हवा में मिले जहरीले कणों को पूरी तरह रोक सकता है ।

चार लेयर में बने मास्क में नैनो फाइबर टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया गया है । मास्क स्वासा की कीमत 50 से 60 रुपये है । यह एक माह तक प्रभावी रहता है । इसमें लगे नैनो फाइबर हवा में मिले पीएम-2.5, पीएम-10 समेत नैनो पार्टिकल भी सोख लेता है । छोटे बैक्टीरिया भी इसे पार नहीं कर सकते ।

जल्द ऐसी तकनीक विकसित की जाएगी जिससे एक दिन पहले ही पता चल जाएगा कि किस क्षेत्र में किस समय अधिक प्रदूषण होगा । वहीं, इंडो-यूएस टेक्नोलॉजी के तहत लगाए जाने वाले सेंसर की टेस्टिंग जून से होगी ।

पहले चरण में आईआईटी कानपुर में 25 और आईआईटी बॉम्बे में 15 सेंसर लगाए जाएंगे । सब कुछ सही रहा तो दूसरे चरण में कानपुर और वाराणसी में 50 से 60 सेंसर लगाए जाएंगे । इससे प्रदूषण की विस्तृत रिपोर्ट मिल सकेगी और रोक भी लग सकेगी ।

तीन कारणों से धुँआ बनता जहरीला

इरफान ने बताया कि तीन कारणों से वाहनों का धुँआ वातावरण को प्रदूषित करता है । फ्यूल में मिलावट, खराब सड़क और ओवरलोड वाहन । नई गाड़ियों में भी ये तीन समस्याएं हैं तो प्रदूषण होना तय है, पर कार्बन कटर मशीन से धुँए से जहरीले कण अलग किए जा सकते हैं । इससे प्रदूषण में कमी आएगी ।

पुणे के इरफान का कमाल

आईआईटी में प्रदूषण पर आयोजित कार्यशाला के दौरान पुणे से आए पी ग्रीन टेक सॉल्यूशन कंपनी के फाउंडर इरफान पठान ने बताया कि धुँए से पीएम 2.5, पीएम 10 और जहरीले कार्बन कणों को अलग कर दिया जाए तो यह जानलेवा नहीं होगा । उन्होंने जो मशीन बनाई है, उसे गाड़ी में लगाने के बाद उससे निकलने वाला धुँआ साफ होता है । यह मशीन चार पहिया, आठ पहिया, 16 पहिया गाड़ियों के साइलेंसर के पास लगाई जाती है । इससे होकर निकलनेवाले धुँए में कार्बनिक कण नहीं होते हैं । ये कण धुँए से अलग होकर पाउडर के रूप में जमा होते हैं । इस पाउडर को बाद में निकाल कर स्याही और डाई के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है ।

नियंत्रण के लिए प्रशासन को मिलेगा वक्त

एक दिन पहले ही अगर पता चल जाएगा कि इस इलाके में कल ज्यादा प्रदूषण हो सकता है तो इसे रोकने के लिए योजना तैयार करने के लिए प्रशासन को समय मिल जाएगा । रोकथाम के लिए उस क्षेत्र के स्कूल को बंद कर सकते हैं या फिर वहाँ का ट्रैफिक रोकने के साथ अन्य उपाय किए जा सकते हैं ।

 

अब मैं, आपको आज के युग की यशोदा के बारे में बताना चाहूँगा जो राजस्थान के झुंझनु में बीडीके अस्पताल की महिला कर्मचारी है । मनीष मिश्रा ने खबर लिखी है – उस खबर ने मुझे रोमांचित कर दिया कि आज के कलियुग में भी ऐसी माताएं हैं जो दूसरे की कोख से पैदा हुए शिशुओं को भी अपनी कोख से पैदा हुए शिशु की तरह स्नेह करती हैं, पालती हैं, पोषती हैं, उन्हें जीवनदान देती हैं । कृष्ण को पालने वाली यशोदा की हम पूजा करते हैं, उन्हें सम्मान देते हैं तो हमें आज के समय में भी ‘यशोदा’ सा भाव रखनेवाली नारियों को भी सम्मान देना चाहिए । उनका आदर करना चाहिए और समाज में उनको श्रेष्ठ स्थान देना चाहिए । लावारिस बच्चों को पाल रही ‘यशोदाओं’ के बारे में जानिए. . .

(पत्रिका, पेज – 11, 11/1/19)

बीडीके अस्पताल की है महिला कर्मचारी

यशोदा बनकर पाल रही लावारिस बच्चे

झुंझनु. माँ-बाप ने तो किसी कारण से अपने नवजात को झाड़ी, मंदिर की सीढ़ियों पर तो कभी खेत में लावारिस हालत में पटक दिया । लेकिन राजकीय बीडीके अस्पताल में कार्यरत पाँच महिला नर्सिंगकर्मी रूपकला, प्रियंका, सुमन बुडानिया, अनिता जानू, नीलम थाकन व क्लीनर सुभीता ऐसे बच्चों के लिए यशोदा साबित हो रही है । सेवा के लिए किसी से प्रशंसा की उम्मीद नहीं रखती, बस मानवता व फर्ज समझकर लगातार दिन-रात ऐसे मासूमों की सार-संभाल में लगी हुई हैं । जब भी ऐसा कोई मासूम राजकीय बीडीके अस्पताल की एनआईसीयू में आता है तो यशोदा की तरह उसे आंचल में समेट लेती है ।

एंजल के जाने का गम

इन दिनों ये सभी घोडीवारा बालाजी मंदिर की सीढ़ियों पर मिली मासूम एंजल की देखरेख में जुटी हुई है । जब ये बच्ची मिली थी तो इसकी स्थिति भी और बच्चों जैसी खराब थी लेकिन लगातार देखरेख से अब उसके स्वास्थ्य में सुधार है । प्रशासन के निर्देश पर उसे किसी भी समय जयपुर भेजा जा सकता है ।

अभी तक दस का कर चुकी नामकरण जानकारी के मुताबिक सभी महिला नर्सिंगकर्मियों ने मिलकर अभी तक विभिन्न जगहों पर मिले बच्चों के नामकरण कर चुकी हैं । जिसमें अपराजित, अपराजिता, लक्ष्मी, एंजल आदि नाम दिए जा चुके हैं ।

हर बच्चे को देती है नाम

जानकारी के मुताबिक बीडीके एनआईसीयू में अब तक करीब एक दर्जन से अधिक लावारिस बच्चे आ चुके हैं । यशोदा बनी पाँचों महिला नर्सिंगकर्मी सलाह मशविरा कर उन्हें अपना अलग नाम भी देती है । छुट्टी के दिनों में जयपुर भी बच्चों से समय-समय पर मिलकर आती है । बच्चों के साथ यादें सहेजने के लिए फोटो एल्बम तैयार कर रखा है । वे कहती हैं, पैरों पर चलता देखकर चेहरे पर खुशी छा जाती है ।

तेजस्विनी, स्वयंसिद्धा, शक्तिरूपा नारी ही नारायणी है – ऐसी इतिहास में कई नारियाँ हो गई हैं जिनके प्रताप से, जिनके योगदान से, जिनके कृतित्व से समाज बेहतर बना है । आज भी नारियों में वो शक्ति है, उसे उभारने, पहचानने व उसकी कद्र करने की जरूरत है ।

(पत्रिका, पेज – 1, 9/1/19)

जज्बा : बुरा लगता है, जब लोग सरकारों का रोना रोते हैं : तस्लीम

एक कदम बढ़ाएं तो खूबसूरत बन जाएगी दुनिया

जरूरतमंदों की मदद करने की बजाय उन्हें सक्षम बनाने में यकीन

मुंबई. ग्यारह सौ बच्चों की पालनहार… कोई माँ कहता है तो कोई दीदी… सबकी चहेती और सबकी रोल मॉडल । जाति-धर्म से ऊपर नेकी का रास्ता… यतीमों को अपनेपन का अहसास दिलाना, पढ़ा-लिखाकर काबिल बनाना । खुद पर हुए अत्याचारों और दाने-दाने को मोहताज रहने के बाद भी अपना नेक-नियति का रास्ता नहीं छोड़ा । इन्हीं कष्टों को अपनी ताकत बनाया और बच्चों को काबिल बनाने की दुनिया में जुट गई । जी हाँ, यह सच है कहानी है भोपाल की बेटी तस्लीम खान (42) की । आज उनके बनाए स्कूल में 11 सौ बच्चे पढ़ते हैं, इनमें से 400 से फीस नहीं ली जाती । उनके कपड़े और किताबों का इंतजाम भी स्कूल करता है । सैकड़ों बेसहारा महिलाओं को घरों से निकालकर सक्षम बनाया । हजारों युवतियों-युवकों को रोजगार देने वाली तस्लीम ने कभी सोचा भी नहीं था कि वे कभी घर के बाहर भी कदम बढ़ा पाएंगी । पर आज वे हजारों लोगों के लिए रोल मॉडल हैं ।

उन दिनों को अब याद नहीं करती… बहुत दर्द होता है

वे उन दिनों को याद नहीं करना चाहती । विवाह के बाद लगातार घरेलू हिंसा का शिकार रहीं तस्लीम कहती हैं, ‘सच में वे बहुत बुरे दिन थे, पर मैं उनके बारे में बात करके किसी के सम्मान को चोट नहीं पहुँचाना चाहती । छोटी उम्र में विवाह और फिर बच्चों ने मुझे अहसास करा दिया था कि अब घर की चारदीवारी ही मेरी दुनिया है । पर एक दौर ऐसा आया कि घर चलाना भारी हो उठा । मैं अपने बच्चों को पालने के लिए बाहर निकली । मैं 12वीं तक पढ़ी थी । रोजी की तलाश में मैंने घरों में जाकर ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया । बहुत कुछ सहना पड़ा उन दिनों ।’

जब मेहनत लाई रंग

तस्लीम ने दिन-रात मेहनत कर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया । देखते-ही-देखते उनके पढ़ाए गए बच्चे बहुत अच्छा करने लगे । पेट भरा तो दूसरों के दुःख ने उनके मन को करुणा से भर दिया ।

उन्होंने गरीबी में पल रहे बच्चों को फ्री में ट्यूशन : पढ़ाना शुरू किया । तस्लीम ने खुद पढ़ाई करनी शुरू की और साथ ही विधवा और तलाकशुदा महिलाओं को भी पढ़ाने लगी । तभी कुछ लोग सामने आए और उन्होंने तस्लीम को स्कूल खोलने की सलाह दी । घर का माहौल भी बहुत खराब था, ऐसे में स्कूल खोलने की सोचना भी… खैर, जब दर्द बहुत बढ़ गया, तो तस्लीम ने पति से अलगाव कर लिया । दो किराए के कमरों में शुरू हुआ स्कूल । दिन में स्कूल चलता और रात में बेंच बगल करके तस्लीम अपने दोनों बच्चों के साथ जमीन पर गद्दा डालकर सो जाती ।

हर किसी में हैं गुण : वे कहती हैं हर किसी में कुछ न कुछ तो है जिससे वे अपना जीवन बेहतर तरह से जी सकें । जिन महिलाओं को किसी ने कहा कि तुम कुछ नहीं कर सकती, तस्लीम ने उनके हुनर को भी जांच परख कर बाहर निकाला । उनकी पढ़ाई सैकड़ों युवतियां विविध स्कूलों में पढ़ा रही हैं । उन्होंने बहुत से बच्चों को पढ़ाया और उनके करियर को दिशा देने में मदद की । जो सबसे कमजोर महिलाएं लग रही थी उन्हें उन्होंने खाना बनाने की ट्रेनिंग दी । आज सैकड़ों महिलाएं कुक के रूप में कार्य करके अपना जीवनयापन कर रही हैं ।

 

और अब मैं आपको ब्रिटेन में हुए एक शोध (रिसर्च) के बारे में बताना चाहूँगा कि ‘आतंकी क्यों कर क्यों कर बनता है इंसान ?’ इस विषय पर सैकड़ों कट्टरपंथियों पर, उनके दिमाग के स्कैन से जो खुलासे हुए हैं वो समझने जैसे है । निष्कर्ष ये है कि सामाजिक बहिष्कार जब होने लगता है तब आतंक पैदा होता है ये सूत्र समझने जैसा है । अतः हमें स्नेह-प्रेम-करुणा को बढ़ाना होगा । तिरस्कार, उपेक्षा, बहिष्कार मिटाना होगा तभी आतंकवाद पर काबू आ सकेगा । हमें प्रेमवाद फैलाना होगा । इस वैश्विक समस्या का समाधान ‘प्रेम’ को अपनाने, फैलाने में छुपा है ।

(पत्रिका, पेज – 1, 11/1/19)

ब्रिटेन : सैकड़ों कट्टरपंथियों पर शोध, दिमाग के स्कैन से हुआ खुलासा

न धर्म न गरीबी, सामाजिक बहिष्कार से बन रहे हैं आतंकी

लंदन. आतंकवाद, कट्टरवादिता और नक्सलवाद भारत समेत कई देशों की सबसे बड़ी चिंता है । इन समस्याओं को लेकर दुनियाभर में आम राय है कि ऐसे लोग गरीबी और धार्मिक रूढ़ियों के कारण हिंसा की राह अपनाते हैं । हालांकि, वैज्ञानिकों ने एक ताजा शोध में इस दावे को खारिज कर दिया है । ब्रिटेन में ऐसे लोगों के दिमाग के स्कैन में खुलासा हुआ है कि युवा धर्म या गरीबी की वजह से नहीं बल्कि समाज के बहिष्कार के कारण आतंकी की राह चुनते हैं ।

शोध यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) ने अमरिकी रक्षा विभाग की ओर से आंशिक रूप से वित्त पोषित योजना के तहत की । न्यूरो इमेजिंग (दिमाग को स्कैन करना) तकनीक से पता चला कि कट्टरपंथी व्यक्तियों के दिमाग सामाजिक रूप से हाशिए पर होने का जवाब कैसे देते हैं । पता चला कि सामाजिक बहिष्कार इसमें प्रमुख कारक है ।

तेजी से होता है बदलाव

यूसीएल से जुड़े और अध्ययन के सह प्रमुख नफीस हामिद के अनुसार, पहली बार किसी कट्टरपंथी का दिमाग स्कैन कर पता चला कि सामाजिक बहिष्कार के बाद ऐसे लोगों के व्यवहार में तेजी से बदलाव होता है । कट्टरवाद की जटिलता हाल ही तब सामने आई, जब एक ब्रिटिश मुस्लिम ने इस्लामिक स्टेट के प्रति निष्ठा की कसम खाई थी । ऐसा उसने जाँच अधिकारियों की ओर से अपमानित होने के बाद किया । उस पर लंदन में हमले का आरोप था ।

आतंक में शामिल युवक पर शोध

शोधकर्ताओं ने 535 मुस्लिम पुरुषों की पहचान की, जहाँ 2017 में इस्लामिक स्टेट के समर्थकों ने 13 लोगों की हत्या कर दी थी, जबकि 100 लोगों को घायल । इसमें से मोरक्कन मूल का एक युवक (38) का भी स्कैन किया गया । वह पहले आतंकी गतिविधि में शामिल था । उसका दिमाग स्कैन करने से पता चला कि सामाजिक बहिष्कार के बाद स्कूलों में इस्लामी शिक्षा शुरू करने या मस्जिदों के बेलगाम निर्माण उसके लिए पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए ।

हिंसा की ओर

इजरायल-फलस्तीन, भारत-पाकिस्तान और कुर्द-आइएस संघर्ष पर पिछले शोध में पाया गया था कि ‘मूल्यों की पवित्रता’ दुश्मनी का कारण बन सकती है । नए अध्ययन के अनुसार सामाजिक बहिष्कार के बाद गैर-पवित्र मूल्य भी पवित्र मूल्य हो जाते हैं । यही लोगों को वैमनस्यता और हिंसा की ओर ले जाता है ।

भारत और पाकिस्तान संघर्ष पर भी किया गया था अध्ययन

अतः हमें समाज के हर तबके के लोगों से स्नेह, सहानुभूतियुक्त बर्ताव रखना होगा, उनकी उपेक्षा, तिरस्कार या बहिष्कार से हम उन्हें अपराधी बना देंगे । हर समाज को, हर देश को, दुनिया को अब उस दिशा में सोचने व काम करने की जरूरत है ।

अब, अहमदाबाद की अनुबंध संस्था के बारे में बताना चाहता हूँ कि यह संस्था 2002 से कार्यरत है । नटूभाई पटेल इसके स्थापक हैं । वरिष्ठ नागरिकों के जीवन में अकेलापन, अवसाद व नकारात्मकता को दूर करने के उद्धेश्य से यह संस्था उन्होंने स्थापित की है ।

यह संस्था वरिष्ठ लोगों का विवाह करवाती है । आनेवाली 20 जनवरी, 2019 को सूरत के वराछा में – उमियाधाम में ‘वरिष्ठों का विवाह’ आयोजित होने जा रहा है । 50 वर्ष से 82 वर्ष तक के 146 उम्मीदवारों ने रजिस्ट्रेशन करवाया है । बुढ़ापे में किसी वृद्धाश्रम में अकेले-अवसाद-तनाव में कराहते रहने की अपेक्षा – वृद्धजनों को दूसरा विवाह करके अवसाद-तनावमुक्त रहने का ये संस्था अवसर देती है। अहमदाबाद के नंदगोपी  सोसायटी, वासणा में संचालित संस्था ने अब तक 53 परिचय मेलों का आयोजन किया है । आने वाली 20 जनवरी, 2019 को सूरत के वराछा में ‘वरिष्ठओं का विवाह’ होगा – कुल 146 लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया है। सभी धर्मों के लोगों ने नाम लिखवाए हैं । 50 साल की उम्र से लेकर 86 साल के उम्मीदवारों ने अपना नाम दर्ज कराया है। इस बार सबसे बड़ी उम्र के पुरुष 81 साल के – 61 साल की महिला से विवाह करेंगे। 50 साल से ज्यादा जो हैं उनके लिए विवाह का समय सुबह 10:00 से 3:00 रखा है और 35 से 50 साल की उम्र वालों का 3:00 से 7:00 बजे के बीच विवाह होगा !

पूरे विश्व में इन दिनों अवसाद, तनाव, अकेलापन, पीड़ा आदि बढ़ रही है ऐसे में , नंदू भाई पटेल ने अनुबंध फाउंडेशन के जरिए वृद्ध आश्रमों में जिंदगी बिताने की अपेक्षा विवाह से दो व्यक्तियों को जोड़कर प्राकृतिक समरसता का संयोजन करने का उम्दा प्रशंसनीय कार्य किया है ! इसे मैं ‘पतझड़ में बसंत’ कहूँगा ! अपने लिए तो सभी सोचते, करते हैं, लेकिन दूसरों के दुख, पीड़ा को समझ कर दूर करने की कोशिश करने वाले विरले ही होते हैं ।

अब मैं, अजमेर की वंदना अग्रवाल के कार्य के बारे में बताता हूँ कि जो महिलाओं और दिव्यांगों को सशक्त, मजबूत बनाने का कार्य कर रही हैं, उनके उत्साह को देख कई लोगों को नई ऊर्जा व प्रेरणा मिल रही है ।

आइए इन की खबर पढ़ते हैं…

उनके उत्साह को देखकर मिलती है नहीं ऊर्जा…

मदर टेरेसा से प्रेरणा लेकर राजस्थान के अजमेर में पली-बढ़ी वंदना अग्रवाल ने पढ़ाई पूरी करने के बाद महिलाओं और दिव्यांगों को सशक्त बनाने की ओर कदम बढ़ाया है। उन्होंने गांव की महिलाओं के बीच जाकर उनके विकास के लिए प्रयास किए ।

वे नारायण सेवा संस्थान की डायरेक्टर हैं। दिव्यांगों को कंप्यूटर और हार्डवेयर की ट्रेनिंग देकर सशक्त करती हैं , ताकि उनकी दूसरों पर निर्भरता खत्म हो। महिलाओं को मुफ्त सिलाई ट्रेनिंग देती हैं, ताकि वह आत्मनिर्भर बन सके । विधवा महिलाओं के बच्चों को शिक्षित कर रही हैं । बताती हैं, इन लोगों के बीच काम करने के दौरान मैंने अपनी क्षमताओं को पहचाना है। इनके उत्साह और लगन को देखकर मुझे नई ऊर्जा मिलती है, जिससे मैं अपने काम को और ज्यादा अच्छी तरह से कर पाती हूँ ।

धन्य हैं वे लोग की जो अपनी योग्यता, क्षमता व शक्ति को सिर्फ अपने या अपने परिवार तक ही सीमित नहीं रखते वे अपनी योग्यता, क्षमता- सामर्थ्य का उपयोग समाज को ऊंचा उठाने में करते हैं, बेहतर जीवन बनाने में करते हैं ।

अप्सरा रेड्डी ट्रांसजेंडर है लेकिन फिर भी उसने कभी अपने को दीन-हीन मानकर कोसा नहीं, दुखी हुई नहीं, पुरुषार्थ करती रही, लंदन में पढ़ी, जर्नलिज्म किया, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पत्रिकाओं में काम किया, अब राहुल गांधी ने उनको हाल ही में महिला कांग्रेस की महामंत्री बनाया है। कोशिश जारी रखने से अकल्पनीय पद आप पा सकते हैं। कभी स्वयं को निराशा के गर्त में ना धकेले ।

और अब अंत में, आप सभी को मकर संक्रांति उत्तरायण पर्व की खूब-खूब शुभकामनाएं एवं बधाई… इस पर्व पर गोग्रास दान – व तिल दान का विशेष महत्व है ।

29 जनवरी को विशेष रूप से दान दिवस मनाया जाएगा …जो है उसके बांटने का आनंद अनोखा है – आशा है आप इसका लाभ लेंगे , औरों को भी प्रेरित करेंगे ।

|| शुभमस्तु सर्वदा ||

– नारायण साँईं

11.01.2019

सूरत

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