नारायण साँई का 2019 में तीसरा संदेश पढ़ लो, दिल की बात : हो जाओ लाभान्वित ….

तमाम उम्र मैं एक अजनबी के घर में रहा

सफर न करते हुए भी किसी सफर में रहा ।

वो जो जिस्म ही था भटका किया जमाने में

ह्रदय तो हमेशा तेरी डगर में रहा ।

तू ढुँढता था जिसे जाके बृज में गोकुल में

वो श्याम तो किसी मीरा की चश्म-तर में रहा ।।

जो गीत बाँटता फिरता था सारी दुनिया में

किसे पता है वो किन आँसुओं के घर में रहा !

वो और ही थे जिन्हें खबर थी सितारों की

मेरा ये देश तो रोटी की ही खबर में रहा ।

नहीं शराब में, आया लहू में स्वाद उसे

जो चार दिन ही सियासत के इस नगर में रहा ।

हजारों रत्न थे उस जौहरी की झोली में उसे न कुछ भी मिला जो अगर-मगर में रहा ।

आज के पत्र की शुरुआत इस मस्त गजल गीतिका से, जो नीरज ने लिखी है ! रूप – रस – रंग की अत्यंत मनोहारिणी सुगन्ध का नाम ही तो गजल है । वो कविता से अधिक एक तहजीब, एक संस्कृति है । उर्दू काव्य की यह एक अत्यंत लोकप्रिय विधा है । अपनी सहजता, संक्षिप्तता, तथा गेयता के कारण जनमानस का जितना प्यार गजल को मिला है, उतना उर्दू की किसी अन्य काव्य विधा को नहीं । धार्मिक मंचो और जीरों के मजारों से चलकर, राजाओं और नवाबों की महफिलों से गुजरकर, चौराहों और सड़कों पर ठहरकर, कई सफर इसने आज तक बड़ी सफलता के साथ तय किया है । अरब, इरान, हिन्दुस्तान, पाकिस्तान आदि जितने भूखंड हैं, उनमें जो लोकप्रियता गजलों को मिली है, वो गजब की हैं । गजल के शाब्दिक अर्थ के विषय में फिर कभी विस्तार से लिखूंगा…! अभी तो उपर लिखी गजल का एक अंश फिरसे –

जो गीत बाँटता फिरता था सारी दुनिया में

किसे पता है वो किन आँसुओं के घर में रहा !

हाल की स्थितियों को देखते हुए यह सटीक बैठ रहा है कि – जहाँ बैठकर मैं लिख रहा हूँ आपको, वो कैदखाना…, कारावास, जेल के अंदर… लोगों के आंसू भी सुख जाते हैं । यहाँ पीड़ाएं हैं, दर्द हैं, अफसोस है, दिक्कते हैं । कई महीनों तक आइना (MIRROR) नहीं था कई कैदी महिनों महिनों अपना चेहरा नहीं देख पाते हैं, मैं भी उनमें से एक – बहुत दिनों बाद एक छोटासा आइना मिला और मैंने अपना मुखड़ा देखा तो, पाया सफेद बालों ने तेजी से दस्तक देना शुरू किया है ! अपना मुखड़ा देखने के बावजूद लोग अपने को कहाँ देख पाते है ? मैं तो स्वयं दर्शन करने हर रोज ध्यानस्थ होता हूँ, आज ध्यान शरीर के मुखड़े पर गया… और स्वयं को ही देख मुस्कुरा गया….

अपने आपको देखने का भी तो मजा है… अपने आपका आकर्षण भला किसको नहीं होता ? सेल्फी का क्रेज जाने अनजाने अपने को देखने व फैलाने का क्रेज है । मनुष्य स्वयं को देखना-और दिखाना पसंद करता है । सुन्दर दिखने – और दिखाने के लिए विश्व में करोड़ो लोग, करोड़ो-अरबो रूपये खर्च करते हैं – पर मजा तो तब है कि जब हम असली अपने स्वरूप को देखें….तो वाह ! क्या बात है ! कह उठेंगे उस फकीरी की तरह जिसने अपने असली स्वरूप की झाँकी पाई और कह उठा था : देखा अपने आपको मेरा दिल दीवाना हो गया, ना छेड़ो मुझे यारों ! मैं खुद पे मस्ताना हो गया !

मैनें गायी है ये गजल, आप सुनना चाहें तो सर्च करना फेसबुक पर, या यू-ट्यूब पर – ! अनोखा मस्ताना गीत है ये ! अक्सर मैं गुनगुनाया करता था एक समय ! ये किसी महापुरुष ने लिखा है, जो स्थितप्रज्ञ थे, आत्मज्ञानी थे, बुद्धपुरुष थे ! उनका आत्मानुभव इस गजल के रूप में फट पड़ा था !

तो मैं, इस कारावास, आँसुओं के घर से आपको कुछ प्रसन्नता बढ़ाने के लिए, ज्ञान – समझ सूचना – जानकारी की वृद्धि के लिए, मैं प्रयास कर रहा हूँ ! आगे बढ़ते हैं । कुछ सूत्र देता हूँ – कुछ शेर भी

 

मासिक आय ( monthly Income ) की अपेक्षा मानसिक आय ( mental Income ) दुगुनी करोगे तो खुश रहोगे !

  • जो इंसान खो गया है, गुमशुदा हुआ है वो तो शायद वापस मिल भी सकता है लेकिन जो बदल गया है वह इंसान कभी भी वापस नहीं मिलता !
  • हीरे परखने वाले की अपेक्षा पीड़ा परखनेवाले का स्थान ऊँचा है । हमें रत्न परखनेवाले जौहरी की अपेक्षा हमारी योग्यताओं को परखनेवाले जौहरी की तलाश है ।
  • स्वाभिमान कभी मरता नहीं ; और अभिमान लंबा समय जीता नहीं । मीठा झूठ बोलने से अच्छा है कड़वा सच बोला जाए,

इनसे सच्चे दुश्मन मिलेंगे, लेकिन ‘ झूठे दोस्त ’ नहीं ।

  • फानुस बनके जिनकी हिफाजत हवा करे ।

वो शमा क्या बुझे जिसे रोशन खुदा करे ।।

मेरी जानकारी में आया है कि बशीर बद्र एक अच्छे शायर थे , कवि थे ‘ थे ’ लिखने का मतलब कि वे आज ‘ नहीं ’ हैं ऐसा नहीं – शरीर से तो हैं – पर उम्र 83 वर्ष और भूल जाने की बीमारी उनको लग गई है ! उनके खुद के बनाए शेर – गजल भी उनको याद नहीं आ रही है – इससे बड़ी करुणता क्या होगी ! सभी प्रार्थना करें कि वो जल्दी स्वस्थ हो जाएं ! उनके कुछ शेर हैं – आपने शायद सुने – पढ़े होंगे देखें उनके शेर …

  • उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो ।

न जाने किस गली में, जिंदगी की शाम हो जाए ।।

  • दुश्मनी जमकर करो लेकिन ये गुंजाइश रखो –

कि जब कभी हम दोस्त हों जाऐ, शर्मिंदा न हों ।

  • लोग लुट जाते हैं एक घर बनाने में

तुम तरस नहीं खाते, बस्तियाँ जलाने में ?

  • खुदा ऐसे अहसास का नाम है,

रहे सामने और दिखाइ ना दे !

  • सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जायेगा

इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जायेगा …

  • कोई हाथ भी न मिलायेगा, जो गले मिलोगे तपाक से,

ये नये मिजाजों का शहर है, जरा फासले से मिला करो ।

  • इबादतों की तरह मैं ये काम करता हूँ

मेरा उसूल है मैं पहले सलाम करता हूँ

मुझे खुदा ने गजल का दयार बक्शा है

ये सल्तनत मैं मुहब्बतों के नाम करता हूँ

  • अभी इस तरफ न निगाह कर ,

मैं गजल की पलकें संवार लू ,

मेरा लफ्ज लफ्ज हो आईना

तुझे आईने में उतार लूं

  • गजलों का हुनर अपनी आँखों को सिखायेंगे

रोयेंगे बहुत, लेकिन आँसू नहीं आएँगे !

  • राहों में कौन आया – गया कुछ पता नहीं

उसको तलाश करते रहे जो मिला नहीं ।।

मैं चुप रहा तो गलतफहमियां बढ़ती रहीं

वो भी सुना है उसने, जो मैंने कहा नहीं ।।

  • दुश्मनों की तरह उससे लड़ते रहे,

अपनी चाहत भी कितनी निराली रही ।

जब कभी भी तुम्हारा ख्याल आया,

फिर कई रोज तक बेख्याली रही ।।

  • कभी तो शाम ढले अपने घर गये होते,

किसी की आँख में रहकर सँवर गये होते ।

गजल ने बहते हुए फुल चुन लिए वरना,

गमों में डूबकर हम लोग मर गये होते ।।

 

  • इसीलिए तो यहाँ अब भी अजनबी हूँ मैं,

तमाम लोग फरिश्ते हैं, आदमी हूँ मैं !

 

  • मुझे इश्तिहार सी लगती है ये मोहब्बतों की कहानियाँ,

जो कहा नहीं वो सुना करो, जो सुना नहीं वो कहा करो !

 

  • पलकें भी चमक जाती हैं सोते में,

आँखों को अभी ख्व्वाब छुपाने नहीं आते !

 

 

…………ऐसी कईयों शेर-शायरियाँ बशीर बद्र की हैं, प्रार्थना करें उनके आरोग्य के लिए कि ईश्वर उन्हें जल्दी से स्वस्थ करे !

अब, मैं वरिष्ठ पत्रकार और लेखक श्रवण गर्ग का लेख प्रस्तुत करता हूँ । (दैनिक भास्कर – रसरंग – 20.1.19 रविवार) जिसके कुछ खास अंश हैं :

  • देश की मौजूदा हकीकत पर अगर गौर किया जाए तो न सिर्फ बेरोजगारी बेलगाम तरीके से बढ़ रही है, बल्कि जिनके पास रोजी-रोटी का साधन है वह भी उनसे छीन रहा है !
  • दिसंबर 2018 में बेरोजगारी की दर 38% थी और पिछले बारह महीनों के दौरान जिनके पास पहले से रोजगार था, उनकी संस्था 40.78 करोड़ से घटकर 39.69 करोड़ रह गई है । रोजगार में ज्यादा कमी ग्रामीण क्षेत्रों में आई है जहाँ 91.4 लाख लोगों ने अपनी रोजी रोटी गंवाई है ।
  • तीन राज्यों के चुनाव परिणामों में सरकार यह तलाशने में विफल रही कि ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती रोजगारी उसकी हार का एकमात्र कारण है । आरक्षण व्यवस्था के जरिए सरकार जिन नौकरियों की बात करती है उनका दूर-दूर तक पता नहीं है । लोगों को वास्तव में आरक्षण की नहीं, नौकरियों की जरुरत है ।
  • अचानक ऐसा क्या हो गया है कि भाजपा को देश पानीपत का मैदान और लोकसभा चुनाव तक निर्णायक युद्ध के रूप में दिखाई देने लगा ? जानता को डराया जा रहा है कि भाजपा को इस तथाकथित ‘युद्ध’ में अगर अपेक्षित सफलता नहीं मिली तो देश फिर से गुलाम हो जायेगा । किसका ?

 

क्या हमें बेवजह डराया जा रहा है ?

जो सीख रहा है वही जिंदा है……….

क्या आपने सोचा है कि आप अपने शरीर को सजाने और संवारने में औसतन कितना वक्त लगाते हैं ? मेरे सेमिनार के प्रतिभागियों की मानें तो सजना-संवरना और शोप्पिंग मिलाकर औसतन पंद्रह घंटे हर हफ्ते लगते हैं । जब हम शरीर के सौंदर्य और स्वास्थ्य पर हर साल 720 घंटे देते हैं तो यह सवाल उठता है कि उस दिमाग को संवारने के लिए आप कितना वक्त देते हैं जो सारे शरीर को चलाता है ?

यदि आपने बड़े सपने देखे हैं और उन्हें वाकई पाना चाहते हैं तो आपको मानसिक सौंदर्य पर काम करना होगा । इसके अनेक रास्ते हो सकते हैं । आप श्रेष्ठ पुस्तकें पढ़े, आप श्रेष्ठ लोगों के साथ रहें, आप श्रेष्ठ घटनाओं के साक्षी बनें । श्रेष्ठ लोगों का साथ हर पल मिल पाना संभव नहीं होता । श्रेष्ठ घटनाओं के साक्षी बनें, यह भी बार-बार संभव नहीं है । लेकिन एक अच्छी पुस्तक आपको हर क्षण प्रेरित कर सकती है और आपको श्रेष्ठता की ओर अग्रसर कर सकती है ।

मेरे मन में सदैव यह प्रश्न उठता है कि कुछ लोग श्रेष्ठता के लिए प्रयास क्यों नहीं करना चाहते ? आखिर इन लोगों को नए विचारों की जरुरत क्यों नहीं पड़ती ? ये मानसिक और आध्यात्मिक रूप से विकसित क्यों नहीं होना चाहते ? अपनी दिनचर्या पर गौर कीजिए । नौकरीपेशा हो या दुकानदार, अधिकांश की जिंदगी बिल्कुल तय होती है । प्रश्न उठता है कि भागमभाग भरी जिंदगी में नए विचार आपके भीतर आयेंगे कहाँ से । यदि नए विचार सतत नहीं आये तो आपके भीतर परिवर्तन नहीं होंगे । परिवर्तन के बिना आप तरक्की नहीं कर पायेंगे । इसीलिए अच्छी पुस्तकों को अपना जीवन साथी बनाकर रखिये । यदि आप पहले से योग्य हैं तो इससे आपकी योग्यता व प्रभावकारिता में वृद्धि होगी । प्रेरणादायक पुस्तकों से उपजी श्रेष्ठता आपको रातों-रात सफल नहीं बनाती । श्रेष्ठता के छुपे हुए लाभ हैं । धीरे-धीरे सोचने और कार्य करने क तरीका बदलता है और आपकी सफलता का ग्राफ बढ़ता चला जाता है । मैं इस लाइन में दृढ़ता से यकीन करता हूँ कि ‘जो सीख रहे हैं वही जिन्दा हैं ।’

हर उस साहित्य को पढ़ लेना जो उपलब्ध है, सही रीडिंग नहीं है । सोचकर, समझकर और लक्ष्य बनाकर पढ़ना ही सही रीडिंग है । यही पावर रीडिंग है । पावर रीडिंग यानी वे पुस्तकें और साहित्य पढ़ना जो आपको लक्ष्य के करीब ले जाती हों, जिसे पढ़कर आपके विचारों में श्रेष्ठता आती हो । उनके बारे में पढ़ना जैसा आप बनना चाहते हैं ।

प्रतिदिन 30 मिनट पावर रीडिंग अवश्य करें । घर और ऑफिस में श्रेष्ठ पुस्तकों का संग्रह जरुर रखें । अपनी कार या ब्रीफकेस में सदैव एक श्रेष्ठ पुस्तक रखें ताकि खाली वक्त मिलते ही आप मानसिक श्रेष्ठता की ओर बढ़ सकें । अपने परिजनों में भी पुस्तकें पढ़ने की आदत डालें ।

 

देश को जब पानीपत बनाने की तैयारी की जा रही हो, संसदीय चुनावों को एक निर्णायक युद्ध करार दिया जाए और एक पक्ष द्वारा यह घोषणा कर दी जाए कि उसका नायक कभी हार स्वीकार नहीं करता है तो मतदाताओं को आनेवाले तीन महीनों के दौरान कई चौंकाने वाले फैसलों के लिए अपने दिल मजबूत कर लेने चाहिए । इसे केवल एक शुरुआत ही माना जाना चाहिए । इसे केवल एक शुरुआत ही माना जाना चाहिए कि 124वें संविधान संशोधन के जरिए सरकारी नौकरियों तथा शैक्षणिक संस्थानों में दस प्रतिशत पद व सीटें गैर-आरक्षित हिन्दुओं तथा अन्य अनारक्षित वर्गों, जिनमें कि मुस्लिम भी शामिल हैं, के लिए आरक्षित कर दी गई हैं । विभिन्न तबकों (अनुसूचित जाति/जनजाति/ओ.बी.सी.) को पहले से उपलब्ध लगभग पचास प्रतिशत आरक्षण के साथ इस नए दस प्रतिशत के बाद माना जा सकता है कि देश के कोई 95 प्रतिशत से अधिक परिवार किसी न किसी प्रकार के आरक्षण के लाभ की सीमा में आ गए हैं ।

सरकार के पास इस बात का कोई आंकड़ा नहीं है कि कितने आदिवासियों-दलितों को आरक्षण का लाभ अबतक मिल चुका है और कितने वंचित रह गए हैं । देश में जातीय संरचना के बारे में 2011 की रिपोर्ट भी उजागर होनी बाकी है । देख की मौजूदा हकीकत पर अगर गौर किया जाए तो न सिर्फ बेरोजगारी बेलगाम तरीके से बढ़ रही है, बल्कि जिनके पास रोजी-रोटी का साधन है वह भी उनसे छीन रहा है । महीने भर पहले दिसंबर 2018 में बेरोजगारी की दर 7.38% थी और पिछले बारह महीनों के दौरान जिनके पास पहले से रोजगार था, उनकी संख्या 40.78 करोड़ से घटकर 39.69 करोड़ रह गई । रोजगार में सबसे ज्यादा कमी ग्रामीण क्षेत्रों में आई है जहाँ 91.4 लाख लोगों ने अपनी रोजी-रोटी खोई । तीन राज्यों के चुनाव परिणामों में सरकार यह तलाश करने में असफल रही कि ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती बेरोजगारी उसकी हार का एक बड़ा कारण रहा है । आरक्षण व्यवस्था के जरिए सरकारें जिन नौकरियों की बातें करती हैं, उनका दूर-दूर तक पता नहीं है । लोगों को वास्तव में आरक्षण की नहीं, नौकरियों की जरुरत है । याद दिलाने की जरुरत नहीं कि भाजपा ने सत्ता में आते वक्त और तमाम आश्वासनों के साथ-साथ यह वायदा भी किया था कि देश में प्रतिवर्ष दो करोड़ नई नौकरियां उपलब्ध करवाई जाएंगी । इस तरह तो पिछले साढ़े चार सालों में नौ करोड़ नए रोजगार उपलब्ध हो जाने चाहिए थे, जो कि नहीं हुए ।

भाजपा शायद डरी हुई है कि तीन राज्यों की जानता ने उसके साढ़े चार साल के काम पर पूरी तरह से भरोसा नहीं जताया और इसके पीछे एक बड़ा कारण सवर्णों की नाराजगी बताया जा रहा है । मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की कुल 65 सीटों में 35 सवर्ण-बहुल हैं और 2014 में भाजपा को इनमें से 34 सीटें प्राप्त हुई थीं । यही स्थिति गुजरात की है जहाँ भाजपा ने कुल 26 में से सभी बारह की बारह सवर्ण-बहुल सीटें जीतीं थी । नया आरक्षण अगर सबसे पहले गुजरात में लागू किया गया है तो समझा जा सकता है कि भाजपा की चिंता कितनी बड़ी है । सही पूछा जाए तो सरकारें ठीक से समझ ही नहीं पाती हैं कि जनता उनसे कब और क्यों नाराज हो जाती है ।

  • सही पूछा जाए तो सरकारें ठीक से समझ नहीं पाती कि जनता उनसे कब और क्यों नाराज हो जाती है ! सरकारें जीतते रहने को ही अपना अधिकार समझ लेती है तो हर छोटी या बड़ी हार से बौखला जाती है ।

 

  • आखिर कब समझेंगी सरकारें जनता की पीड़ा को ? और जनता के दर्द को ? जनता जनार्दन की असली समस्याओं को ? और आखिर कब गंभीरता से उसका हल निकालने का ठोस प्रयास करेंगी ?

***************************

अब, मैं डॉ. उज्जवल पाटनी की बात करूंगा जो जाने – माने बिजनेस ट्रेनर हैं । उन्होंने एक खास बात कही है कि लोग अपने शरीर को सजाने और संवारने में हर साल 720 घंटे खर्च करते हैं लेकिन दिमाग को संवारने के लिए वक्त नहीं देते जिससे सारा शरीर संचालित होता है – उस दिमाग के प्रति लापरवाह रहते हैं । लाइफ मैनेजमेंट की चर्चा में इन दिनों उनके लेक्चर मशहूर हो रहे हैं । उनके लेख अक्सर मैं पढ़ता हूँ । वे सटीक और खास बातें लिखते हैं ।

वे कहते हैं :

लाइफ मैनजमेंट

डॉ. उज्ज्वल पाटनी

जो सीख रहा है वही जिंदा है …

क्या आपने सोचा है कि आप अपने शरीर को सजाने और संवारने में औसतन कितना वक्त लगाते हैं ? मेरे सेमिनार के प्रतियोगियों की मानें तो सजना – संवरना और शॉपिंग मिलाकर औसतन पंद्रह घंटे हर हफ्ते लगते हैं । जब हम शरीर के सौंदर्य और स्वस्थ पर हर साल 720 घंटे देते हैं तो यह सवाल उठता है कि उस दिमाग को संवारने के लिए आप कितना वक्त देते हैं जो सारे शरीर को चलाता है ? यदि आपने बड़े सपने देखे हैं और उन्हें वाकई पाना चाहते हैं तो आपको मानसिक सौंदर्य पर काम करना होगा । इसके अनेक रास्ते हो सकते हैं । आप श्रेष्ठ पुस्तकें पढ़े, आप श्रेष्ठ लोगों के साथ रहें, आप श्रेष्ठ घटनाओं के साक्षी बनें । श्रेष्ठ लोगों का साथ हर पल पाना संभव नहीं होता । श्रेष्ठ घटनाओं के साक्षी बनें, यह भी बार – बार संभव नहीं है । लेकिन एक अच्छी पुस्तक आपको हर क्षण प्रेरित कर सकती है और आपको श्रेष्ठता की और अग्रसर कर सकती है । मेरे मन में सदैव यह प्रश्न उठता है कि कुछ लोग श्रेष्ठता के लिए प्रयास क्यों नहीं करना चाहते ? आखिर इन लोगों को नए विचारों की जरूरत क्यों नहीं पड़ती ? ये मानसिक और अध्यात्मिक रूप से विकसित क्यों नही होना चाहते ? अपनी दिनचर्या पर गौर कीजिए । नौकरीपेशा हो या दुकानदार, अधिकांश की जिंदगी बिलकुल तय होती है । प्रश्न उठता है कि भागमभाग भरी जिंदगी में नए विचार आपके भीतर आएंगे कहां से । यदि नए विचार सतत नहीं आए तो आपके भीतर परिवर्तन नहीं होंगे । परिवर्तन के बिना आप तरक्की नहीं कर पाएंगे । इसलिए अच्छी पुस्तकों को अपना जीवन साथी बनाकर रखिए । यदि आप पहले से योग्य हैं तो इससे आपकी योग्यता व प्रभावकारिता में वृद्धि होगी । प्रेरणादायक पुस्तकों से उपजी श्रेष्ठा आपको रातों रात सफल नहीं बनाती । श्रेष्ठा के छुपे हुए लाभ हैं । धीरे – धीरे सोचने और कार्य करने का तरीका बदलता है और आपकी सफलता का ग्राफ बढ़ता चला जाता है । मैं इस लाइन में दृढ़ता से यकीन करता हूं कि ‘जो सीख रहे हैं वही जिंदा हैं ।’

हर उस पुस्तक या साहित्य को पढ़ लेना जो उपलब्ध है, सही रीडिंग नहीं है । सोचकर, समझकर और लक्ष्य बनाकर पढ़ना ही सही रीडिंग है । यही पावर रीडिंग है । पावर रीडिंग यानी वे पुस्तकें और साहित्य जो आपको लक्ष्य के करीब ले जाती हों, जिसे पढ़कर आपके विचारों में श्रेष्ठता आती हो । उनके बारे में पढ़ना जैसा आप बनना चाहते है ।

प्रतिदिन 30 मिनट पावर रीडिंग अवश्य करें । घर और ऑफिस में श्रेष्ठ पुस्तकों का संग्रह जरुर रखें । अपनी कार या ब्रीफकेस में सदैव एक श्रेष्ठ पुस्तक रखें ताकि खाली वक्त मिलते ही आप मानसिक श्रेष्ठता की और बढ़ सकें । अपने परिजनों में भी पुस्तकें पढ़ने की आदत डालें ।

मैं अक्सर उमदा, ज्ञानवर्द्धक पुस्तकें पढ़ता रहता हूँ । और, जेल के दिनों में मिले हुए भरपूर समय का श्रेष्ठ पुस्तकों को पढ़ने में – और शांत मन में उठते विचारों व लाखों को लिखने में सदुपयोग करता रहता हूँ । मेर्री कोशिश रहती है कि वे विचार – लेख आप तक भी पहुँचे ताकि आप भी लाभान्वित हो सकें । उमदा विचारों को अधिक से अधिक फैलाना भी वैचारिक क्रांति करना है । हम सभी वैचारिक क्रांति करना है । हम सभी वैचारिक क्रांति में किसी न किसी तरह शामिल हो ! ये समाज व देश के लिए महत्वपूर्ण है । बड़े बड़े महापुरुषों ने क्या किया था ? घूम – घूम कर उन्होंने वैचारिक क्रांति ही की थी । बहुत छोटे से काल में – थोड़े से वर्षों में ही उन्होंने वैचारिक क्रांति से अकल्पनीय बदलाव लाने में सफलता प्राप्त की । आदि शंकराचार्य ने अल्पायु में ही घूम – घूम कर वैचारिक क्रांति करके पुरे भारत को जोड़ने का कार्य किया था । देवदत्त पटनायक, कि जो प्राचीन भारतीय धर्म शास्त्रों के आख्यानकाव्य और लेखक है – आदि शंकराचार्य की कथा बता रहे हैं । यहाँ मैं उनका लिखा लेख आपको प्रस्तुत करता हूँ ।

आदि शंकराचार्य जिन्होंने अल्पायु में भारत को जोड़ा

मायथोलॅाजी

देवदत्त पटनायक

आदि शकाराचार्य की कथा हमें उनके शंकर दिग्विजय से मिलती है यह कथा 13वीं या 14वीं शताब्दी की है । इतिहासकरों के अनुसार शंकराचार्य एक संन्यासी थे, जिनका जन्म 1200 वर्ष पहले मतलब 8वीं शताब्दी में दक्षिण भारत के केरल प्रांत में हुआ था । भारत के इतिहास में 8वीं शताब्दी बहुत ही दिलचस्प काल है । यह वह समय है, जब तमिलनाडु में शैव और वैष्णव भक्ति परंपरा की शरुआत हुई थी । शैव भक्तों को नयनार कहते थे और वैष्णव भक्तों को अलवार । वे गली – गली जाकर शिव और विष्णु के गीत गाते थे । यह अनुमान लगाया जाता है कि शंकराचार्य ने भी अपने घर में शिव और विष्णु के बारे में सुना होगा । लेकिन वे पूर्व मीमांसा परंपरा या निगम परंपरा से आए थे, जिसमें वेदों को अधिक महत्व दिया जाता था, पुराणों को नहीं । अगम परंपरा में मंदिर, विष्णु और शिव जैसे भगवान के रूप को महत्व दिया जाता था । इस तरह वे उस काल के समकालीन थे, जब निगम और अगम परम्पराओं के बीच धीरे – धीरे मिलन होने लगा था । यह मान्यता भी है कि ऐसा शंकराचार्य के कारण हुआ होगा ।

शंकराचार्य ने बाल अवस्था में ही संन्यास ले लिया था । कहते हैं कि भगवान ने उनके पिता से पूछा कि क्या तुम्हें दीर्घायु वाला मंदबुद्धि बच्चा चाहिए या अल्पायु वाला बुद्धिमान बालक । उन्होंने अल्पायु वाला बुद्धिमान बालक मांगा । कहते हैं कि जब शंकराचार्य आठ वर्ष के थे, तब व्यास ने उनके सामने प्रकट होकर कहा कि अगर तुम गृहस्थ जीवन में प्रवेश नहीं कर वेदों का अभ्यास करोगे तो तुम्हें और आठ वर्ष का जीवन दिया जाएगा । 16 वर्ष की आयु में जब उन्होंने ब्रह्मासूत्र और वेदों पर भाष्य लिखा, तब व्यास ने फिर से प्रकट होकर कहा कि अगर तुम अपने भाष्य का सारे भारत में प्रचार करोगे तो तुम्हें और 16 वर्ष का जीवन दिया जाएगा । इसलिए वे 32 वर्ष तक जिए और उन्होंने उपनिषद् का ज्ञान भारत के हर कोने में पहुंचाया । एक तरह से उन्होंने भारत को जोड़ने का काम किया ।

उनकी मां उनके लिए गृहस्थ जीवन चाहती थी, लेकिन उन्होंने संन्यास स्वीकार किया और वे मध्यप्रदेश के ओंकारेश्वर के पास अपने गुरु की खोज में चले गए । वहां से वे बनारस गए जहां पर उन्होंने भाष्य लिखा । उसके बाद उन्हें वहां के विद्वानों ने कहा कि तुम्हें मंडन मिश्र से बात करनी चाहिए, जो मिथिला में रहते हैं । मंडन मिश्र के साथ निगम और अगम परंपरा पर उनका वाद – विवाद हुआ । निगम परंपरा या पूर्व मीमांसा में गृहस्थ जीवन को अधिक महत्व दिया जाता था । चूंकि शंकराचार्य ने संन्यास ग्रहण किया था । इसलिए शुरू में मंडन मिश्र ने उन्हें अधिक महत्व नहीं दिया । लेकिन जो शास्त्रार्थ हुआ, उसमें मंडन मिश्र ने देखा कि यह युवक सचमुच में बुद्धिमान और वेदों का ज्ञानी है । मंडन मिश्र की पत्नी उभय भारतीय ने शकाराचार्य से कामशास्त्र के ज्ञान के बारे में पूछा । शकाराचार्य ने कहा कि वे ब्रह्मचारी है और इसलिए उन्हें कामशास्त्र का ज्ञान नहीं है । तब उभय भारती ने कहा कि जब तक तुम्हे कामशास्त्र का ज्ञान नहीं होगा, तुम्हारा ज्ञान अपूर्ण होगा । इसलिए कहते हैं कि शंकराचार्य कश्मीर की ओर गए और वहां शारदा पीठ में उन्होंने तंत्र का ज्ञान प्राप्त किया ।

शंकराचार्य ने अपनी दिग्विजय यात्रा में चारों धाम के साथ – साथ तीर्थ यात्रा की भी स्थापना की । उन्हें यह समझ आया कि चूंकि सभी लोग निगुर्ण भक्ति नहीं समझ पाएंगे, इसलिए उन्हें सगुण भक्ति का भी मार्ग अपनाना चाहिए । शंकराचार्य अद्वैत वेदांत के सबसे बड़े गुरु थे जो ज्ञान योग और कर्म योग को अधिक महत्व देते थे । लेकिन शारदा देवी को अपना इष्ट मानकर, शिव और विष्णु पर स्त्रोत लिखकर उन्होंने भक्ति योग की भी नींव डाली । तीन सौ वर्ष बाद इसे रामानुजन ने आगे बढ़ाया ।

तो, आज भी शंकराचार्य के द्वारा स्थापित चार पीठों में बैठने वाले शंकराचार्य कहलाते हैं और ये परंपरा जारी है ।

शंकरं शंकरचार्यं केशवं बादयारणम् ।

सूत्र भाष्य कृतौ वन्दे भगवन्तौ पुन: पुन: ।।

 

अब मे बात करता हूँ ऐश्वर्या जैन की, इस लड़की ने अहमदाबाद के आइ आइ एम – ए में आयोजित 2019 के केओस में तनावमुक्त और खुश रहने के लिए विशेष लेक्चर देने की तैयारी कर ली है यह लेक्चर तीन घंटे का होगा । आइ आइ एम के स्टूडेंट्स को स्ट्रेस मेनेजमेन्ट का पाठ पढ़ाएगी 26 साल की युवती ऐश्वर्या जैन । आजकल बढ़ते तनाव, अवसाद के वातावरण में सभी को तनाव कम करने की युक्तियाँ सीखने और अपनाने की जरूरत है अच्छे भोजन से भी तनाव को घटाया जा सकता है । कुछ टिप्स समझने और अजमाने जैसे हैं । आजकल बढ़ते स्ट्रेस से किस तरह फ्री रहा जाए ये सीखने की जरूरत है ताकि अनिद्र, चिंता – आत्महत्याओं को घटाया जा सके

दैनिक भास्कर 21/1/19

तनावमुक्त और खुश कैसे रहें, इस पर केओस 2019 में 3 घंटे तक लेक्चर देगी आई आई एम की छात्रा ऐश्वर्या

आईआईएम-ए में आयोजित केओस 2019 में मैनेजमेंट के विद्दार्थियों को शहर की 26 साल की ऐश्वर्या जैन नामक युवती स्ट्रेस फ्री एवं खुश रहने के लिए लेक्चर देगी । तीन घंटे के लेक्चर में ऐश्वर्या आसपास का माहौल एवं खुराक के जरिए किस तरह से हम अपना तनाव कम कर सकते इस पर जानकारी देगी । अच्छे भोजन से किस तरह से पॅाजिटिविटी बढ़ती है इस पर ऐश्वर्या प्रकाश डालेगी ।

स्पर्धात्मक युग में विद्दार्थियों में स्ट्रेस लेवल बढ़ा रहा है, ऐसे में ऐश्वर्या का कहना है कि हमें बचपन से ही स्पर्धा के बारे में समझाया जाता है । लेकिन स्ट्रेस फ्री किस तरह रहा जाए यह कोई नहीं सिखाता । आईआईएम में विद्यार्थियों के साथ स्टार्टअप को किस तरह से सफल बना सकें, साथ ही माइंड शार्प किस तरह से किया जा सकता है ऐसा समझाया जाएगा । तीन घंटे में ऐश्वर्या सेशन में थियरी और एक्टिविटी से आईआईएम के विद्यार्थियों में प्रकाश डालेगी । वर्तमान में हम दिमाग का विशेष उपयोग नहीं करते क्योंकि हम तमाम डाटा किसी एक डिवाइस में संभाल कर निशिचिंत हो जाते है । जिससे याद रखने की मेहनत हम नहीं करते । वैसे दिमाग का काम कम हो गया है जिसे विभिन्न एक्टिविटी द्वारा फिरसे जगा सकते है ।

परीक्षा से पहले मदद कर सकते है ये फूड

परीक्षा देने से पहले अथवा किसी बड़े काम को अंजाम देने से पहले सौंफ का पानी, हल्दी का पानी पीने से बाहर जाते समय स्ट्रेस कम रहता है । इससे पहले ऐश्वर्या ने 40 लोगो पर फूड एवं स्ट्रेस विषय पर रिसर्च किया है, जिसमें इस प्रकार के निष्कर्ष पाए गए है ।

इस तरह से असर करते है फूड

ऐश्वर्या के अनुसार कई बार हमें गट्स फिलिंग होती है, कहीं जाने से पहले पेट में तकलीफ होती है । हमारे शरीर की वेगस नस, मगज और टने साथ में है । जिससे अगर ये खाओ तो इसका असर आपके दिमाग पर होता है । बैक्टेरिया युक्त खुराक आपके शरीर में नेगेटिविटी उत्पन्न करती है । हमारे आसपास हमेशा सकारात्मक वातावरण रखे । हर दिन एक गोल सेट करो, जिसे अचिव करनेसे आपको बहुत शांति मिलेगी । आप यह भी विचार करो कि आप बहुत भाग्यशाली हो, क्योंकि आज सुबह आप उठे, दुनिया में कई ऐसे लोग भी है जो सुबह के समय उठे ही नहीं और दुनिया छोड़ गए ।

****

कुछ लोग बेहद बिगडैल स्वभाव, बुरे विचारों के होते है वे ऐसी हरकते करते है कि जिससे समाज में बुराई, नकारात्मकता फैलती है । ट्रेनों के वाशरूम में बेहूदा टिप्णीयाँ, अश्लील शब्द, वाक्य लिखते हैं – कुछ बेशर्म लोग अश्लील चित्र बना देते हैं – कई अच्छे समझदार लोग जानने, देखने के बावजूद भी कुछ नहीं कर पाते, लेकिन झारखंड के धनबाद में रहने वाले उत्तमसिंह के साथ कुछ ऐसी घटना घटी कि वे उसके बाद ऐसे अश्लील शब्दों, वाक्यों, चित्रों को मिटाने के काम में लग गए हैं । उन्होंने नया कंसेप्ट खोजा और एक पेम्पलेट चिपका देते है ऐसी जगह पर जहाँ अश्लील – बेहूदा कमेंट्स लिखे होते हैं – जिस पर लिखा होता है “ स्टॉप राइटिंग टॉयलेट का प्रयोग आपकी माँ, बहन, बेटी भी करेंगी !

उनकी यह मुहिम ट्रेन से निकलकर पार्क तक पहुँच चुकी है । आप भी इस मुहिम का हिस्सा बन सकते हैं और समाज को बेहतर बनाने में किंचिंत योगदान दे सकते हैं ।

ट्रेन के टॉयलेट में लिखे बेहूदा कमेंट्स पर बेटी को जवाब नहीं दे पाए तो खुद जुटे मिटाने में, 250 से ज्यादा ट्रेनों से हटा दिए ऐसे भद्दे कमेंट्स

झारखंड में धनबाद के उत्तमसिंह ने एक सामाजिक जिम्मेदारी निभाने की ठानी है । वे जब भी सफर करते हैं, टॉयलेट में लिखे गये बेहूदा कमेंट्स को साफ करना नहीं भूलते । ऐसा करने से उन्हें जरा भी संकोच नहीं होता । यही वजह है कि वे अब तक 250 से ज्यादा ट्रेनों में टॉयलेट में लिखे भद्दे कमेंट्स साफ कर चुके हैं । उत्तम बताते हैं कि एक साल पहले वे कोल्डफील्ड एक्सप्रेस से हावड़ा से धनबाद आ रहे थे साथ में पत्नी अर्पणा और आठ साल की बेटी वर्षा भी थी । ट्रेन कुछ ही दूर चली थी कि बेटी ने टॉयलेट जाने की कहा । बेटी जब टॉयलेट से बाहर आई तो कुछ अनमनी सी नजर आई । मैंने जब पूछा तो उसने टॉयलेट की दीवारों पर लिखे भद्दे कमेंट्स का अर्थ पूछा । मैं टालता गया, लेकिन उसके सवाल रुक नहीं रहे थे । मेरे पास जवाब नहीं थे संकोच में था कि बेटी को क्या बोलूं । जैसे-तैसे बेटी को दूसरी बातों में लगाया और तय किया कि कुछ भी हो जाए, किसी और पिता के सामने ऐसी तस्वीर सामने नहीं आने दूंगा । तुरंत टॉयलेट के अंदर गया और दीवार में लिखे अश्लील वाक्य मिटा दिए । दरवाजा खुला था और कुछ लोग मुझे ऐसा करते हुए देख रहे थे, लेकिन मैंने संकोच नहीं किया और अपना काम पूरा किया ।

उत्तम सिंह ने बताया कि अब वे अश्लील शब्दों को मिटाने के अलावा लोगों को जागरूक भी करते हैं कि ऐसी कोई बात दीवारों पर न लिखें, वे अश्लील कमेंट मिटाने के बाद ट्रेन में एक पैम्पलेट भी चिपकाते हैं, जिस पर लिखा होता है “ स्टॉप राइटिंग टॉयलेट का प्रयोग आपकी माँ, बहन, बेटी भी करेंगी !

उन्होंने अब इस मुहिम को ट्रेन से निकाल कर पार्क, सरकारी दफ्तर, बस स्टैंड और होटल के शौचालय तक पहुंचाया है वह इन जगहों से भी अश्लील टिप्पणियों को मिटाते हैं ।

 

अब मैं कैंडिस थिले की बात करता हूँ जिसके दो सूत्र हैं जिसे उन्होंने अपने जीवन में आत्मसात् किया है । वे सूत्र है –

(1) हर काम बड़ा होता है, बशर्ते आप अपने लिए पैमाना ऊँचा रखें । और,

(2) सबसे बड़ी सीख यह होती है कि कोई नया काम किस तरह से सीखा जाए !

दोनों सूत्र बहुत काम के हैं । कौन है कैंडिस ? जानते हैं आप ? ये दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी अमेजन में लर्निंग साइंस डिपार्टमेंट की डायरेक्टर है । उनके बारे में अधिक जानने के लिए ये खबर पढ़ें :-

(दैनिकभास्कर – 11, 21/1/19)

पिता ने अचानक नौकरी छोड़ी तो परिवार के हर सदस्य को काम करना पड़ा, यहीं से शुरू हुआ कैंडिस के सीखने का सफर

कैंडिस थिले; 11 की उम्र में घरों में काम किया, 39 साल में 12 तरह के काम सीख लिए, अब अमेज़न में लर्निंग साइंस की डायरेक्टर हैं

घर की सफाई, बेबी सीटिंग से लेकर लाइब्रेरियन और प्रोफेसर तक का काम किया

कैंडिस को जिंदगी की चुनौतियों ने इतना कुछ सिखाया कि उन्होंने सीखने का विज्ञान जान लिया

कहा जाता है कि सीखना एक कला है लेकिन, अमेरिका की कैंडिस थिले को जिंदगी की चुनौतियों ने इतना कुछ सिखाया कि उन्होंने सीखने का विज्ञान जान लिया । आज की तारीख में कैंडिस दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी अमेजन में लर्निंग साइंस डिपार्टमेंट की डायरेक्टर हैं । वे अमेजन के हर डिपार्टमेंट के लोगों को काम के नए-नए तरीके सीखने का विज्ञान बताती हैं, ताकि कर्मचारी प्रोफेशनल करियर में आगे बढ़े और कंपनी को भी ऊँचा मुकाम दिलवाएँ ।

कैंडिस के सीखने के इस सफर की शुरुआत 11 साल की उम्र में हुई । उनके पिता इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थे और लॉकहीड कंपनी में मिसाइल प्रोजेक्ट में काम करते थे । उन्होंने यह काम एक दिन अचानक यह सोचकर छोड़ दिया कि वे कोई ऐसी चीज बनाने में योगदान नहीं करेंगे जिसका इस्तेमाल युद्ध में हो । परिवार के पास आय का दूसरा कोई जरिया नहीं था । हर सदस्य को कोई न कोई काम शुरू करना पड़ा । कैंडिस को भी । पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने घरों में काम करने और बेबी सीटिंग का काम शुरू किया । उन्होंने यह काम 4 साल तक किया ।

कैंडिस को 15 साल की उम्र में दूसरी जॉब मिली । वे आर्ट एंड क्राफ्ट शॉप में काम करने लगी । जल्द ही वे क्राफ्ट के काम में इतनी माहिर हो गई कि स्टोर ज्वाइन करनेवाली नई लड़कियों को इसे सिखाने भी लगी । उन्होंने इसका अपना बिजनेस भी शुरू किया । इसके लिए कैंडिस को धागे की जरूरत पड़ती थी । उन्होंने धागा कातना भी सीख लिया । कैंडिस कहती हैं, ऐसा नहीं है कि वह काम मुझे पसंद था । मैंने उसे इसलिए सीखा क्योंकि वह काम अच्छे से करना चाहती थी ।

18 साल की उम्र में उन्होंने फिर काम बदला । इस बार वे लाइब्रेरियन बनी । करीब 1 साल इसमें बिताने के बाद वह सेक्स एजुकेटर के तौर पर काम करने लगी । वे अपने से बड़ी उम्र के लोगों को सेक्स एजुकेशन के बारे में बताती थी । इस बीच उन्होंने यूसी बर्कले यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन पूरी की । इसके बाद कैंडिस पीट्सबर्ग (पेंसलवेनिया) शिफ्ट हो गई । वहाँ उन्होंने बेकरी में काम किया । इसके बाद वह रेप क्राइसिस सेंटर पर रेप विक्टिम की काउंसिलिंग करने लगी । यहाँ काम करने के दौरान उन्होंने अस्पताल कर्मचारियों के लिए एक ट्रेनिंग मॉड्यूल तैयार किया । इसमें कर्मचारियों को यह सिखाया जाता था कि रेप विक्टिम से साक्ष्य सुरक्षित रूप से कैसे जुटाना चाहिए । उन्होंने चाइल्ड सेक्स एब्यूज़ रोकने के लिए भी मॉड्यूल तैयार किया ।

कैंडिस के 2 सूत्र वाक्य –

  1. हर काम बडा होता है, बशर्ते आप अपने लिए पैमाना ऊँचा रखें ।
  2. सबसे बड़ी सीख यह होती है कि कोई नया काम किस तरह सीखा जाए ।

 

जिस कंपनी में रिसेप्शनिस्ट का काम किया, उसमें वाइस प्रेसिडेंट तक बनीं

24 साल की उम्र में कैंडिस ने एक मैनेजमेंट कंसलटेंसी कंपनी में रिसेप्शनिस्ट का काम पकड़ा । इस कंपनी में उन्होंने 18 साल बिताए और रिसेप्शनिस्ट से वाइस प्रेसिडेंट और मैनेजिंग पार्टनर के पद तक पहुँची । यहाँ उन्होंने सीखने के तरीकों पर पहला ई-लर्निंग कोर्स कोर्स तैयार किया । यह कोर्स इस फलसफे पर आधारित था कि ह्यूमन लर्निंग को साइंस और टेक्नोलॉजी के जरिए रफ्तार दी जा सकती है ।

इसके बाद उन्होंने वह कंपनी छोड़कर ओपन लर्निंग इनीशिएटिव (ओएलआई) की शुरुआत की । इसे शुरू करने में उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा । इससे उनकी पहले साल की कमाई पिछली जॉब से भी कम रह गई थी । 2013 में कैंडिस ने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी ज्वाइन की । यहाँ वे लर्निंग साइंस की असिस्टेंट प्रोफेसर बनीं । बाद में उन्हें इस डिपार्टमेंट का डायरेक्टर भी बनाया गया । 2018 में अमेजन ने उनकी सेवा लेने के लिए खासतौर से लर्निंग साइंस डिपार्टमेंट की शुरुआत की और कैंडिस को इसका डायरेक्टर बनाया ।

कैंडिस ने अभी स्टैनफोर्ड से इस्तीफा नहीं दिया है । वे वहाँ से छुट्टी लेकर अमेज़न के लिए काम कर रही हैं । अमेजन के लिए दुनियाभर में 5 लाख 66 हजार लोग काम करते हैं ।

 

और अब, पेश है फरहाद मंजू का अनुभव – उन्हीं के शब्दों में ! फरहाद मंजू 20 सालों से टेक्नोलॉजी जर्नलिस्ट हैं और उन्होंने दावा किया है कि “मेडिटेशन (ध्यान) से हो सकता है इंटरनेट से होनेवाले दुष्प्रभावों का इलाज ।” पढ़िये उनका अनुभव, उन्हीं के शब्दों में :-

(दैनिकभास्कर – 8, 21/1/19)

     मेडिटेशन से हो सकता है इंटरनेट से होने वाले दुष्प्रभावों का इलाज

मैं लगभग 20 वर्ष से टेक्नोलॉजी जर्नलिस्ट हूं और इससे ज्यादा समय से टेक्नोलॉजी से जुड़ा हूं। समय के साथ मुझे अहसास हुआ कि डिजिटल अनुभव कितना अस्तव्यस्त कर देता है। टेक्नोलॉजी ने हमें पुरानी बेड़ियों से मुक्त किया है लेकिन उसने अपने हिसाब से तथ्य चुनने, षड्यंत्रकारी विचार को बढ़ाने और हर मानवीय प्रयास को नाटकीय तौर पर देखने की संस्कृति भी बनाई है। उसने हमारी दैनंदिन वास्तविकता के अनुभव में भी बदलाव किया है। दुनिया आज पहले से बेहतर हुई है पर डिजिटल वर्ल्ड हर किसी को बदतर सोचने के लिए मजबूर करता है। रोज आने वाली खबरें आपको परेशान नहीं करती हैं बल्कि उनकी गति, संख्या और झूठ हमें प्रभावित करता है। इसलिए अब मैं मुद्दे की बात पर आता हूं। 2019 आ चुका है और आपने अब तक मेडिटेशन क्यों नहीं शुरू किया है।
कुछ वर्ष पहले मुझे आशंका हुई कि इंटरनेट का तेजाबी मैकेनिज्म मेरे दिमाग को चौपट कर रहा है। मुझे एक झगड़ालू, उन्मत्त और सनकी गंवार के रूप में बदल रहा है। उसके बाद मैंने इस जहर को उतारने के लिए सब कुछ किया। ऑफलाइन रहने के लिए एप ब्लॉकर्स और स्क्रीन मॉनिटर्स से सलाह ली। मीडिया का बेहतर अनुभव करने के लिए मैंने प्रिंट अखबारों से समाचार पढ़े। फिर भी, ऑफलाइन होने के जीेवन बदलने वाले जादू की कुछ सीमाएं हैं। कार, क्रेडिट कार्ड्स के समान स्मार्टफोन भी जीवन का हिस्सा हैं।
ऑफलाइन दुनिया ऑनलाइन घटनाक्रम से प्रभावित होती है। इसलिए बचना असंभव है। टि्वटर से केबल न्यूज की प्रोग्रामिंग अप्रत्यक्ष रूप से तय होती है। आप बच्चों को फोन के दुष्प्रभावों से बचाने की जितनी कोशिश करें, उसका सामाजिक जीवन इंस्टाग्राम और फोर्टनाइट से गिरेगा, उठेगा। इसलिए दिमाग को कुंद करने वाले इंटरनेट के खराब प्रभावों से बचने के लिए मैंने ध्यान का सहारा लिया। अमेरिका के पश्चिम तट पर कई वर्षों से ध्यान लोकप्रिय है। यह किताबों, पॉडकास्ट, सम्मेलनों और एप के बीच चलने वाली होड़ का विषय भी है। कंपनियों के सीईओ, एक्टर इसकी प्रशंसा करते हैं और मेरे बच्चों के प्रायमरी स्कूल में ध्यान पढ़ाया जाता है।
वैज्ञानिक रिसर्च ने ध्यान, मानसिक एकाग्रता (माइंडफुलनैस) से शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य को होने वाले फायदे बताए हैं। थोड़े समय के लिए ध्यान करने से फोकस करने की क्षमता बढ़ती है, याददाश्त बेहतर होती है और शरीर की संवेदी कार्यप्रणाली में सुधार होता है। एक वर्ष पहले जब मैंने ध्यान शुरू किया था तब मैं यह जानता था लेकिन मुझे अचरज है कि कैसे उसने डिजिटल वर्ल्ड से मेरे संबंध बदल दिए हैं। पहले यह आसान नहीं था। डिजिटल महासागर में वर्षों गुजारने के बाद मैंने अनुभव किया कि मेरा दिमाग ज्यादा फोकस नहीं कर पाता है। मैंने एकाग्रता के लिए मेडिटेशन पर कई किताबें पढ़ीं, एप्स देखे और दूसरे तरीके अपनाए।
लगभग चार माह पहले मैंने ध्यान को अपनी प्रात:कालीन दिनचर्या का हिस्सा बना लिया। मैंने 10, 15, 20 और फिर 30 मिनट तक ध्यान किया। फिर उसके फायदे समझ में आने लगे। लगता है, मेरे दिमाग का सॉफ्टवेयर अपग्रेड हो गया है। वह आपके समय और दिमाग को प्रभावित करने वाले ऑनलाइन वर्ल्ड से सुुरक्षा के लिए डिजाइन हो चुका है। अब एप ब्लॉकर्स के बिना मैं ऑनलाइन बकवास से दूर रहता हूं। मुझे किसी चीज से वंचित होने की चिंता नहीं सताती है। मैं महत्वपूर्ण और मामूली चीजों में अंतर करना समझ गया हूं। मैं जानता हूं कि लोग इंटरनेट पर गलत जानकारी दे रहे हैं लेकिन मैं उसकी कोई चिंता नहीं करता हूं।
© The New York Times
‘लगातार चार माह तक ध्यान करने के बाद मुझे अहसास हुआ कि मेरे दिमाग का सॉफ्टवेयर बदल गया है। अब मुझे इंटरनेट की याद नहीं सताती है।’

 

और अब प्रयागराज में कुंभ मेला चल रहा है इन दिनों ! खास खबर है कि अमेरिका से आकर भारत में संन्यासी बन चुकी साध्वी भगवती ने स्वच्छता के लिए एक पहल शुरू की है । टॉयलेट जैसा दिखनेवाला कैफेटेरिया बनाया है आपको पता है ?

(दैनिकभास्कर – 9, 21/1/19)

अमेरिका से आकर भारत में संन्यासी बन चुकी साध्वी भगवती की स्वच्छता के लिए पहल

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की ग्रेजुएट महिला कुंभ में टॉयलेट जैसे दिखनेवाले कैफेटेरिया से स्वच्छता का संदेश दे रही

टॉयलेट कैफेटेरिया । सुनकर अजीब लग सकता है ! इस पर अलग-अलग विचार हो सकते हैं, पर प्रयागराज कुंभ में इन दिनों ‘टॉयलेट कैफेटेरिया’ स्वच्छता का पाठ पढ़ा रहा है । इस कैफेटेरिया में कमोड स्टाइल की कुर्सियाँ हैं । लोग इस पर बैठकर खाना खाते हैं । चाय-पानी पीते हैं । नाश्ता करते हैं । साथ में अन्य लोगों को स्वच्छता का संदेश देते हैं । इसे स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की ग्रेजुएट अमेरिकी महिला ने शुरू किया है । उन्होंने बताया कि वह 1996 में पहली बार भारत आई थी । सबसे पहले ऋषिकेश गई । हिंदू धर्म-संस्कृति ने इतना प्रभावित किया कि उन्होंने संन्यास ले लिया । आज दुनिया उन्हें साध्वी भगवती सरस्वती के नाम से जानती है । वह संन्यास के नियमों का पालन करने के कारण अपना पुराना नाम नहीं बता सकती । साध्वी भगवती सरस्वती ने कहा कि कुंभ मेले की तैयारी ने उन्हें काफी प्रभावित किया । वह टॉयलेट कैफेटेरिया के जरिए स्वच्छता के प्रति जागरूकता का प्रसार कर रही हैं । कैफेटेरिया के सदस्य सुबह कचरा इकठ्ठा करते हैं । अजेंटीना की ग्रेस भी टॉयलेट कैफेटेरिया के लिए काम कर रही हैं । ग्रेस ने बताया कि गंदगी पूरी दुनिया की समस्या है । स्वच्छता अभियान के लिए प्रयागराज कुंभ एक बेहतर जगह है । इस भक्तिमय वातावरण में हम स्वच्छता का संदेश लोगों तक पहुँचाना चाहते हैं । लोग भी हमारी बातों को गंभीरता से सुन रहे हैं और उस पर अमल करने की कोशिश कर रहे हैं । गौरतलब है कि यूपी सरकार ने ‘स्वच्छ कुंभ, सुरक्षित कुंभ’ का नारा दिया है । सरकार ने कुंभ मेले में 1.22 लाख टॉयलेट बनवाए हैं । 20 हजार से ज्यादा स्वच्छता कर्मी लगाए गए हैं । सफाई का बजट 234 करोड रुपए है ।

प्रयागराज कुंभ का टॉयलेट कैफेटेरिया अनूठा होने के कारण लोगों को आकर्षित कर रहा है ।

और एक नई बात कि स्वामी विवेकानंद के बारे में शॉर्ट फिल्म कांटेस्ट आयोजित हुआ है जिसमें एक लाख तक का इनाम दिया जाएगा । आप अगर 3 से 8 मिनट तक की फिल्म बनाकर 15 फरवरी, 2019 तक भेजते हैं और विजयी होते हैं तो आप इनाम में एक लाख तक के इनाम जीत सकते हैं । देखिये लिंक व खबर –

(दैनिकभास्कर – 9, 21/1/19)

शॉर्ट फिल्म कॉन्टेस्ट में जीतें 1 लाख तक के इनाम

रामकृष्ण मठ की ओर से स्वामी विवेकानंद के संदेशों पर आधारित शॉर्ट फिल्म कंटेस्ट आयोजित किया जा रहा है । इस कॉन्टेस्ट में भाग लेने के लिए 3 से 8 मिनट की फिल्म बनानी होगी । पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर आनेवाले प्रतिभागियों को क्रमशः 1 लाख, 75 हजार और 60 हजार रुपये के नकद इनाम मिलेंगे । इसके अलावा 15 प्रतिभागियों को 10-10 हजार रुपये के प्रोत्साहन पुरस्कार भी मिलेंगे । फिल्म भेजने की आखिरी तारीख 15 फरवरी, 2019 है । अधिक जानकारी के लिए देखें – http://events.chennaimath.org/vsfc19/

 

मुंबई को मायानगरी भी कहा जाता है । यहाँ कुछ ऐसे लोग भी हैं जो शिक्षा से वंचितों के लिए निःस्वार्थ भाव से काम कर रहे हैं । 5 साल से शुरू हुई यह सेवा 11 देशों के 40 शहरों तक नेटवर्क फैला चुकी है । रॉबिनहुड आर्मी के बारे में जानिए, इस संस्था की नींव रखनेवाले दिल्ली निवासी नील घोष और आनंद सिन्हा हैं कि जिन्होंने हजारों-लाखों बच्चों के जीवन में शिक्षा के जरिए रोशनी लाने का काम किया है । साधो ! साधो ! अच्छी पहल हमेशा सफल होती है । राजस्थान पत्रिका ने भी 22 जनवरी, 2019 को पहले पृष्ठ पर इस खबर को दिया है ।

(राजस्थान पत्रिका – 1, 22/1/19)

इंसानियत की मुहिम : मायानगरी के अलग-अलग इलाकों के युवा अभियान से जुड़े

5 हजार बच्चों में शिक्षा की अलख जगा रहे 2 हजार युवा

5 साल से चल रहा वंचित बच्चों के जीवन में रोशनी भरने का काम

मुंबई. मायानगरी सपनों का शहर है । हर किसी के अपने सपने हैं । सपने को हकीकत में बदलने से जुड़ी भूख महानगर की जीवनशैली को भागमभाग बनाती है । बावजूद इसके यहाँ ऐसे लोग भी हैं, जो वंचितों का सपना सच करने और उनका जीवन संवारने के लिए काम कर रहे है । ये लोग निःस्वार्थ भाव से किसी की पढ़ाई में मदद करते हैं, तो किसी के पेट की भूख मिटाते हैं । दरअसल, 2 हजार लोगों का ऐसा ही एक समूह व्यस्तता के बावजूद सड़कों पर पलनेवाले 5 हजार बच्चों के जीवन को रोशन करने में जुटा है । हम बात कर रहे हैं रॉबिनहुड आर्मी की, जिसके साथ महानगर के अलग-अलग इलाकों में रहनेवाले युवक-युवतियाँ जुड़े हुए हैं । समूह में से कोई डॉक्टर है, कोई इंजीनियर और कोई टीचर तो कोई बैंकिंग सेक्टर से है और कोई व्यापारी । जब ये लोग बच्चों को पढ़ाने निकलते हैं तो इनकी न कोई जाति और न ही कोई धर्म होता है । मन में वंचित-बेसहारा बच्चों का जीवन संवारने का सपना होता है, जिसे वे पूरा करने की कोशिश करते हैं ।

यहाँ हर कोई स्वयंसेवी

5 साल पूर्व महानगर में समूह ने कार्यकलाप शुरू किया । जीरो फंडिंग वाले इस ग्रुप में हर कोई स्वयंसेवी है । अलग-अलग सेक्टरों पर हर रविवार को 11 बजे ये लोग जमा होते हैं । वे 2 घंटे बच्चों को पढ़ाते हैं, फिर खाना खिलाते हैं ।

11 देशों के 40 शहरों में फैला नेटवर्क

संस्था की नींव दिल्ली में रहनेवाले नील घोष और आनंद सिन्हा ने रखी थी । आज इस संस्था का दायरा 11 देशों के 40 शहरों में फैला है । हजारों-लाखों बच्चों को रॉबिनहुड आर्मी न सिर्फ साक्षर बना रही है बल्कि उनके खाने-पीने का इंतजाम भी कर रही है ।

मुंबई में रॉबिनहुड आर्मी के सदस्य हितेश गुप्ता ने बताया कि हम यह कार्य उन बच्चों का भविष्य संवारने के लिए कर रहे हैं, जो वंचित तबके से हैं ।

 

सेवा करने का आनंद अनोखा है, अतुल्य है । जनता जनार्दन की सेवा से मिलनेवाला सुख भौतिकता में कहाँ, विलासिता में कहाँ ? 2 साल तक दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने मेहनत करके खान-पान का चार्ट बनाया है । इससे 1000 करोड़ लोगों का पेट भर सकने का दावा किया है और धरती को बचाने में भी मददरूप होगा । 2050 तक 1000 करोड़ की जनसंख्या हो जाएगी दुनिया में ! तो डालिए नजर और समझिये – कैलोरी के हिसाब से तय कीजिए अपना खान-पान !

(पत्रिका – 1, 18/1/19)

अमरीका : समय से पहले मरने वालों में आएगी कमी, बचाएगा धरती

दुनिया के 37 वैज्ञानिकों ने बनाया खान-पान का चार्ट, 1000 करोड़ लोगों का भरेगा पेट, धरती की भी अच्छी रहेगी सेहत

वाशिंगटन. दुनिया के 37 वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने खान-पान का एक ऐसा विशेष चार्ट तैयार किया है, जो न सिर्फ लोगों की सेहत बल्कि धरती को भी सुरक्षित रखेगा । अगर धरती पर मौजूद सभी लोग अपने खान-पान में मांस और शक्कर में 50% की कमी कर दें तो हर साल समय से पहले मरनेवाले 1 करोड़ लोगों में कमी लाई जा सकती है ।

वैज्ञानिकों को दावा है कि अगर इस चार्ट को अपनाया जाए तो 2050 तक एक करोड़ लोगों का पेट भी भरा जा सकता है । हालांकि सिर्फ डायट बदलने से ज्यादा फायदा तब तक नहीं होगा, जब तक खाने की बर्बादी जारी रहेगी ।

2 साल का लगा वक्त : ‘द प्लेनेट्री हेल्थ डायट’ नाम के इस डायट को तैयार करने में 2 साल का वक्त लग गया । इसमें जलवायु परिवर्तन से लेकर आहार तक को शामिल किया गया । फिलहाल दुनिया की आबादी 7.7 अरब है जो 2050 तक बढ़कर एक हजार करोड़ हो जाएगी । यह आबादी जितनी बड़ी है, उसका पेट भरना भी उतनी ही बड़ी चुनौती होगी ।

 

धरती को कैसे होगा फायदा

■ तापमान बढ़ाने वाली ग्रीन हाउस गैसों में कमी आएगी

■ कई प्रजातियाँ विलुप्त होने से बचेंगी, आबादी बढ़ेगी

■ पानी की बर्बादी रुकेगी

■ खेती योग्य भूमि को बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी,जमीनें कम बंटेगी

■ जंगलों की कटान रुकेगी

 

प्रतिदिन हमें 2500 किलो कैलोरी की जरूरत, इस डायट चार्ट से उसकी पूर्ति की जा सकती है ।

मांस – 14 ग्राम (30 किलो कैलोरी)

सब्जियाँ – 250 ग्राम (78 किलो कैलोरी)

डेयरी – 250 ग्राम (153 किलो कैलोरी)

अनाज – 232 ग्राम (811 किलो कैलोरी)

चीनी – 31 ग्राम (120 किलो कैलोरी)

स्टार्च वाली सब्जियाँ – 50 ग्राम (39 किलो कैलोरी)

अतिरिक्त वसा – 51.8 ग्राम (450 किलो कैलोरी)

अंडा, मछली, मुर्गा इत्यादि – 195 ग्राम (696 किलो कैलोरी)

फल – 200 ग्राम (126 किलो कैलोरी)

स्त्रोत : द लैंसेट, 2019

अब, चुनाव नजदीक आ रहे हैं और भारत में करोड़ों नागरिक अपने वोट का अधिकार खोते जा रहे हैं ये सचमुच चिंताजनक बात है । हर एक वोट देश के लिए कीमती है अतः अब जरूरी हो गया है कि हर भारतीय को उसके वोट का अधिकार वापस दिलाया जाए !

टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी यह अभियान शुरू किया है । मैं आग्रह करता हूँ कि अपने हक के लिए आवाज उठाइये और पेटिशन साइन करिए… अभी -www.lostvotes.com

(दैनिकभास्कर – 3, 20/1/19)

हैरानी की बात है, देश की तरक्की मंगल पार कर गई, फिर भी एक अधिकार बीते कल में अटका हुआ है ।

आज एक तरफ देश आगे बढ़ रहा है और दूसरी ओर देश के करोड़ों नागरिक अपने वोट का अधिकार खो रहे हैं, रोजगार और शिक्षा की तलाश होने एक शहर से दूसरे शहर ले आई पर इस सफर में जो उनके साथ नहीं चल पाया वो उनका वोटिंग का अधिकार था । वो आज भी उनके पुराने शहर में बसा है । आखिर नए शहर ने उनसे उनका वोट डालने का हक क्यों छीन लिया ? जब इस नए शहर ने उनके मोबाइल नंबर, बैंक अकाउंट, यहाँ तक कि उनकी टैक्स की जिम्मेदारियों को आने दिया तो उनके वोट डालने के अधिकार को क्यों ठुकरा दिया ? देश का हर एक वोट देश के लिए कीमती होता है, इसलिए अब समय आ गया है कि हर ऐसे भारतीय को उसका वोटिंग अधिकार वापस दिलाया जाए ।

अपने हक के लिए आवाज उठाइये और WWW.LOSTVOTES.COM पर पेटिशन साइन करिए ।

 

अब मैं सुनीलदत्त विष्णुदत्त के बारे में बताना चाहूँगा कि जिन्होंने ‘कालिदास के महावाक्यों में शिक्षा के तत्वदर्शन’ विषय पर पी.एच.डी. किया है । वर्तमान शिक्षा प्रणाली को बदलने की और नई दिशा प्रदान करनेवाली परिभाषा प्रस्तुत की है ।

(अनुवाद )

वीर नर्मद दक्षिण गुजरात युनिवर्सिटी समेत राज्य की युनिवर्सिटी में रसप्रद विषयो पर पी.एच.डी- एम.फील.का रीसर्च कार्य होता है। जिसके अंतर्गत श्री महावीर विद्यामंदिर ट्रस्ट बी. एड. कॉलेज, पांडेसरा में असिस्टंट प्रोफेसर की हेसियत से जिम्मेदारी निभाते सुनिल दत्त विष्णु दत्त व्यास ने शिक्षण विद्याशाखा में ‘कालीदास के महाकाव्यो में शैक्षणिक तत्व दर्शन विषय पर रसप्रद महाशोध निबंध प्रस्तुत किया था। जिसे वीर नर्मद दक्षिण गुजरात युनिवर्सिटी ने मान्य कर के पी. एच. डी. की पदवी सम्मानित की हे। ये संशोधन उन्होने श्रीमती वी. आर. भक्त शिक्षण महाविद्यालय के डॉ.अशविनी एम. कापडीया के मार्गदर्शन में किया था।
पी. एच. डी. संदर्भ में चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के नवरत्न में से एक ऐसे कवि कालिदास के दो महाकाव्य रघुवंशम,कुमारशंभवम्। उपकरण का अभ्यास करके तत्वमीमांसा, मूल्यमीमांसा, सौंदर्यमीमांसा ओर सबसे महत्वपूर्ण शिक्षण मीमांसा को स्पशॅते विचारों का निष्कर्ष निकाला हे। शिक्षण मीमासां के निष्कर्ष में उक्त के अनुसार, रघुवंश में कालिदास शब्दार्थ ज्ञान को शिक्षण कहा हे।अक्षर ज्ञान को शिक्षण कहा गया हे। अक्षर ज्ञान से शिक्षण पाया जा सकता है। तद्उपरांत कल्याण के माग की तरफ खिंचना और हृदयरुपी अंधकार, अज्ञान मिटा उसे ही सच्चे शिक्षण का उल्लेख किया हे। इसके अलावा कुमार संभव में कालिदास व्याकरण से परिष्कृत शुद्ध भाषा के ज्ञान को शिक्षण माना हे। आदर,सत्कार,और सन्मान के गुणों का विकास करें वो ही शिक्षण होने की परिभाषा प्रस्तुत की गई हैं।

कवि कालिदास के महावाक्यों के जरिये निकाले गए निष्कर्षों में वर्तमान शिक्षा प्रणाली को मार्ग दिखानेवाली परिभाषा प्रस्तुत की गई है । जिसके अनुसार कालिदास ने अनुशासन के लिए दंड व्यवस्था को आवश्यक माना है लेकिन शिक्षा में स्वानुशासन की भी बात की गई है । शिक्षार्थी पर केवल बाहर से अनुशासन नहीं लादना चाहिए उसके बावजूद कठोर, सांकेतिक और स्वानुशासन से भी विद्या प्रदान की जा सकती है । इसके अलावा, चतुरता पूर्वक वार्तालाप के जरिये शिक्षा प्राप्त की जा सकती है । इतना ही नहीं, गुरु मतलब कि शिक्षक बच्चों के आंतरिक भावों को जान सके उसके लिए तपोनिष्ठ होना चाहिए । स्वयं कष्ट को सहन करके अग्नि की तरह उपकार करनेवाला शिक्षक ही सच्चा गुरु है । जबकि गुरु भक्त, गुरु के हृदय को जीते, वही सच्चा शिष्य है ।

******

दक्षिण भारत के महान संत, लोककल्याण के कार्यों में रत, मानवरूप में देवता, सिद्धगंगा मठ के मठाधिपति स्वामी शिवकुमार, 111 साल की उम्र में ब्रह्मलीन हुए हैं । न केवल कर्नाटक में, बल्कि समग्र देश में उनके अलविदा होने से शोक की लहर फैल गई । दि. 21/1/2019 की दोपहर को लिंगायत-वीर शैव समुदाय के स्वामी जी, कर्नाटक के तुमकुर जिले में स्थित सिद्धगंगा मठ के मठाध्यक्ष थे और उन्होंने गरीबों, उपेक्षितों, वंचितों के लिए अपना जीवन समर्पित किया था । मैं मांग करता हूँ कि महामहिम स्वामी शिवकुमार जी को ‘भारत रत्न’ -देश का सबसे उच्च नागरिक सम्मान दिया जाए !

1 अप्रैल 1907 को कर्नाटक के रामनगर जिले के वीरपुरा गाँव में जन्मे स्वामी शिवकुमार महाराज, 300 वर्ष पुराने सिद्धगंगा मठ के प्रमुख थे । ये मठ बेंगलुरु से 80 किलोमीटर दूर तुमकुर में है । कर्नाटक में ही सिद्धगंगा मठ का बड़ा प्रभाव है । स्वामी जी ने 125 से भी अधिक स्कूलें, कॉलेज शुरू कराई थी । उनके मठ द्वारा 8000 से भी अधिक बच्चों को मुफ्त में खाने, पढ़ने तथा रहने की सुविधा प्रदान की जा रही हैं ।

मैं, उनके ब्रह्मलीन होने पर सादर श्रद्धांजलि देता हूँ । उनके जीवन से कई मठाधीश, साधु-संत एवं धर्माचार्यों को प्रेरणा मिलेगी !

******

दिल्ली के पास नोएडा निवासी सलोनी ने, 29 जनवरी को जन्मदिवस के उपलक्ष्य में मुझे शुभकामनाएं दी हैं व हस्तनिर्मित बहुत सुंदर ग्रीटिंग कार्ड भेजा है… वह कार्ड प्रस्तुत है…

 

संतों का स्वभाव है सेवा

कभी वाणी के जरिए लोकहित की सेवा

कभी कर्मों के जरिए परोपकार की सेवा

कभी विश्व की सेवा तो

कभी भगवत् नाम कीर्तन से विश्वेश्वर की सेवा

धन्य है सनातन धर्म व उनके आत्मारामी साधु-संत ! !

We bow down to the pious lotus feet of H.H Narayan Prem Sai ji

 

बापूमय अवतरण दिवस, साँई ! संतों का सत्संग/दर्शन अति दुर्लभ है ।

हम आपके अवतरण को इस नजर से देखते हैं –

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तादात्मानं सृजाम्यहम् ।।

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।

धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ।।

************

अहमदाबाद का अनुबंध फाउंडेशन अकेले रहनेवाले, अवसाद में जीनेवाले लोगों, वरिष्ठ नागरिकों को अपने अकेलेपन को मिटाने के लिए, जीवनसाथी की तलाश करने के लिए परिचय सम्मेलन आयोजित करता है । अब तक ऐसे कई परिचय सम्मेलन आयोजित कर चुका है और ऐसे लोगों का विवाह भी करवा चुका है । इस फाउंडेशन के संस्थापक नटुभाई है । दि. 20 जनवरी, 2019 को फाउंडेशन के द्वारा वरिष्ठ नागरिकों का परिचय सम्मेलन व पंजीकरण तथा विवाह कार्यक्रम रखा गया था । भास्कर ने उसकी विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की ।

(दैनिकभास्कर, 21/1/19)

235 लोगों को जीवनसाथी की तलाश, 82 साल के बुजुर्ग भी पहुँचे वरिष्ठ नागरिक परिचय मेला में

मेले में आए वरिष्ठों में से कुछ को उनके अपनों ने छोड़ दिया तो कईयों की संतानों ने उन्हें घर से निकाल दिया

वरिष्ठ नागरिकों को अपना अकेलापन मिटाने के लिए जीवनसाथी की तलाश में 180 पुरुष और 85 महिलाओं ने करवाया शादी के लिए अपना पंजीकरण

अहमदाबाद की संस्था अनुबंध फाउंडेशन की ओर से रविवार को वरिष्ठ नागरिक परिचय मेला का आयोजन किया गया । कार्यक्रम वराछा स्थित उमियाधाम, विश्वास भवन में हुआ । इस अवसर पर देशभर से लगभग 235 वरिष्ठों ने इस कार्यक्रम में भाग लिए । इसमें से 180 पुरुष और 85 महिलाएं उपस्थित रहीं । परिचय मेला में आए उम्मीदवारों में 15 हजार से लेकर 95 हजार महीने आवक वाले वरिष्ठ जीवनसाथी की खोज में आए । इसके साथ ही इन उम्मीदवारों में कक्षा चौथी पास से लेकर चिकित्सक भी मौजूद रहे । परिचय मेला सुबह 10 बजे दीप प्रज्वलन के साथ प्रारंभ हुई । इस अवसर पर आयोजक नटुभाई पटेल ने बताया कि वरिष्ठों को भी संकोच छोड़कर अपना जीवन जीना चाहिए । इसी उद्धेश्य के साथ ही इस सम्मेलन का आयोजन किया जाता है । वृद्धों को वृद्धाश्रम में जाने की जरूरत नहीं है, और न ही उन्हें अकेले की स्थिति में जीने की जरूरत है । इसलिए हम लोग अपने खर्चों से इस तरह के परिचय सम्मेलन का आयोजन करते हैं ।

इस परिचय मेला में 35 वर्ष से लेकर 82 वर्ष तक के उम्मीदवार उपस्थित रहे । इसमें डॉक्टर, इंजीनियर सहित कई अन्य व्यवसाय के लोगों ने भी हिस्सा लिया । दुनिया की चिंता छोड़कर इन वरिष्ठों ने अपने जीवन के लिए एक नया कदम उठाया और साथ ही समाज के प्रेरणा स्त्रोत बने ।

इस सम्मेलन में आए वरिष्ठों में कितनों के संतानों ने उन्हें घर से निकाल दिया तो कईयों के पति ने उन्हें छोड़ दिया । इसमें बड़ी संख्या में ऐसे उम्मीदवार थे जिनके पति या पत्नी की मृत्यु होने के कारण अकेलेपन से लड़ने के लिए इस कार्यक्रम में जीवनसाथी ढूंढने के लिए आए । इसके साथ ही महिलाएं भी सज-धज कर मेले में आई ।

 

शादी करने की ये हैं शर्तें –

■ पुरुष या महिला की आवक कितनी है

■ संतानों की क्या स्थिति है और वह कितने जिम्मेदार हैं

■ स्वास्थ्य कैसा है

■ दोनों के संतान इस संबंध को मंजूरी दे रहे हैं या नहीं

■ शादी के बाद दोनों में से एक पात्र नहीं रहा तो क्या करेंगे

 

शादी के बाद विरोध करनेवाले लोग भी सामने आए और समझाया कि यह गलत है : महेश मिस्त्री, कथाकार

मैं पहले इंजीनियर था । बेटे को सीए कराने के बाद रिटायर्ड हुआ । पत्नी की मृत्यु के बाद बेटे ने मुझे वृद्धाश्रम में छोड़ दिया । वहाँ पर एक मित्र ने समझाया कि दूसरा विवाह करो । घरवालों को बताया तो उन्होंने कहा कि इस उम्र में यह सब शोभा नहीं देता । इसके बाद मैं नटुभाई के पास गया । नटुभाई ने कहा कि एक पात्र है लेकिन आपको पसंद नहीं आएगी । मैंने कहा कि मुझे खूबसूरती या पैसा नहीं जीवनसाथी चाहिए । पहली नजर में ही मुझे प्यार हो गया और शादी के 4 वर्ष आज भी सुखी से गुजर रहे हैं ।

 

जीवनसाथी के बिना जीवन अकेले बिताना कठिन, साथ रहने और घूमने-खाने में मजा : अवनी भंडारी

जीवनसाथी के बिना जीवन अकेले बिताना कठिन है । साथ रहने, खाने और घूमने का एक अलग ही मजा है । पत्नी की मृत्यु होती है तो पति तुरंत दूसरी पत्नी के बारे में विचार करने लगता है । लेकिन पति की मृत्यु हो जाए और पत्नी दूसरा पति ढूँढे तो लोग ताने मारने लगते हैं । आज भी महिलाओं के लिए लोगों की मानसिकता बदली नहीं है । अन्य महिलाओं को भी प्रेरणा मिले इसलिए मैं इस शादी के लिए तैयार हूँ । इससे समाज के दूसरे लोगों को भी स्वस्थ संदेश जाएगा और उनका एकाकीपन दूर हो सकेगा ।

अहमदाबाद की संस्था अनुबंध फाउंडेशन की ओर से रविवार को वरिष्ठ नागरिक परिचय मेला का आयोजन किया गया, इस दौरान कुल 235 लोगों ने अपना रजिस्ट्रेशन करवाया

(दैनिकभास्कर – 2, 21/1/19)

वरिष्ठ नागरिक परिषद मेला : 50 साल की ‘दुल्हन’ के लिए 80 साल तक के ‘दूल्हे’ कतार में

सूरत । वराछा में रविवार को आयोजित वरिष्ठ नागरिक परिचय मेले में भावना लाठेवाला को जीवनसाथी बनाने के लिए 6 लोग कतार में खड़े रहे । इनमें 50 से लेकर 80 वर्ष तक के लोग थे । मंच संचालन कर रहे उद्घोषक ने भावना की ओर इंगित कर जैसे कहा कि इनसे कौन शादी करना चाहता है तो इन 6 लोगों ने हाथ उठा दिए । उसके बाद भावना ने सबका इंटरव्यू लिया और अंत में जीवन बंधन में बंधने के लिए ननजी जादव को चुना । यह मेला अमदाबाद की संस्था अनुबंध फाउंडेशन ने वराछा स्थित उमियाधाम के विश्वास भवन में आयोजित किया । परिचय मेले में 35 से लेकर 82 वर्ष तक उम्र के देशभर से आए लगभग 235 वरिष्ठों ने भाग लिया । इनमें डॉक्टर, इंजीनियर, उद्योगपति और नौकरीपेशा लोग शामिल थे । यह मेला पहली बार शहर में हुआ और वरिष्ठों ने सब कुछ भुलाकर अपने जीवन का नया अध्याय शुरू किया । कार्यक्रम स्थल पर सुबह 10 बजे से लेकर शाम 6 बजे तक लोगों की भीड़ लगी रही ।

************

 

और एक खास बात ये भी है कि सूरत के पुरुषोत्तम भाई ने 10 साल तक प्रयोग करने के बाद पानी से कार चलाने में सफलता प्राप्त की है ।

केवल सपने देखनेवालों के लिए रात भी छोटी होती है लेकिन सपने पूरे करनेवालों के लिए दिन छोटे पड़ जाते हैं ।

(दैनिकभास्कर – 1, 21/1/19)

सूरत के पुरुषोत्तम भाई ने 10 साल तक प्रयोग के बाद पानी से चला ली कार, दावा – 70 के माइलेज से 5 साल में 50 हजार किमी घूम भी लिया

दो पेटेंट पा चुके मैकेनिकल इंजीनियर की सफलता

महंगे होते पेट्रोल डीजल से सूरत के पुरुषोत्तम भाई पिपलिया को कोई फर्क नहीं पड़ता । पड़ेगा भी कैसे, क्योंकि वे अपनी मारुति 800 कार पानी से जो चला रहे हैं । सूरत के कतारगाम में फोर व्हीलर वर्कशॉप चलानेवाले 57 वर्षीय मैकेनिकल इंजीनियर पुरुषोत्तम का दावा है कि उन्होंने खुद ही पेट्रोल की बजाय हाइड्रोजन गैस से कार चलाने का फार्मूला इजाद किया था । इनकी कार में पानी का टैंक होता है, जो पानी से हाइड्रोजन बनाता रहता है और कार चलती रहती है । दावा यह भी है कि एवरेज भी पेट्रोल कारों के मुकाबला दोगुने से भी ज्यादा और खर्चा नहीं के बराबर । वो कहते हैं कि 1 लीटर पानी से बनने वाली हाइड्रोजन से 60 से 70 किमी तक कार चला सकते हैं । इससे वायु प्रदूषण भी नहीं होता । हालांकि उनकी कार में पेट्रोल की जरूरत होती है, लेकिन सिर्फ वाहन स्टार्ट और बंद करते समय । वो भी 2 से 3 मिनट के लिए । जो ऑटो ऑपरेटेड किया हुआ है । कार रन बाय वॉटर नाम से इसका पेटेंट अंतिम प्रक्रिया में है । इससे पहले वे डीजल इंजन को पानी से चलाने तथा माइलेज 40 प्रतिशत तक बढ़ाने वाले दो पेटेंट हांसिल कर चुके हैं । उनका दावा है कि पानी से चलने वाली उनकी कार से 5 सालों में अब तक 50 हजार किमी का सफर सफर कर चुके हैं । अब वे किसी ऑटोमोबाइल कंपनी से अच्छे ऑफर का इंतजार कर रहे हैं ताकि यह तकनीकी आम लोगों के लिए उपयोग आ सके ।

 

ऑटोमोबाइल में रुचि, महंगे होते ईंधन से आया आइडिया

मूलतः राजकोट निवासी पुरुषोत्तम का परिवार खेती-बाड़ी से जुड़ा है । महंगे होते पेट्रोल-डीजल और ऑटोमोबाइल में रूचि होने से वैकल्पिक ईंधन का आईडिया आया था । कार को गैस मोड से चलाने के लिए इंजन के क्रिटिकल पार्ट पिस्टन, सिलेंडर, टाइमिंग आदि को मोडिफाई करना पड़ा । इसमें 10 साल लग गए । पानी के विघटन से पैदा होने वाली हाइड्रोजन से प्रदूषण आधा रह जाता है । कोई भी सादा पानी काम आ सकता है । हालांकि वे मिनरल वॉटर इस्तेमाल करते हैं ।

 

इलेक्ट्रोलिसिस प्रक्रिया से हाइड्रोजन बनाता है पानी

पानी के टैंक से 12 वोल्ट की बैटरी तांबे के दो सिरों +- से जुड़ी होती है । पेट्रोल से एक बार इंजन स्टार्ट होने के बाद पानी से हाइड्रोजन बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है । हाइड्रोजन के 2 और ऑक्सीजन के 1 मॉलिक्यूल के विघटन की प्रक्रिया को इलेक्ट्रोलिसिस कहते हैं । यहाँ से बनने वाली हाइड्रोजन दूसरे टैंक में स्टोर होने लगती है । वहाँ से प्रेशर के बाद कम्ब्युश चेंबर में जाकर ऊर्जा पैदा करती है जो सिलेंडर को चलाती है । हाइड्रोजन स्टोर नहीं रहने से विस्फोट का खतरा भी नहीं ।

*************

ईशान और निखिल ने पैदल चलकर जरूरतमंदों की मदद करने के लिए एक एप्लीकेशन बनाई है जिसका नाम है – इंपैक्ट एप । अब तक 4 करोड़ रुपये दान किए जा चुके हैं । नए आइडिया, नए विचार, नए रास्ते खोल रहे हैं । पूरी खबर विस्तार से देखें –

(दैनिक भास्कर – 11, 23/1/19)

आईआईटी के पूर्व छात्रों ने बनाया एप, 40 लाख किमी. चलकर लोगों ने 4 करोड़ रुपए दान किए

इंपैक्ट एप : पैदल चलकर जरूरतमंदों की मदद कर सकते हैं

यूजर के हर 1 किलोमीटर पैदल चलने पर सामाजिक संस्थाओं को दान में 10 रुपये मिलते हैं ।

सोलापुर/औरंगाबाद । आईआईटी के दो दोस्तों में शर्त लगी थी । 7 दिन तक रोज 7 किलोमीटर दौड़ना था । ईशान नाडकर्णी ने चैलेंज पूरा किया और निखिल खंडेलवाल को शर्त के मुताबिक 1,000 रुपये देने पड़े । निखिल ने पैसे दिए जरूर, लेकिन ईशान को नहीं बल्कि सामाजिक संस्था को दान के रूप में । यहीं से ‘इंपैक्ट’ एप का आइडिया आया । ईशान और निखिल ने अपने दोस्तों को साथ लिया और लग गए मिशन में । इंपैक्ट एप के साथ हर 1 किलोमीटर पैदल चलने पर 10 रुपये सामाजिक संस्थाओं को दान किए जाते हैं ।

इंपैक्ट एप के संस्थापक और सीईओ ईशान ने बताया कि अगस्त 2016 में लॉन्चिंग के बाद से अब तक एक लाख से ज्यादा डाउनलोड हो चुके हैं । इनमें 95 हजार यूजर्स देश में और 5 हजार विदेश में हैं । डाउनलोड करने के बाद एप में आप अपना वज़न डालकर हर वॉक या जॉग में होने वाली कैलोरी बर्न देख सकते हैं । रोज का लक्ष्य तय करके आप इसकी आदत बना सकते हैं ।

अब तक लोगों ने 40 लाख किलोमीटर पैदल चलकर 4 करोड़ रुपए की मदद विभिन्न non-profit संस्थाओं तक पहुँचाई है । इसमें सूखे की मार झेल रहे 300 किसान परिवार, शहीदों के 70 परिवार, मुंबई की झुग्गी-बस्ती की 100 महिलाओं को आर्थिक मदद, महाराष्ट्र के जलगांव में 11,250 पौधों का रोपण, 385 स्कूलों के छात्रों को 1 साल तक भोजन कराने के साथ-साथ 1000 युवकों को रोजगार प्रशिक्षण देना शामिल है ।

इंपैक्ट एप ज्यादा लोगों को मिशन में शामिल करने के लिए कंपटीशन करा रही है । कंपनियों में जाकर टीम बनाई जाती है । उन्हें एक-डेढ़ माह तक दौड़ने, चलने का लक्ष्य दिया जाता है । अच्छा परफॉर्म करने वाली टीम को सम्मानित भी किया जाता है । जो फंड इकट्ठा होता है उसे किसी सामाजिक संस्था को दिया जाता है । अब तक 19 कंपटीशन आयोजित की जा चुकी है ।

 

सीएसआर फंड से आता है पैसा, दान के लिए संस्था का चुनाव यूजर करते हैं

आरती इंडस्ट्रीज, हीरो मोटोकॉर्प, वेलस्पन, एसबीआई, डीएचएल और हिमालया जैसी कंपनियाँ अपने सीएसआर फंड से यह रकम देती हैं । डेवलपमेंट बैंक ऑफ सिंगापुर भी पहले इम्पैक्ट के साथ काम कर चुका है । रकम किस संस्था को जाए यह चुनाव यूजर कर सकता है । पैदल चलने और दौड़ने से जरूरतमंदों तक मदद पहुँचाई जाती है ।

 

************

और, डोनेशन डे – दान दिवस 29 जनवरी का काउंटडाउन शुरू हो चुका है । इस जन्मोत्सव पर संयोग ही कहें कि कोरिया की सैमसंग कंपनी नए मोबाइल फोन गैलेक्सी एम10 व एम20 भारत में लांच करने जा रही है । जिसकी कीमत 8 हजार से 13 हजार रहने की उम्मीद है ।

 

एम10 और एम20 फोन के दो-दो वेरिएंट लॉन्च कर सकती है सैमसंग

28 जनवरी को भारत में लॉन्च होंगे गैलेक्सी एम सीरीज के फोन 

दक्षिण कोरियाई कंपनी सैमसंग 28 जनवरी को एम सीरीज के फोन लॉन्च करने वाली है। कंपनी एम10 और एम20 के दो-दो वेरिएंट लॉन्च कर सकती है। सभी वेरिएंट माइक्रो एसडी कार्ड को सपोर्ट करेंगे। सैमसंग पहले ही घोषणा कर चुकी है कि नई एम सीरीज के स्मार्टफोन कंपनी की वेबसाइट और अमेजन पर उपलब्ध होंगे। 1 फरवरी से ईकॉमर्स कंपनियों के लिए नई गाइडलाइन लागू हो रही हैं। ऐसे में कंपनी को योजना में बदलाव भी करना पड़ सकता है।
भारत में नई गैलेक्सी एम सीरीज लॉन्च करने से पहले सैमसंग ने एक्सीनोस 7904 के रूप में एक्सीनोस 7 सीरीज में नया प्रोसेसर लॉन्च किया है। नया ऑक्टा कोर एक्सीनोस 7904 प्रोसेसर एम20 स्मार्टफोन में हो सकता है। एम10 स्मार्टफोन में एक्सीनोस प्रोसेसर हो सकता है। माना जा रहा है कि दोनों स्मार्टफोन में ड्यूल लेंस रियर कैमरा हो सकते हैं। एम10 में सिर्फ फेस लॉक ऑप्शन हो सकता है। एम20 में फिंगर प्रिंट और फेस लॉक दोनों होने की संभावना है। सैमसंग ने ये फोन मिलेनियल यूजर्स (18-30) को ध्यान में रखते हुए बनाए हैं।
कीमत 7,990 से 12,990 रु. तक रहने की उम्मीद 
गैलेक्सी एम10
 2 जीबी रैम, 16 जीबी स्टोरेज, कीमत 7,990 रुपए
 3 जीबी रैम, 32 जीबी स्टोरेज, कीमत 8,990 रुपए
गैलेक्सी एम20
 3 जीबी रैम, 32 जीबी स्टोरेज, कीमत 10,990 रुपए
 4 जीबी रैम, 64 जीबी स्टोरेज, कीमत 12,990 रुपए
(स्पेसिफिकेशन और कीमत संभावित)
श्याओमी लॉन्च करेगी 48 मेगापिक्सल वाला फोन 
श्याओमी 48 मेगापिक्सल कैमरे वाले रेडमी नोट 7 सीरीज के फोन फरवरी-मार्च में भारत में लॉन्च कर सकती है। पहले खबर थी कि ये फोन अप्रैल में लॉन्च होंगे। लेकिन सैमसंग एम सीरीज को लेकर बढ़ते क्रेज को देखते हुए श्याओमी फरवरी या मार्च में ही नोट 7 सीरीज लॉन्च कर सकती है।

27 जनवरी, 2019 को राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय में दो दिन तक 1900 वस्तुएँ प्रदर्शित होगी और नीलाम की जायेंगी । ये वस्तुएँ श्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में मिले उपहार हैं । नीलामी से मिली राशि को नमो गंगे प्रोजेक्ट में खर्च किया जाएगा ।

अमूल देश में पहली बार ऊँटनी के दूध की बिक्री करने जा रहा है ।

    अमूल कल से शुरू करेगा ऊंटनी के दूध की बिक्री देश में पहली बार बाजार में आएगा बोतलबंद दूध
: तीन स्थानों पर शुरू होगी बिक्री, शुरुआत में 100 रुपए रखी है कीमत

ब्रांड अमूल के उत्पादों का स्वामित्व रखने वाले गुजरात के 18 डेयरियों का सहकारी महासंघ गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन देश में पहली बार ऊंटनी के दूध की बिक्री के तहत कल से राज्य के तीन स्थानों पर इसे बाजार में उतारने जा रहा है।
महासंघ के महाप्रबंधक आर एस सोढी ने आज यूएनआई को बताया कि मधुमेह की बीमारी के प्रबंधन में उपयोगी होने के अलावा कई तरह के पोषक और औषधीय गुणों से भरपूर यह दूध अहमदाबाद, कच्छ और गांधीधाम में कल से आधा लीटर की बोतल में उपलब्ध होगा। इसकी कीमत 50 रुपये होगी। यह दूध सुपाच्य होने के साथ ही दूध के चलते होने वाली एलर्जी से पीड़ित लोगों के लिए भी उपयोगी होगा।
उन्होंने कहा कि महासंघ के तहत आने वाली कच्छ की सरहद डेयरी ने शुरूआत में चार से पांच हजार लीटर ऊंटनी का दूध प्रतिदिन एकत्रित करना शुरू किया है। यह मात्रा बढ़ने पर इसे अन्य स्थानों पर भी लांच किया जायेगा। पिछले साल ही ऊंटनी के दूध की चाॅकलेट लांच की गई थी जिसे लोगों ने खूब पसंद किया है। अमूल के ऊंटनी के दूध को रेफ्रीजरेटर में तीन दिन तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

******

मैं सभी देश-विदेश के पंजाबी व सिक्ख लोगों को सिक्ख धर्म के दसवें गुरु गोविंदसिंह जी की 350वीं जयंती की शुभकामनाएं देता हूँ । इस अवसर पर स्मारक सिक्के – 350/- रुपये – 35 ग्राम वजनवाले व स्टैम्प जारी की गई है ।

2019 में कई बदलाव होने जा रहे हैं । अमेरिकी कांग्रेस की पहली हिंदू सांसद तुलसी गब्बार्ड ने 2020 में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने की घोषणा की है । एलिजाबेथ वोरेन के बाद डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से यह चुनाव लड़नेवाली यह दूसरी महिला सेनेटर बनेगी । वे हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव में हवाई की प्रतिनिधित्व करती है ।

अंत में, नीरज की गीतिका के साथ इस पत्र को विराम देता हूँ –

घृणा का प्रेम से जिस दिन अलंकरण होगा,

धरा प’ स्वर्ग का उस रोज अवतरण होगा ।

न तो हवा की है गलती न दोष नाविक का,

जो लेके डूबा तुझे तेरा आचरण होगा ।

हां आत्मघात ही करना पड़ेगा सूरज को

इसी तरह जो उजालों का अपहरण होगा

जो रातभर मेरा दरवाजा खटखटाता रहा

वो तू नहीं, कोई भटका हुआ पवन होगा ।

तू ढूँढ़ता है कहाँ उसको काबा-काशी में

वहीं वो होगा जहाँ प्रेम का कथन होगा ।

मैं सोचता हूँ कि कैसी दिखेगी ये दुनिया

हृदय हॄदय पे न जब कोई आवरण होगा

तू उस रसिक से अपरिचित ही रहेगा ‘नीरज’

कि जब तलक तेरी संज्ञा प’ विशेषण होगा ।

आप आप सभी को (26 जनवरी) गणतंत्र दिवस की बधाई… दान दिवस (29 जनवरी) की बधाई…

शुभमस्तु सर्वदा…

– नारायण साँई 23/1/2019

Comments (2)
Shraddha
January 28, 2019 6:14 am

आपके ‘दिल की बात ‘ हमारे जीने का सम्बल होती है साँईंजी🙏🙌

Reply

Minakhi Das
January 28, 2019 5:02 pm

Koti naman pyare pravu Saiinji. Avtaran divas ki dher sare badhai.

Reply

Leave comments

Your email is safe with us.

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.